एक वक्त तब था, जब मायावती की गिनती फायरब्रांड नेताओं में होती थी, एक वक्त अब है कि मायावती के तेवर ऐसे बदले हैं कि यकीन ही नहीं होता कि यही मायावती हैं. साल 2012 से पहले का वक्त जिसे भी याद हो, मायावती के नाम से अधिकारी कांपते थे. जिस गांव में अचानक उनका दौरा हो जाता था, रातोरात बिजली के खंभे और सड़कें बिछाने अधिकारियों की लाइन लग जाती थी. एक वक्त आज का है, जब मायावती इतनी सॉफ्ट हो गई हैं कि वे सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (BJP) की सरकार के खिलाफ कुछ बोल नहीं पाती हैं. ऐसे वक्त में जब चार चरणों के चुनाव हो चुके हैं, मायावती को याद आया है कि मुफ्त राशन और फ्रीबीज पर कुछ बोलना चाहिए. मायावती बोलीं लेकिन लंबी चुप्पी के बाद. उन्होंने अचानक सोशल मीडिया पर लिखा कि फ्रीबीज ठीक नहीं है, यह जनता का पैसा है, उसी का इस्तेमाल कर सरकार लाभ ले रही है. आइए समझ लेते हैं.
मायावती ने कहा, 'देश के लोगों को बढ़ती महंगाई, गरीबी, बेरोजगारी व पिछड़ेपन आदि के अभिशाप से मुक्त करना तो दूर उन्हें रोक पाने में विफलता के कारण गरीबों को थोड़ा राशन देने को भी भाजपा एंड कम्पनी के लोग चुनाव में भुनाने पर तुले हैं, जो उचित नहीं क्योंकि यह मेहरबानी नहीं है.' लोगों को यह थोड़ा मुफ्त राशन भाजपा सरकार का उपकार नहीं बल्कि लोगों द्वारा सरकार को दिया गया टैक्स का ही धन है. अतः इसके बदले वोट मांगकर गरीबों का मजाक उड़ाना अशोभनीय है. यह बात मैं हर जनसभा में कहती हूं फिर भी भाजपा द्वारा प्रचारित ऐसे फेक वीडियो पर लोग ध्यान न दें.'
1. देेश के लोगों को बढ़ती महंगाई, गरीबी, बेरोजगारी व पिछड़ेपन आदि के अभिशाप से मुक्त करना तो दूर उन्हें रोक पाने में विफलता के कारण गरीबों को थोड़ा राशन देने को भी भाजपा एण्ड कम्पनी के लोग चुनाव में भुनाने पर तुले हैं, जो उचित नहीं क्योंकि यह मेहरबानी नहीं है। 1/2
— Mayawati (@Mayawati) May 16, 2024
सिमटती सियासत या मजबूरी, क्यों सॉफ्ट हो गईं हैं मायावती?
एक जमाने में मायावती के वोटर, बहुत वफादार थे. वे दलित राजनीति करती थीं. दलित समाज की सबसे बड़ी लीडर वे अरसे तक रहीं. उनकी पार्टी ने राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल किया था. कई राज्यों में उनके सांसद विधायक थे. साल 2014 में नरेंद्र मोदी युग की शुरुआत के बाद से ही उनका वोटर, बीजेपी की ओर बड़ी संख्या में शिफ्ट कर गया. मायावती ब्राह्मण, क्षत्रिय और दूसरे जातीय समीकरण बिठाने में फेल होती गईं. जिन सीटों पर दलित वोटरों की संख्या कम थी, वहां मायावती की दाल गली ही नहीं.
क्यों अचानक फ्रीबीज पर गया मायावती का ध्यान?
