menu-icon
India Daily

नायडू की स्पेशल स्टेट, तो नीतीश की 3 अहम मंत्रालयों की डिमांड! क्या बुरी तरह फंसी भाजपा?

Naidu Nitish Demand: केंद्र में एक दशक बाद गठबंधन वाली सरकार की कवायद शुरू हो गई है. इससे पहले नीतीश कुमार औऱ चंद्रबाबू नायडू की मांगों की लिस्ट सामने आई है. कहा जा रहा है कि मांगों की वजह से भाजपा बुरी तरह फंस गई है.

auth-image
Edited By: India Daily Live
Chandrababu Naidu Nitish Kumar Ministry Special Status Demand
Courtesy: Narendra Modi Twitter

Naidu Nitish Demand: देश की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा के नेतृत्व में 'अबकी बार गठबंधन वाली सरकार' की कवायद तेज हो गई है. इस बीच एडीए में शामिल नीतीश कुमार की जेडीयू और चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी की डिमांड सामने आई है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, नीतीश कुमार ने समर्थन के एवज में तीन अहम मंत्रालयों की मांग की है, तो वहीं टीडीपी की आंध्र प्रदेश के लिए स्पेशल स्टेटस समेत अन्य मांगे हैं.

आइए, पहले नीतीश कुमार की मांगों के बारे में जान लेते हैं...

NDA में तेलुगू देशम पार्टी (TDP) के बाद दूसरे नंबर की पार्टी नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड (JDU) ने कैबिनेट में महत्वपूर्ण मंत्रालयों की डिमांड की है. इन मंत्रालयों में रेल मंत्रालय भी शामिल है. नीतीश गुरुवार को राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में NDA सहयोगियों की बैठक में मौजूद थे. इससे कुछ घंटे पहले उन्होंने RJD के तेजस्वी यादव के साथ फ्लाइट के अंदर की तस्वीर शेयर की थी. JDU प्रवक्ता और एमएलसी नीरज कुमार ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि ये महज संयोग है कि दोनों नेता एक ही फ्लाइट से दिल्ली जा रहे थे. हम एनडीए के साथ मजबूती से खड़े हैं और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में तीसरी बार सरकार बनने की उम्मीद कर रहे हैं.

सूत्रों का कहना है कि नीतीश कुमार के इस 'मजबूत' समर्थन के लिए भाजपा को 'बड़ी' कीमत चुकानी पड़ेगी. 2019 के विपरीत, जब JDU ने 16 सीटें जीती थीं, तब उसे एक मंत्री पद की पेशकश की गई थी, क्योंकि भाजपा अपने दम पर बहुमत में थी. इस बार JDU को 12 सीटें मिली हैं, लेकिन ये 2019 में मिली 16 सीटों से अधिक कीमती हैं.

रेलवे, ग्रामीण विकास, जल शक्ति मंत्रालय पर नजर

सूत्रों के अनुसार, JDU की नज़र रेलवे, ग्रामीण विकास और जल शक्ति मंत्रालय पर है. अगर इनमें से किसी पर बात नहीं भी बनती है, तो विकल्प के तौर पर परिवहन और कृषि मंत्रालय रखा गया है. JDU के एक नेता ने कहा कि नीतीश एनडीए सरकार में रेलवे, कृषि और परिवहन मंत्रालय संभाल चुके हैं. हम चाहते हैं कि हमारे सांसद ऐसे विभाग संभालें जो राज्य के विकास में मदद कर सकें. बिहार में जल संकट के साथ-साथ घटते जल स्तर और बाढ़ की चुनौतियों का सामना करने के लिए जल शक्ति मंत्रालय महत्वपूर्ण है. हम नदी परियोजनाओं को आपस में जोड़ने पर भी जोर दे सकते हैं.

नेता ने तर्क दिया कि ग्रामीण विकास मंत्रालय ग्रामीण बुनियादी ढांचे और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है. उन्होंने कहा कि रेलवे का मिलना निश्चित रूप से बिहार के लिए गर्व की बात होगी. इतना ही नहीं, पार्टी नेताओं का कहना है कि जब एनडीए अगले साल बिहार में विधानसभा चुनाव लड़ेगी तो वे नीतीश को ही कमान सौंपना चाहेंगे. उन्होंने इस अटकल को भी खारिज कर दिया कि राज्य में निकट भविष्य में नेतृत्व परिवर्तन हो सकता है.

