'अपनी-अपनी किस्मत है,' राहुल गांधी और वरुण गांधी की तुलना पर मेनका गांधी को 'टीस,' वजह क्या है

गांधी परिवार के दो लाड़ले, राहुल गांधी और वरुण गांधी. दोनों सियासी सूरमा हैं. राहुल गांधी अपनी पार्टी के सबसे बड़े नेता हैं, वरूण गांधी अपनी पार्टी के हाशिये पर खड़े नेता. दोनों की किस्मत में अंतर है, सियासी हैसियत में भी.

ANI

मेनका गांधी. एक जमाने में भारतीय जनता पार्टी (BJP) की अगड़ी पंक्ति में खड़ी नेता रही हैं, जिन्होंने पर्यावरण की दिशा में ऐसे-ऐसे काम किए हैं, जिन्हें दूसरे कभी नहीं पाए. पर्यावरण और महिला एवं बाल विकास मंत्री के तौर पर उन्होंने कई उल्लेखनीय काम किए. राजनीतिक तौर पर वे शीर्ष पर पहुंची लेकिन उन्हीं के बेटे वरुण गांधी, हाशिए पर रह गए. दोनों चचेरे भाइयों की राजनीतिक हैसियत में जमीन आसमान का अंतर है. गांधी-नेहरू परिवार के दोनों लाडले बेटे हैं लेकिन एक विपक्ष का सबसे बड़ा चेहरा है, दूसरा सत्तारूढ़ पार्टी का ठुकराया हुआ.

साल 2014 से पहले लग रहा था कि वरुण गांधी, अपने पिता संजय गांधी के तेवरों के साथ, भारतीय जनता पार्टी में काम करेंगे और सत्ता के सिंहासन तक पहुंचेंगे लेकिन उनकी नियती ही ऐसी नहीं थी. साल 2014 से ही बीजेपी ने उन्हें हाशिए पर किया और अब तक हाशिए पर हैं. 2019 के बाद से तो खुद उन्होंने बीजेपी के खिलाफ ऐसे-ऐसे बयान दिए, जिसके चलते, पार्टी ने उन्हें 2024 का लोकसभा टिकट नहीं दिया. वे पीलीभीत से सांसद हैं और अब 4 जून को पूर्व सांसद हो जाएंगे. 

मेनका गांधी को वरुण के हाशिए पर होने की है टीस

वरुण गांधी से ANI के एक रिपोर्टर ने सवाल किया कि वरुण गांधी सुल्तानपुर में चुनावी सभा से बचते नजर आ रहे हैं. अब सवाल उठ रह रहे हैं कि राहुल गांधी बनाम वरुण गांधी को कैसे देखती हैं. राहुल गांधी को लगातार पुश किया जा रहा है कि वे बड़े नेता बनें. वरुण गांधी को अवसर नहीं मिल रहा है. इस पर आप क्या सोचती हैं? इसके जवाब में मेनका गांधी ने मायूसी से कहा, 'सबके अपने-अपने रास्ते हैं, सबकी अपनी-अपनी किस्मत है. इससे ज्यादा क्या बोलूंगी मैं.'
 

रिपोर्टर सवाल करती है कि क्या अवसर का भी कोई खेल है? आप गांधी परिवार से आती हैं, ऐसे में आप क्या कहेंगी. इसके जवाब में मेनका गांधी कहती हैं कि मैं किसी की योग्यता को लेकर कोई तुलना नहीं करती. अगर काबिलियत है तो हर कोई अपने रास्ते ढूंढ लेगा. सबके अपने अपने-अपने रास्ते हैं.' मेनका गांधी, अब न पहले जैसे तेवर में नजर आ रही हैं, न ही वे खुश नजर आ रही हैं. हर चुनाव में लोग बेहद उत्साहित होते हैं लेकिन कैंपेनिंग में भी मेनका गांधी की टीस झलक रही है. 

किस बात की है मेनका गांधी को टीस, समझिए पूरी कहानी
वरुण गांधी, अपने बागी तेवरों के लिए जाने जा रहे हैं. 2004 में जब वे पहली बार बीजेपी में शामिल हुए थे, तब से लेकर अब तक उनकी सियासत बदल चुकी है. उन्होंने बीजेपी को मजबूत करने की कसम ली थी लेकिन अब बीजेपी के खिलाफ ही बोल पड़ते हैं. किसान आंदोलन में जब लखीमपुर खीरी में किसानों की हत्या हुई तो अपनी ही सरकार को तानाशाही के लिए जमकर कोसा. उन्होंने किसान आंदोलन का समर्थन किया और सरकार की आलोचना की. वरुण गांधी एक जमाने में फायरब्रांड नेता हुआ करते थे. वरुण गांधी, अब सेल्फ गोल वाले नेता हो गए हैं.

वरुण गांधी योगी आदित्यनाथ की तर्ज पर आगे बढ़ रहे थे. 2014 से पहले एक रैली में उन्होंने यहां तक कहा था कि अगर कोई हिंदुओं की ओर हाथ बढ़ाता है या फिर ये सोचता हो कि हिंदू नेतृत्वविहीन हैं तो मैं गीता की कसम खाकर कहता हूं कि मैं उस हाथ को काट डालूंगा. उन्होंने एक भाषण में मुस्लिमों का मजाक उड़ाया था. वे बेहद हार्ड लाइन पर बीजेपी को डिफेंड कर रहे थे. एक पार्टी में कई फायरब्रांड नेता नहीं चलते हैं. बीजेपी में वरुण गांधी अपना भविष्य देख रहे थे लेकिन पार्टी ने धीरे-धीरे उन्हें साइडलाइन कर दिया.

मेनका गांधी 2014 में केंद्रीय मंत्री तो बन गईं लेकिन वरुण गांधी बाहर रह गए. मेनका गांधी को भी 2019 के बाद उन्हें मंत्रालय नहीं मिला, वे पार्टी में बतौर सांसद की हैसियत से रहीं. वरुण गांधी पीलीभीत और सुल्तानपुर में ही सिमटे रहे, इस बार पीलीभीत भी छीन लिया गया. मेनका गांधी, के अरमान भी सोनिया की तरह ही थी के उनका पार्टी भी देश की सबसे बड़ी पार्टी में सबसे बड़े पद तक पहुंचेगा लेकिन ऐसा लगता है कि किस्मत, सबकी एक जैसी होती नहीं है. हर किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिल जाए, ऐसा हो नहीं सकता है.