देश के लिए आज बड़ा दिन है. 18वीं लोकसभा चुनाव के नतीजे आएंगे. देश किसे अपना जनादेश देगी ये कुछ घंटों के बाद साफ हो जाएगा. बीजेपी और कांग्रेस अपनी-अपनी जीत के दावे कर रही है. जिस राज्य ने देश का पहला प्रधानमंत्री दिया उस राज्य का क्या हाल है. प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से लेकर वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक नौ प्रधानमंत्रियों को संसद में भेजने वाले इस राज्य ने 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को सत्ता तक पहुंचाने में बड़ी सीटों का योगदान दिया है.
दोनों बार वाराणसी लोकसभा सीट से चुनाव जीतने वाले मोदी 2024 के चुनावों में केंद्र में अपनी सरकार के लिए तीसरा कार्यकाल चाह रहे हैं. विपक्ष, मुख्य रूप से समाजवादी पार्टी-कांग्रेस, ने भारतीय ब्लॉक के अभियान का नेतृत्व करने और उत्तर प्रदेश के माध्यम से नई दिल्ली तक भाजपा के मार्च को रोकने के लिए हर संभव प्रयास किया है, इसलिए सभी की निगाहें उनके प्रदर्शन पर टिकी होंगी.
चुनाव प्रचार के दौरान पीएम मोदी ने यूपी में डबल इंजन की सरकार को खुब प्रचारित किया. सभी रैलियों में योगी मॉडल का जिक्र किया. बीजेपी के लिए यूपी काफी अहम राज्य है. प्रधानमंत्री ने आरोप लगाया था कि कांग्रेस के घोषणापत्र में मुस्लिम लीग की छाप है और यह पुरानी पार्टी लोगों की संपत्ति, यहां तक कि महिलाओं के मंगलसूत्र भी उनसे छीन सकती है. दूसरी ओर, इंडिया ब्लॉक ने भाजपा पर भारत के संविधान को बदलने और आरक्षण को खत्म करने की योजना बनाने का आरोप लगाया. अपनी ओर से, विपक्षी गठबंधन ने अग्निवीर जैसी योजनाओं को खत्म करने का वादा किया.
बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में 80 लोकसभा सीटों में से 71 सीटें जीतीं, जबकि 2014 के चुनावों में पार्टी ने भारत में 543 सीटों में से 282 सीटें जीती थीं. इसके सहयोगी अपना दल (एस) ने भी उत्तर प्रदेश में दो सीटें जीतीं. बीजेपी का वोट शेयर 2014 में 42.63% से बढ़कर 2019 में 49.98% हो गया, लेकिन उत्तर प्रदेश में इसकी सीटों की संख्या 71 से घटकर 62 हो गई.
2019 में बसपा और सपा के बीच गठबंधन हुआ. यूपी की दो पार्टियों के साथ आने से बीजेपी के सीटों पर असर पड़ा. 2019 में क्रमशः 10 और पांच सीटें जीतीं, जबकि 2014 में सपा ने केवल पांच सीटें जीती थीं. बसपा 2014 में अपना खाता नहीं खोल पाई थी. 2014 में दो सीटें जीतने वाली कांग्रेस 2019 में केवल रायबरेली जीत पाई.
2019 के लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद सपा और बसपा अलग हो गए. हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा और कांग्रेस के हाथ मिलाने की कोशिश चर्चा में है. यूपी के दो लड़के एक फिर से साथ हैं. विधासभा चुनाव में ये नारा दिया गया था. ये गठबंधन पिछली बार कारगर साबित नहीं हुआ था, बीजेपी ने विधानसभा चुनाव जीतकर गठबंधन को झटका दिया था. यह देखना दिलचस्प है कि क्या सपा-कांग्रेस गठबंधन कोई प्रभाव डाल पाता है या नहीं? क्या बसपा अपनी उपस्थिति दर्ज करा पाएगी?
एग्जिट पोल में यूपी में बीजेपी और उसके सहयोगी दलों को 60-70 सीटें मिलने का अनुमान है. सपा और कांग्रेस गठबंधन को 20-10 सीटें हासिल हो सकती है. लेकिन यूपी में करीब 30 सीटें ऐसी हैं, जहां बीजेपी कड़े मुकाबले में फंसी नजर आ रही है. नतीजे किसी के भी पक्ष में जा सकते हैं.