वो इकलौता चुनाव जिसमें महात्मा गांधी भी लड़े लेकिन जीत नहीं पाए, हार के बाद क्या बोले थे बापू
Political Files: महात्मा गांधी भारत के स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख नेता थे, जिन्होंने अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांतों का प्रयोग किया. हालांकि, यह बहुत कम लोगों को पता है कि गांधी जी कभी किसी चुनाव में खड़े हुए भी थे. आइए एक नजर उस चुनाव के नतीजे और उसके बाद उनकी प्रतिक्रिया पर डालते हैं.
Political Files: भारत के स्वतंत्रता संग्राम के ध्वजवाहक महात्मा गांधी ने अपना सारा जीवन अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांतों पर चलते हुए बिताया और खुद एक ऐसा जीवन जीकर दिखाया जिसने पूरे राष्ट्र की चेतना को जगाने का काम किया. गांधी जी को लेकर कई किस्से सुनने में आते हैं लेकिन सारे किस्से उनके सत्याग्रह या आंदोलन से जुड़े हैं.
हालांकि शायद ही किसी ने महात्मा गांधी के चुनाव लड़ने के किस्से के बारे में सुना हो? आज की पॉलिटिकल फाइल्स में हम आपको उसी किस्से के बारे में बताने जा रहे हैं जिसमें महात्मा गांधी ने अपने जीवन का इकलौता चुनाव लड़ा था. इस चुनाव का नतीजा क्या था और उसके बाद बापू का रिएक्श्न क्या था.
आखिर कौन से चुनाव में लड़े थे महात्मा गांधी?
वह साल 1920 का था. उस समय कांग्रेस पार्टी के भीतर स्वराज (स्वशासन) की प्राप्ति के लिए अपनाए जाने वाले रास्ते को लेकर बहस छिड़ी हुई थी. एक धड़ा क्रांतिकारी रास्ता अपनाने का पक्षधर था, वहीं दूसरा संवैधानिक तरीकों से स्वतंत्रता प्राप्ति को संभव मानता था.
गांधी जी संवैधानिक रास्ता अपनाने के प्रबल समर्थक थे. उनका मानना था कि अहिंसा और सविनय अवज्ञा जैसे तरीकों से अंग्रेजों के शासन को चुनौती दी जा सकती है. यह दिखाने के लिए कि संवैधानिक प्रक्रिया भी जनसमर्थन हासिल कर सकती है, उन्होंने 1920 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ा.
चुनाव परिणाम और गांधी जी की प्रतिक्रिया
दुर्भाग्य से, गांधी जी को उस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा. चित्तरंजन दास विजयी हुए, जो क्रांतिकारी रास्ता अपनाने के समर्थक थे. मगर इस हार ने गांधी जी के आत्मविश्वास को डिगा नहीं सका. उन्होंने हार को विनम्रता और सहिष्णुता के साथ स्वीकार किया. उन्होंने चुनाव परिणाम को जनता की इच्छा के रूप में स्वीकार करते हुए कहा कि यह हार उनके सिद्धांतों की हार नहीं है, बल्कि लोगों को उनके विचारों को समझने में अभी और समय लगेगा.
हार के बाद गांधी जी ने क्या कहा?
अपनी हार के बाद गांधी जी ने कई महत्वपूर्ण बातें कहीं. उन्होंने एक उल्लेखनीय उक्ति में कहा, "हार जीत तो लगी रहती है, असली लक्ष्य सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलते रहना है." इस कथन में उनका दृढ़ संकल्प और अडिग विश्वास झलकता है.
हार को उन्होंने निराशा के रूप में नहीं, बल्कि जनता के बीच अपने विचारों को और प्रभावी ढंग से पहुंचाने के लिए प्रेरणा के रूप में लिया. उन्होंने समझा कि शायद जनता को उनके संदेश को पूरी तरह समझने में अभी और समय चाहिए.
हार के बावजूद नहीं रुके महात्मा गांधी
चुनाव हार के बावजूद गांधी जी ने अपने संवैधानिक और अहिंसक आंदोलन को जारी रखा. उन्होंने जनता को जागरूक करने और उनके विचारों को जनमानस में बिठाने के लिए निरंतर प्रयास किए. उनका दृढ़ विश्वास और अडिग संकल्प ही था जिसने अंततः भारत को स्वतंत्रता दिलाई. यह घटना हमें यह सीख देती है कि असफलता हमें रोक नहीं सकती. बल्कि यह आत्म-मंथन और सुधार का अवसर प्रदान करती है.
असफलता से हमें यह सीखने को मिलता है कि हम अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अपना दृष्टिकोण कैसे बदल सकते हैं और अपने संदेश को जनता तक कैसे अधिक प्रभावी ढंग से पहुंचा सकते हैं. गांधी जी का यह चुनाव हार का प्रसंग हमें यही मूल्यवान शिक्षा देता है.