Lok Sabha Elections 2024 : उत्तर प्रदेश का कैराना शहर कभी हिंदुओं के पलायन के लिए चर्चा में आया और मीडिया में सुर्खियां बना, जिसके बाद लोगों को देश भर में लोगों को पता चला कि कोई शहर कैराना भी है. 2019 से फिलहाल भारतीय जनता पार्टी ने इस सीट पर जीत दर्ज की. लेकिन पार्टी को 2018 के उपचुनाव में शिकस्त का सामना करना पड़ा था.
अब 2024 के लिए बीजेपी ने प्रदीप कुमार चौधरी को यहां से मैदान में उतारा है, जबकि विपक्षी दलों के गठबंधन INDIA ने इकरा हसन को टिकट दिया है. मायावती ने बसपा से श्रीपाल राणा को मैदान में उतार दिया है. मायावती का इस सीट पर उम्मीदवार उतारने से साफ है कि वो सपा- कांग्रेस गठबंधन उम्मीदवार का वोट काटेंगी और इससे बीजेपी का फायदा हो सकता है.
कैरना मुजफ़्फ़रनगर से करीब 50 किमी पश्चिम में हरियाणा पानीपत से सटा यमुना नदी के पास बसा शहर है. इसका पुराना नाम कर्णपुरी था, लेकिन बाद में नाम बिगड़ता चला गया, पहले यह किराना हुआ और अब कैराना हो गया. यहां मुस्लिम मतदाता ज्यादा हैं. इसके अंतर्गत पांच विधानसभा सीटें आती हैं. 1962 में यहां पहली बार लोकसभा चुनाव हुआ था. दिल्ली से कैराना की दूरी 103.3 किलोमीटर है.
लोकसभा चुनाव हो या फिर विधानसभा चुनाव कैराना हमेशा सुर्खियों में रहता है. अभी तक इस सीट पर एनडीए की ओर से वर्तमान सांसद प्रदीप चौधरी मैदान में हैं, तो सपा गठबंधन की इकरा हसन हैं. वहीं बसपा ने श्रीपाल राणा को कैराना से प्रत्याशी बनाया है. चुनाव में सियासत और विरासत का तड़का लग रहा है. प्रदीप चौधरी तीन बार विधायक रह चुके हैं, जबकि वर्तमान सांसद भी हैं. वहीं. इकरा हसन के दादा अख्तर हनस, पिता मनव्वर हसन और मां तबस्सुम भी सांसद रह चुकी हैं. भाई नाहिद हसन लगातार तीन बार से विधायक हैं.
कैराना लोकसभा सीट पर पहली बार 1962 में चुनाव हुए थे. तब यशपाल सिंह निर्दलीय विधायक चुने गए थे. पांच साल बाद 1967 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार गयूर अली खान ने जीत का परचम लहराया. तीसरे चुनाव में कांग्रेस का पहली बार इस सीट पर खाता खुला और प्रत्याशी शफकत जंग ने जीत दर्ज की. इसके बाद लगातार दो चुनाव 1977 में चंदन सिंह और 1980 में गायत्री देवी (पूर्व प्रधानमंत्री की पत्नी) ने जनता पार्टी से जीत हासिल की. 1984 में कांग्रेस से अख्तर हसन जीते थे. इसके बाद 1989 और 1991 के चुनाव में जनता दल के हरपाल सिंह पंवार चुनकर लोकसभा पहुंचे.
1991 से लेकर अब तक के चुनाव में तबस्सुम हसन ही वो नेता हैं जिन्हें कैराना सीट से 2 बार जीत मिली है जबकि अन्य नेता अपनी जीत रिपीट नहीं कर सके हैं. हालांकि तबस्सुम ने 2009 के चुनाव में बसपा के टिकट पर चुनाव जीता था, जबकि 2018 में वह राष्ट्रीय लोक दल के टिकट पर चुनाव जीता था. उनके पति मुनव्वर हसन भी यहां से लोकसभा चुनाव (1996) जीत चुके हैं. 2014 के चुनाव में मोदी लहर में हुकुम सिंह विजयी हुए थे. 1991 से लेकर अब तक हुए 9 चुनाव में 4 बार मुस्लिम प्रत्याशी को जीत मिली है.
पश्चिमी यूपी की चर्चित लोकसभा सीट कैराना में मुस्लिम और जाट वोटर निर्णायक भूमिका में हैं. 2011 की जनगणना के अनुसार, शामली जिले में कुल 12 लाख 73,578 वोटर्स हैं जिसमें 57.09% वोटर्स हिंदू हैं. 41.73% आबादी मुसलमानों की है. इसमें कैराना में मुस्लिमों की आबादी ज्यादा है और कुल जनसंख्या का 52.94% है तो 45.38% हिंदू बिरादरी के लोग रहते हैं.
1962 -------------- यशपाल सिंह --- निर्दलीय
1967 ------------ गय्यूर अली खान-- सोशलिस्ट पार्टी(एसएसपी)
1971----------- शफक्कत जंग ------- कांग्रेस
1977 ----------- चंदन सिंह ----------- बीएलडी
1980 ----------- गायत्री देवी ---------- जनता पार्टी (एस)
1984-------- चौधरी अख्तर हसन ----- कांग्रेस
1989---------- हरपाल पंवार --------- जनता दल
1991 -------- हरपाल पंवार ---------जनता दल
1996-------- मुनव्वर हसन -------- सपा
1998--------- वीरेंद्र वर्मा ---------- भाजपा
1999 --------अमीर आलम ------- रालोद
2004-------- अनुराधा चौधरी ----- रालोद/सपा
2009------- तबस्सुम हसन ------ बसपा
2014-------- हुकुम सिंह -- ------- भाजपा
2019-------- प्रदीप चौधरी----- ---- भाजपा