Sultanpur Lok Sabha Seat: बदलते कैंडिडेट और ठाकुरों के विद्रोह के बीच सीट बचा पाएंगी मेनका गांधी?

Maneka Gandhi Sultanpur: यूपी की सुल्तानपुर लोकसभा सीट पर मेनका गांधी के लिए इस बार बड़ी चुनौती है. अब तक एक भी बार यहां न जीत पाने वाली सपा ने भी इस बार अलग रणनीति बनाई है.

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उत्तर प्रदेश की सुल्तानपुर लोकसभा सीट लगातार अनिश्चितताओं से भरी रही है. बीते दो चुनावों से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने यहां से दूसरे गांधी परिवार यानी वरुण और मेनका गांधी को चुनाव में उतारा है. इस बार जहां पीलीभीत के सांसद वरुण गांधी का टिकट काट दिया गया है तो उनकी मां मेनका गांधी एक बार फिर से सुल्तानरपुर सीट से चुनावी मैदान में हैं. मेनका गांधी के सामने समाजवादी पार्टी ने इस बार निषाद को चुनाव में उतारकर बाजी पलटने की कोशिश की है. वहीं, बसपा ने भी उदराज वर्मा के रूप में ओबीसी कैंडिडेट उतारकर चुनाव को और रोमांचक बना दिया है.

इस बार एक रोचक बात और है कि हर बार चुनाव में जोर-आजमाइश करने वाले सोनू सिंह और मोनू सिंह चुनाव से नदारद नजर आ रहे हैं. उम्मीद है कि इस बार यह परिवार लोकसभा चुनाव में नहीं उतरेगा. इससे पहले सोनू-मोनू की मेनका गांधी और वरुण गांधी के खिलाफ खुली अदावत रही है. हालांकि, इस बार चर्चाएं हैं कि यह अदावत जमीनी है. देश के कई हिस्सों में राजपूतों के विरोध का असर इस सीट पर भी देखने को मिल सकता है.

सोशल मीडिया पर सोनू-मोनू के कई करीबी बीजेपी को चुनौती देते भी नजर आ रहे हैं. ऐसे में मेनका गांधी के खिलाफ एंटी इन्कम्बेंसी और राजपूतों का विरोध उनके लिए घातक साबित हो सकती है. पिछले लोकसभा चुनाव में चंद्रभद्र सिंह उर्फ सोनू सिंह बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े थे और सपा ने उनका समर्थन किया था. वह सिर्फ 15 हजार वोटों के अंतर से चुनाव हार गए. 2022 में उनके भाई यशभद्र सिंह उर्फ मोनू बसपा के टिकट पर इसौली विधानसभा सीट से चुनाव भी लड़े लेकिन तीसरे नंबर पर रहे.

सुल्तानपुर का जातिगत समीकरण

इस सीट पर लगभग 80 प्रतिशत हिंदू और 20 प्रतिशत मुस्लिम वोटर हैं. अनुसूचित जाति की आबादी 21.29 फीसदी होने के चलते सपा ने यहां रामभुआल निषाद को चुनाव में उतारा है. बता दें कि समाजवादी पार्टी अभी तक इस सीट पर कभी भी लोकसभा चुनाव नहीं जीत पाई है. मुस्लिम, ठाकुर, ब्राह्णण और ओबीसी मतदाताओं की अच्छी खासी संख्या होने के चलते इस बार यहां का चुनाव काफी रोमांचक होने वाला है. सपा इस बार मुस्लिम और दलित समीकरण से उम्मीदें लगाई बैठी है कि इस बार यहां से वह अपना खाता खोल लेगी.

विपक्ष के प्रत्याशी पर संशय 

सुल्तानपुर सीट पर समाजवादी पार्टी ने पहले भीम निषाद को टिकट दिया था. बाद में उनकी जगह पर राम भुआल निषाद को चुनाव में उतार दिया गया. हालांकि, भीम निषाद ने अभी भी हार नहीं मानी है. 23 अप्रैल को भीम निषाद ने एक बार फिर अखिलेश यादव से मुलाकात करके टिकट बदले जाने की संभावनाओं को फिर से बल दे दिया है. वहीं, बसपा ने इस सीट से उदय राज वर्मा को चुनाव में उतारा है. 

सुल्तानपुर लोकसभा का इतिहास

1952 में बी वी केसरकर ने यहां से पहला चुनाव जीतकर कांग्रेस का खाता खोला. लगातार पांच चुनावों में कांग्रेस ही यहां से जीती लेकिन पांचों पर उम्मीदवार बदल दिए गए. 1991 में विश्वनाथ दास शास्त्री ने पहली बार यहां बीजेपी का खाता खोला. उसके बाद देवेंद्र बहादुर रॉय ने बीजेपी को लगातार दो चुनाव जितवाए. 2009 में अमेठी राजघराने के राजा संजय सिंह यहां से चुनाव जीते. 2014 में वरुण गांधी तो 2019 में मेनका गांधी भी यहां से चुनाव जीत चुकी हैं.