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Modi ka Parivar पर रार : UP में विरासत में मिली सियासत के वारिसदारों के रास्ते में कम नहीं हैं रोड़े

Modi ka Parivar: राजनीति में परिवारवाद का दौर आजादी के समय से चला आ रहा है. अब पीएम मोदी वंशवाद और परिवारवाद की पर सीधा हमला बोल रहे हैं, जिसको लेकर बड़े- बड़े दिग्गज अपने बेटे- बेटी को राजनीति में सेट नहीं कर पा रहे हैं.

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Edited By: Pankaj Soni
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Modi ka Parivar: भारत में आजादी के बाद से ही परिवारवाद की राजनीति का दौर शुरू हो गया था, जो समय के साथ देश की राजनीति का हिस्सा हन चुका है. देश की आवाम भी मान चुकी है कि किसी प्रधानमंत्री  के बेटे को ही देश का अलगा प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के बेटे को अगल मुख्यमंत्री बनने का अधिकार है. राजनीति में जवाहर लाल नेहरू, मुलायम सिंह यादव, बाल ठाकरे, फारुख अब्दुल्ला, प्रकाश सिंह बादल, ओमप्रकाश चौटाला, प्रेम कुमार धूमल, लालू प्रसाद यादव, बीजू पटनायक, एचडी देवगौड़ा जैसे तमाम बड़े नेता अपने वारिसों को राजनीति में जमाने में सफल रहे हैं. अब देश में राजनीति में वंशवाद का खुलकर विरोध होने लगा है. पीएम मोदी तो हर सभा में वंशवादी राजनीति पर हमला बोलते हैं.  

आज का समय बदल चुका है और अब दल के अंदर ही परिवारवाद का विरोध हो रहा है. वहीं हर राज्य में अलग-अलग राजनीतिक दलों में स्थापित नेता अपने बेटे और परिवार के लोगों को टिकट दिलवाना चाहते हैं. इस बात का विरोध सभी दलों के अंदर हो रहा है. साथ ही देखने के लिए मिल रहा है कि अगर विरासत में सियासत मिल भी जाए तो आगे की राह इन खानदानी नेताओं के लिए आसान नहीं है. 

राजनाथ और कलराज के बेटों का संघर्ष जारी

यूपी में कई बड़े नेता है जो अपने बेटों के लिए सियासी जगह तलाश कर उन्हें सेट करना चाहते हैं. इसके लिए लोकसभा चुनाव में कई चेहरों पर सबकी नजरें हैं. जिनमें केंद्रीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के छोटे बेटे नीरज सिंह बीते कई साल से राजनीति में हाथ तो आजमा रहे हैं, लेकिन उन्हें कोई बड़ा ओहदा या चुनाव में पार्टी का टिकट नसीब नहीं हुआ है. हालांकि, राजनाथ सिंह के बड़े बेटे पंकज भाजपा विधायक हैं. इनके अलावा राजस्थान के राज्यपाल एवं वरिष्ठ भाजपा नेता कलराज मिश्र भी अपने बेट अमित को राजनीति में स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं.लेकिन अभी निशाना सटीक जगह पर नहीं लग रहा है. इनके अलावा बसपा के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्र ने अपने बेटे कपिल को राजनीति में लाने के लिए कई तरह के प्रयास कर रहे हैं, लेकिन अभी तक उनको कामयाबी नहीं मिली है. 

भाजपा से सपा में जाने और फिर अपनी अलग पार्टी बनाने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य की कवायद को उनके बेटे उत्कृष्ट के टिकट से जोड़ा जाता है. उन्होंने बेटे के लिए हर पार्टी का दरवाजा खटखटाया, लेकिन सफलता नहीं मिली. हालांकि, उनकी बेटी संघमित्रा बदायूं की सांसद हैं, लेकिन बीजेपी ने अब उनका टिकट काट दिया है. अब स्वामी प्रसाद मौर्य और उनकी बेटी संघमित्रा मौर्य को फिलहाल कोई पार्टी टिकट देने वाली नहीं है. 

राजभर, निषाद और बृजभूषण फायदे में

प्रदेश सरकार में मंत्री ओपी राजभर ने अपने बेटे अरविंद राजभर को घोसी से प्रत्याशी बनाया है. वहीं मंत्री संजय निषाद अपने एक बेटे को सांसद, दूसरे को विधायक बनवा चुके हैं. सांसद बृजभूषण सिंह अपने बेटे प्रतीक भूषण को राजनीति में सेट कर चुके हैं. रायबरेली सदर से विधायक रहे बाहुबली अखिलेश सिंह की बेटी अदिति सिंह राजनीति में इंट्री करने में सफल रहीं. वहीं पूर्व मंत्री नरेश अग्रवाल के बेटे नितिन अग्रवाल पिता की राजनीतिक विरासत को संभाल रहे हैं. पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के बेटे राजवीर सिंह सांसद हैं तो पौत्र संदीप सिंह प्रदेश में मंत्री हैं.

पूर्वांचल में बाहुबली नेताओं के परिवार की चमक पड़ी फीकी

उत्तर प्रदेश में बाहुबलियों के गढ़ पूर्वांचल में पूर्व मंत्री हरिशंकर तिवारी और अमरमणि त्रिपाठी का नाम सबसे पहले आता है. हरिशंकर तिवारी के बाद उनके कुनबे के कई सदस्यों ने सियासत में कदम रखा, लेकिन वो राजनीति में कुछ खास नहीं कर पाए. बैंक घोटाले में पूरा कुनबा फंसा है. वहीं, अमरमणि के बेटे अमनमणि एक बार विधायक बनने में सफल रहे, इसके बाद उन्हें निराशा ही हाथ लगी.