उलगुलान महारैली के लिए INDIA गठबंधन ने रांची को ही क्यों चुना? क्या है बिरसा मुंडा से कनेक्शन
INDIA Bloc Ulgulan Nyaya Maharally: झारखंड की राजधानी रांची में आज इंडिया गठबंधन 'उलगुलान' महारैली के जरिए केंद्र पर हमलावर होगा. मंच के एक ओर अरविंद केजरीवाल को जबकि दूसरी ओर हेमंत सोरेन को सलाखों के पीछे दिखाया गया है. क्या आपको उलगुलान का मतलब पता है, क्या आप जानते हैं कि इस रैली के लिए विपक्ष गठबंधन ने रांची को ही क्यों चुना? आइए, समझते हैं.
INDIA Bloc Ulgulan Nyaya Maharally: लोकसभा चुनाव, अरविंद केजरीवाल और हेमंत सोरेन की कस्टडी से लेकर अन्य मुद्दों को लेकर आज विपक्षी इंडिया गठबंधन बिरसा मुंडा की धरती झारखंड से केंद्र सरकार पर हमलावर होगा. महारैली में 14 राजनीतिक पार्टियों के तमाम बड़े नेता जुटेंगे. इसमें लालू यादव से लेकर तेजस्वी यादव, सुनीता केजरीवाल से लेकर कल्पना सोरेन, मल्लिकार्जुन खड़गे से लेकर राहुल गांधी तक शामिल होंगे. लेकिन सवाल ये कि आखिर विपक्ष ने धरती आबा (पिता) बिरसा मुंडा की जमीन को ही इस महारैली के लिए क्यों चुना?
सबसे पहले उलगुलान का अर्थ समझते हैं. दरअसल, झारखंड... आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी और मुंडा जनजाति के लोक नायक बिरसा मुंडा की धरती है. भारतीय आदिवासी बिरसा मुंडा को भगवान मानते हैं. इनके नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ 1899-1900 में चर्चित विद्रोह हुआ, जिसे मुंडा उलगुलान के नाम से जाना जाता है. अब आदिवासी समय समय पर इस उलगुलान शब्द का यूज करते हैं. इस शब्द का अर्थ अन्याय एवं शोषण के खिलाफ, संघर्ष का एक आह्वान है. इसका सरल शब्दों में अर्थ क्रांति या फिर महाविद्रोह भी है.
अंग्रेजी हुकूमत से आजादी की लड़ाई की शुरुआत 1857 से मानी जाती है. लेकिन ठीक इसके पहले संथाल विद्रोह भी हुआ था. ये विद्रोह अंग्रेजों के खिलाफ तो था ही, साथ ही उन दिकूओं (महाजनों) के भी खिलाफ था, जो जल, जंगल और जमीन के मालिक यानी आदिवासियों को उनके हक से बेदखल कर रहे थे. अब सवाल था कि इस विद्रोह को आखिर आगे कैसे ले जाया जाए, आदिवासियों को आखिर इकट्ठा कैसे किया जाए? ये सवाल तो उस वक्त जस का तस ही बना रहा. समय गुजरता गया और संथाल विद्रोह (1855) जब अपनी जवानी के दिनों में पहुंच रहा था, तब धरती पर एक 'अवतार' हुआ, जिसे लोग बिरसा मुंडा के नाम से जानते हैं.
कैसे धधकी उलगुलान की ज्वाला?
आम बच्चों की तरह बिरसा मुंडा भी स्कूल जाने लगे. वे अपने जन्म स्थान उलिहातू से निकलकर झारखंड के कही चाईबासा पहुंचे. यहां उन्होंने देखा कि चाहे अंग्रेज हो या महाजन, सभी आदिवासियों का शोषण करते हैं. पढ़ाई के ही दौरान उन्होंने संथाल विद्रोह के बारे में भी जाना और फिर 'अबुआः दिशोम रे अबुआः राज' का नारा दिया, जिसका अर्थ अपनी धरती, उस पर अपना राज होता है. इसके बाद 1895 में शुरू हुआ उलगुलान यानी कि द ग्रेट ट्यूमुल्ट. ये वो उलगुलान था, जिसमें बिरसा मुंडा के नेतृत्व में आदिवासियों ने जल, जंगल और जमीन पर अपनी दावेदारी के लिए संग्राम छेड़ दिया.
अंग्रेजों को जब उलगुलान की भनक लगी, तो उन्होंने उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन ये गिरफ्तारी ज्यादा दिन तक नहीं चली. आखिरकार बिरसा मुंडा रिहा हुआ और दोगुनी ताकत से 1898 को एक बार फिर अभियान छेड़ दिया. एक साल बाद यानी 1899 में साल के आखिर में करीब 7000 लोगों को एक जगह जुटाया और क्रांति की घोषणा कर दी. जो चुटिया से निकलकर खूंटी, तमाड़ होते हुए रांची तक पहुंच गई. अगले साल यानी 1900 में मुंडा जनजाति के लोगों ने हथियार उठा लिया और कई अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया. इसके बाद अबुआ दिसुन यानी स्वराज की घोषणा की गई.
घटना के बाद अंग्रेज भी कहां चुप रहने वाले थे. उन्होंने कार्रवाई शुरू कर दी और बिरसा मुंडा को पकड़ने के लिए उस वक्त 500 रुपये का इनाम घोषित कर दिया. कुछ दिनों बाद ही अंग्रेजों ने डुंबारी पहाड़ी पर सैकड़ों आदिवासियों को घेरकर गोलियों से भून डाला. आखिरकार 3 फरवरी को मुखबिरी के बाद बिरसा मुंडा को गिरफअतार कर लिया गया. थोड़े दिन के बाद यानी 9 जून को जेल में बिरसा मुंडा की मौत हो गई. आदिवासी साहित्यकार हरीराम मीणा ने बिरसा मुंडा के लिए कविता लिखी है... कुछ अंश..
मैं केवल देह नहीं
मैं जंगल का पुश्तैनी दावेदार हूं
पुश्तें और उनके दावे मरते नहीं
मैं भी मर नहीं सकता
मुझे कोई भी जंगलों से बेदखल नहीं कर सकता
उलगुलान!
उलगुलान!!
उलगुलान!!!