JDU के आधा दर्जन सांसद केंद्रीय मंत्री पद की दौड़ में शामिल!

कहा जा रहा है कि संभावित केंद्रीय मंत्री पद की दौड़ में सबसे आगे चल रहे लोगों में लोकसभा और राज्यसभा के JDU के आधा दर्जन से ज़्यादा सांसद हैं. सूत्रों के मुताबिक, JDU को एक उच्च जाति, एक ओबीसी कुशवाहा और एक ईबीसी नेता को शामिल करने के बीच संतुलन बनाना होगा.

इस दौड़ में JDU के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और मुंगेर के सांसद ललन सिंह, जो उच्च जाति से हैं. झंझारपुर के सांसद रामप्रीत मंडल, जो ईबीसी नेता हैं और वाल्मीकि नगर के सांसद सुनील कुमार, जो कुशवाहा समुदाय से हैं, शामिल हैं. सूत्रों के अनुसार, सीतामढ़ी के सांसद देवेश चंद्र ठाकुर और राज्यसभा सांसद संजय कुमार झा भी दौड़ में हो सकते हैं, लेकिन नीतीश के साथ अपने पुराने संबंधों के कारण ललन सिंह का नाम सबसे आगे है.

अब बात चंद्रबाबू नायडू के टीडीपी की डिमांड की...

तेलुगु देशम पार्टी (TDP) के अध्यक्ष एन चंद्रबाबू नायडू बुधवार यानी 4 जून को राष्ट्रीय राजनीति में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में उभरे, जब उनकी पार्टी ने लोकसभा चुनाव में 16 सीटें जीतीं. टीडीपी आंध्र प्रदेश में जन सेना पार्टी और भाजपा के साथ गठबंधन में है. नायडू का समर्थन भाजपा के लिए महत्वपूर्ण है, जिसकी लोकसभा में केवल 240 सीटें हैं. अब भाजपा को समर्थन देने के बदले में नायडू कई डिमांड रख सकते हैं. इनमें सबसे बड़ी डिमांड आंध्र प्रदेश को स्पेशल स्टेटस का दर्जा देना हो सकता है.

विशेष श्रेणी का दर्जा (SCS) क्या है?

1969 में, भारत के पांचवें वित्त आयोग ने कुछ राज्यों को उनके विकास में सहायता करने, ऐतिहासिक आर्थिक या भौगोलिक नुकसान का सामना करने पर विकास को तेज़ करने के लिए स्पेशल स्टेटस की व्यवस्था शुरू की. स्पेशल स्टेटस का दर्जा देने के लिए आमतौर पर कठिन और पहाड़ी इलाके, कम जनसंख्या घनत्व या बड़ी जनजातीय आबादी, सीमाओं के साथ रणनीतिक स्थान आदि कारकों पर विचार किया जाता था. इस प्रणाली को 14वें वित्त आयोग की सिफारिश पर समाप्त कर दिया गया था, जिसमें सुझाव दिया गया था कि राज्यों के संसाधन अंतर को मौजूदा 32% से बढ़ाकर 42% कर के हस्तांतरण के माध्यम से पूरा किया जाना चाहिए.

11 राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया, जिसमें पूरा पूर्वोत्तर और जम्मू -कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे सीमावर्ती पहाड़ी राज्य शामिल हैं. इसके बाद, अन्य राज्यों ने भी विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग की, जिसमें नायडू का आंध्र प्रदेश, बिहार और ओडिशा शामिल हैं.

आंध्र प्रदेश स्पेशल स्टेटस का दर्जा क्यों चाहता है?

