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पीएम इन वेटिंग लाल कृष्ण आडवाणी नहीं बल्कि ये नेता थे, 4 बार बनते-बनते रह गए प्रधानमंत्री

Political files : पीएम इन वेटिंग शब्द सुनते ही लोगों के जेहन में लाल कृष्ण आडवाणी का नाम आता है. लेकिन एक नेता देश में ऐसे हुए हैं, जिन पर एक वाक्य शत-प्रतिशत सटीक बैठता है.

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Edited By: Pankaj Soni
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Political files : लोकसभा चुनाव 2024 के लिए चुनाव प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को होगा. बीजेपी की ओर मौजूदा प्रधानमंक्षी नरेंद्र मोदी पीएम कैंडिडेट हैं. विपक्ष की ओर से ऐसा कोई चेहरा अभी तक तय नहीं हुआ है. चुनाव के पहले एक शब्द 'पीएम इन वेटिंग' अक्सर चर्चा में आ जाता था, लेकिन 2014 के बाद से इस शब्द पर फिलहाल विराम लग गया है. आज से 10-12 साल पहले 'पीएम इन वेटिंग' का जिक्र होते ही लाल कृष्ण आडवाणी का नाम हर लोगों को जेहन में आ जाता था.

लेकिन आडवाणी कोई पहले नेता नहीं हैं, जिनका नाम इस लिस्ट में आता है. आडवाणी से पहले सियासत में एक चेहरा था जो एक-दो बार नहीं बल्कि चार-चार बार प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गया. वो देश के उप प्रधानमंत्री भी रहे. कोई नाम दिमाग में आया? इस नेता का नाम था बाबू जगजीवन राम. 

इंदिरा गांधी की सरकार में रहे देश के रक्षा मंत्री

1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध चल रहा था, उस समय इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं, तब देश के रक्षा मंत्री जगजीवन राम ही थे. बाबू जगजीवन राम से जुड़े कई किस्से चर्चा में हैं, लेकिन इनमें से एक किस्सा बड़ा रोचक और चर्चित है. वो किस्सा यह है कि बाबी जगजीवन राम एक- दो बार नहीं बल्कि चार-चार बार प्रधानमंत्री बनते- बनते रह गए. इंदिरा गांधी के सबसे करीबी नेताओं में शुमार जगजीवन राम ने आपातकाल के दौरान इंदिरा की खिलाफत कर कांग्रेस छोड़ दी थी और अपनी पार्टी बना ली. वहीं 1977 के लोकसभा चुनाव में जय प्रकाश नारायण के कहने पर उन्होंने जनता पार्टी से चुनाव लड़ा.

चार बार प्रधानमंत्री बनने से चूके जगजीवन राम?

पहला मौका - इंदिरा गांधी के करीबी नेता बाबू जगजीवन राम को कांग्रेस के अंदर ही नेता इंदिरा के बाद देश का अगला प्रधानमंत्री मानकर चल रहे थे. ऐसा कहा जाता है कि इंदिरा ने जगजीवन को भरोसा दिलाया था कि अगर इमरजेंसी के दौरान उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा तो अगला प्रधानमंत्री आप ही बनेंगे. लेकिन ना तो ऐसी नौबत आई और ना ही जगजीवन राम प्रधानमंत्री बने. इसी के बाद उन्होंने कांग्रेस से दूरी बना ली. यह पहला मौका था जब वे पीएम बनते बनते रह गए.

दूसरा मौका- इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को देश में आपातकाल की घोषणा कर दी जो करीब 21 महीने यानी 21 मार्च 1977 तक लागू रहा. देश में आपातकाल के बाद इंदिरा और कांग्रेस दोनों का खूब विरोध हुआ.1977 के आम चुनाव में देश की जनता ने कांग्रेस को नकार दिया और जनता पार्टी चुनाव में जीत गई. इसके बाद जगजीवन राम को प्रधानमंत्री बनाने की चर्चा तेज हो गई थी. लेकिन मोरारजी देसाई और जय प्रकाश नारायण की नजदीकियों के चलते एक बार फिर से उनका पत्ता कट गया और पीएम पद के लिए देसाई की ताजपोशी हुई.

तीसरा मौका- मोरारजी देसाई देश के पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री बन चुके थे, लेकिन उनके लिए काम करना आसान नहीं है. उनके ही मंत्रिमंडल में शामिल नेताओं ने उनका विरोध करना शुरू कर दिया. आखिरकार उनकी सरकार गिर गई. इसके बाद एक बार फिर सवलाल उठा कि अब अगला प्रधानमंत्री कौन बनेगा? इस बार भी सभी की निगाहें इंदिरा गांधी पर टिकी थीं. यहां से चौधरी चरण सिंह और जगजीवन राम के बीच सियासी लड़ाई का दौर शुरू हुआ. हालांकि इंदिरा ने बगावत करने वाले जगजीवन को तगड़ा झटका दिया और चौधरी का समर्थन करने की बात कह दी. ये तीसरा मौका था, जब बाबू जगजीवन राम प्रधानमंत्री बनने से चूक गए.

चौथा मौका- 1979 में इंदिरा गांधी के समर्थन से चौधरी चरण सिंह ने सरकार बना ली, लेकिन उन्हें इंदिरा की दखअंदाजी पसंद नहीं आ रही थी. उधर इंदिरा चाहती थीं कि सरकार का कंट्रोल उनके ही हाथों में रहे. लेकिन ऐसा नहीं हो रहा था तो इंदिरा गांधी ने चौधरी चरण सिंह की सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया और उनकी सरकार गिर गई. अब 1980 के लोकसभा चुनाव हुए. इस बार जनता पार्टी ने जगजीवन राम को प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनाया, लेकिन उस चुनाव में कांग्रेस और इंदिरा गांधी ने उनकी उम्मीद पर पानी फेर दिया. इंदिरा की वापसी हुई और जगजीवन राम का प्रधानमंत्री बनने का सपना चौथी बार टूट गया.

बिहार के रहने वाले जगजीवन राम पूर्व उप प्रधानमंत्री रहे

पूर्व उप प्रधानमंत्री जगजीवन राम का ताल्लुक बिहार से था. बाबू जी इंदिरा गांधी की सरकार में प्रधानमंत्री रहे 
और आपातकाल के विरोध में उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी थी. इसके साथ ही उनके इंदिरा गांधी से संबंध खराब होने लगे. बिहार के एक छोटे से गांव में जन्में जगजीवन राम दिल्ली की राजनीति का बड़ा चेहरा रहे, लेकिन उनके प्रधानमंत्री बनने की ख्वाहिश अधूरी ही रह गई. बाबू जगजीवन राम का जन्म भोजपुर जिले के चांदवा गांव में सोभी राम और वसंती देवी के यहां 5 अप्रैल 1908 में हुआ था और 6 जुलाई 1986 को 78 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया था.

जगजीवन राम के बेटे से जुड़ा विवाद चर्चित हुआ

1977 में जगजीवन राम प्रधानमंत्री नहीं बन पाए थे तो जेपी ने उन्हें काफी समझाया और उन्होंने मोरारजी देसाई की सरकार उप प्रधानमंत्री का पद संभाला. बताया जाता है कि इसी सीट पर उनके बेटे की आपत्तिजनक तस्वीरों को लेकर भी जमकर हंगामा हुआ था. ये बात साल 1978 की है, जब आपत्तिजनक तस्वीर मैग्जीन में उनके के बेटे सुरेश राम की एक महिला के साथ छपी, उसी के बाद में उनके बेटे ने उस महिला से शादी कर ली थी.