जब 2014 में आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014 के माध्यम से अविभाजित आंध्र प्रदेश को विभाजित कर तेलंगाना बनाया गया था, तो केंद्र की यूपीए सरकार ने राजस्व की हानि की भरपाई के लिए आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने का वादा किया था. नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद, नायडू जो 2014 से 2019 तक सीएम थे और वाईएस जगन मोहन रेड्डी जो 2019 से 2024 तक सीएम थे, दोनों ने बार-बार स्पेशल स्टेटस की अपील की, ताकि राज्य की संकटपूर्ण वित्तीय स्थिति को दूर करने के लिए केंद्र से अधिक धन उपलब्ध कराया जा सके.

योजना आयोग के बाद नीति आयोग के सामने आंध्र प्रदेश सरकार की ओर से पेश प्रस्तुतियों के अनुसार, 14वें वित्त आयोग ने अनुमान लगाया था कि 2015-20 की पांच साल की अवधि के लिए आंध्र प्रदेश के लिए हस्तांतरण के बाद राजस्व घाटा 22,113 करोड़ रुपये होगा, लेकिन वास्तव में यह आंकड़ा 66,362 करोड़ रुपये था. शेष राज्य का ऋण, जो विभाजन के समय 97,000 करोड़ रुपये था, 2018-19 तक 2,58,928 करोड़ रुपये तक पहुंच गया और अब 3.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक है.

आंध्र प्रदेश का तर्क है कि अविभाजित राज्य को अन्यायपूर्ण और असमान तरीके से विभाजित किया गया था. राज्य को मूल राज्य की लगभग 59% आबादी, ऋण और देनदारियां विरासत में मिलीं, लेकिन इसके राजस्व का केवल 47% हिस्सा मिला. उदाहरण के लिए, वर्ष 2013-14 के लिए आंध्र प्रदेश से 57,000 करोड़ रुपये के सॉफ्टवेयर निर्यात में से, हैदराबाद शहर का (विभाजन के बाद तेलंगाना के साथ) अकेले 56,500 करोड़ रुपये का हिस्सा था.

आज का आंध्र प्रदेश कृषि प्रधान राज्य है, जिसकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब है, जिसके कारण राजस्व में भारी कमी आई है. यह इस तथ्य से स्पष्ट है कि 2015-16 में तेलंगाना का प्रति व्यक्ति राजस्व 14,411 रुपये था, जबकि आंध्र प्रदेश के लिए यह केवल 8,397 रुपये था. आंध्र प्रदेश सरकार के अनुसार, यूपीए ने आंध्र प्रदेश के लोगों को आश्वासन दिया था कि विभाजन की पूर्व शर्त के रूप में उसे पांच वर्ष की अवधि के लिए विशेष राज्य का दर्जा दिया जाएगा.

स्पेशल स्टेटस का आंध्र प्रदेश के लिए क्या मतलब होगा?

स्पेशल स्टेटस का मतलब होगा केंद्र से राज्य सरकार को मिलने वाली अनुदान राशि में वृद्धि. उदाहरण के लिए, स्पेशल स्टेटस कैटेगरी के राज्यों को प्रति व्यक्ति अनुदान 5,573 करोड़ रुपये प्रति वर्ष है, जबकि आंध्र प्रदेश को केवल 3,428 करोड़ रुपये मिलते हैं.

स्पेशल स्टेटस कैटेगरी वाले राज्यों को आयकर छूट, सीमा शुल्क माफी, कम उत्पाद शुल्क, एक निश्चित अवधि के लिए कॉर्पोरेट कर छूट, जीएसटी से संबंधित रियायतें और छूट तथा कम राज्य और केंद्रीय टैक्सेज का लाभ मिलता है. इस कैटेगरी वाले राज्यों में केंद्र सरकार केंद्रीय योजनाओं के लिए 90% तक धन मुहैया कराती है, जबकि इस कैटेगरी से बाहर वाले राज्यों में यह राशि 70% तक है.

आंध्र प्रदेश सरकार ने तर्क दिया है कि इस प्रकार के विशेष प्रोत्साहन मुख्यतः कृषि प्रधान राज्य के तीव्र औद्योगिकीकरण के लिए महत्वपूर्ण हैं. इससे युवाओं के लिए रोजगार के बेहतर अवसर पैदा होंगे, राज्य का समग्र विकास होगा. आंध्र प्रदेश का तर्क है कि स्पेशल स्टेटस मिलने से स्पेशियलिस्ट हॉस्पिट्ल्स, फाइव स्टार होटल्स, आईटी जैसे मुख्य संस्थानों में इन्वेस्टमेंट को बढ़ावा मिलेगा.

आंध्र प्रदेश सरकार ने केंद्र पर अपनी मांग थोपने के लिए क्या किया है?

नायडू स्पेशल स्टेटस के बारे में मुखर और भावुक रहे हैं और मुख्यमंत्री के रूप में अपने 2014-19 के कार्यकाल के दौरान इसके लिए उन्होंने काफी कोशिश भी की. 2014 में जब मोदी सरकार सत्ता में आई थी, तब टीडीपी उसमें शामिल थी,और नायडू अपने मामले को केंद्र को समझाने में विफल होने से निराश थे.

मार्च 2018 में, केंद्र की ओऱ से उनकी दलीलों को सुनने से इनकार करने पर नाराज़गी जताते हुए, नायडू ने केंद्र में अपने दो मंत्रियों से इस्तीफा देने को कहा था. इनमें पी अशोक गजपति राजू (नागरिक उड्डयन) और वाई सत्यनारायण चौधरी (विज्ञान और प्रौद्योगिकी और पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री) शामिल थे. इसके बाद नायडू ने एनडीए छोड़ दिया और मई 2019 के विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा-विरोधी, मोदी-विरोधी अभियान शुरू किया था.

जब नायडू ने विधानसभा में बताया कि किया कि वे स्पेशल स्टेटस की मांग के लिए NDA मंत्रियों से मिलने 29 बार दिल्ली गए थे, तो वाईएस जगन मोहन रेड्डी और उनके वाईएसआरसीपी विधायकों ने उनका मजाक उड़ाया था. चुनाव प्रचार के दौरान जगन ने आंध्र प्रदेश के लिए स्पेशल स्टेटस हासिल करने में विफल रहने के लिए नायडू और टीडीपी पर हमला किया था. हालांकि, 2019 में भारी जीत और मुख्यमंत्री बनने के बाद जगन को खुद उन्हीं हमलों और अपमानों का सामना करना पड़ा.

फरवरी 2024 में, चुनावों से पहले आखिरी विधानसभा सत्र के दौरान, जगन ने इस मुद्दे पर निराशा और पीड़ा व्यक्त की. विधानसभा से कहा कि उनकी इच्छा है कि किसी भी पार्टी को लोकसभा में पूर्ण बहुमत न मिले, ताकि राज्य एससीएस के लिए सौदेबाजी कर सके. नायडू के पास अब बिल्कुल यही मौका है.

लेकिन केंद्र के लिए इस मांग को मानना ​​कितना व्यवहारिक है?

भाजपा के पास संख्याबल कम है और नायडू के साथ बातचीत में उसके पास बहुत कम विकल्प हैं, अगर वह कठोर रवैया अपनाते हैं, तो कांग्रेस ने पहले ही उन्हें संकेत भेज दिए हैं. सीनियर नेता जयराम रमेश ने कहा है कि आंध्र प्रदेश के लिए स्पेशल स्टेट्स राज्य में पार्टी के घोषणापत्र का हिस्सा था और अगर केंद्र में सत्ता में आती है तो इंडिया ब्लॉक इस मांग को स्वीकार करेगा.

नायडू जो चाहते हैं, वो थोड़ा मुश्किल है, क्योंकि 14वें वित्त आयोग ने कहा था कि स्पेशल स्टेटस, केंद्र के संसाधनों पर बोझ है. ऐसे में अब NDA, UPA की तरह वादा कर सकता है. ऐसा भी हो सकता है कि केंद्र आंध्र प्रदेश के एक निश्चित अवधि यानी 5 साल के लिए स्पेशल स्टेटस का दर्जा दे दे. स्पेशल स्टेटस के लिए नायडू का पिछला प्रयास विफल हो गया था और उन्हें राज्य में भी करारी हार का सामना करना पड़ा था. इस बार मामला अलग है. केंद्र में सरकार बनाने के लिए भाजपा उन पर निर्भर है.