चाहे साल 2012 का यूपी विधानसभा चुनाव हो गया 2017 का, मायावती इस स्थिति में नहीं रहीं कि वे खुद को यूपी की प्रमुख पार्टी बना पाएं. अखिलेश यादव के उभार ने पहले उनकी राजनीति खत्म की फिर बीजेपी के. साल 2012 के विधानसभा चुनाव में बसपा के पास 80 सीटें थीं. 2017 में बसपा महज 17 सीटें जीत पाई. साल 2022 के चुनाव में बसपा सिर्फ 1 सीट जीत पाई. मायावती ने लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव की पार्टी सपा के साथ गठबंधन के बाद 10 सीटें जीत ली थी लेकिन ये गठबंधन चला नहीं.
अब मायावती के पास सपा के मुस्लिम-यादव समीकरण का भी साथ नहीं है. ऐसे में उनकी पूरी सियासत सिर्फ इस बात पर टिकी है कि दलित वोटर उनका साथ देते हैं या नहीं. जितनी निष्क्रियता उन्होंने 2022 के लोकसभा चुनाव में दिखाई है, वैसी शायद की कभी दिखाई हो.
20 मई को 5वें चरण के तहत वोटिंग होने वाली है. इन सीटों पर दलित वोटर अहम भूमिका निभाने वाले हैं. अगर यूपी की बात करें तो मोहनलालगंज सीट पर वोटिंग है. यह दलित बाहुल और आरक्षित सीट है. बसपा का इस सीट पर ठीक पकड़ है. कौशांबी भी आरक्षित सीट है, जिस पर 20 मई को वोटिंग होने वाली है. बाराबंकी भी आरक्षित सीट है.
मायावती की इन सीटों पर मजबूत पकड़ मानी जाती है. इसके अलावा लखनऊ, झांसी, हमीरपुर, बांदा, फैजाबाद और गोंडा में भी दलित वोटर निर्णायक स्थिति में हैं. मायावती इन सीटों को ध्यान में रखते हुए दोबारा सक्रिय हुई हैं.
पंजाब में भी दलित वोटर निर्णायक स्थिति में हैं. फिल्लौर, रोपड़ और बठिंडा आरक्षित सीटें हैं. इन सीटों पर दलित और दलित सिख बड़ी संख्या में हैं. इन सीटों पर भी मायावती ने उम्मीदवार उतारा है. ऐसे में मायावती चाहती हैं कि अब उनके वोटर, एकजुट हो जाएं और वोटिंग के दौरान, बसपा पर फिर से भरोसा जताएं. मायावती ने अब तक चुप्पी इसलिए साधी थी, कि बाकी सीटों पर उनकी पार्टी थोड़ी कमजोर थी.
अंतिम चरणों के चुनाव के लिए मायावती ने खुद को चुनाव प्रचार में झोक दिया है, जिससे कुछ सीटें हासिल हो जाएं और उनकी पार्टी मजबूत हो. केंद्र सरकार के और किसी नीति नहीं, फ्रीबीज पर ही उनका ध्यान गया है क्योंकि एक बड़ी आबादी, इस फ्रीबीज हासिल करती है, जो धीरे-धीरे बीजेपी का वोट बैंक बनती जा रही है.
क्या-क्या मुफ्त देने की बात कहती है मोदी सरकार?
मोदी सरकार गरीबों को फ्री राशन, आयुष्मान भारत योजना, मुफ्त बिजली योजना, स्वनिधि योजना, उज्जवला योजना को लेकर दावा करती है कि इन योजनाओं से लोगों के जीवन में बदलाव आए हैं. देश के 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन मिलता है. लोगों को पीएम आवास के तहत मुफ्त घर मिलता है. 70 से ज्यादा उम्र के मरीजों का मुफ्त इलाज भी चर्चा में है. मुद्रा योजना पर भी बीजेपी का जोर है. मोदी सरकार की इन्हीं योजनाओं के ऐलान पर मायावती का गुस्सा फूटा है.
फ्रीबीज पर कितना पैसे खर्च करती है मोदी सरकार?
अगर साल 2023-24 के आंकड़ों पर गौर करें तो सरकार ने सब्सिडी पर 3.75 लाख करोड़ रुपये खर्च किए हैं. साल 2022-23 में 3.23 लाख करोड़ रुपये और 2021-22 में यह आंकड़ा 4.48 करोड़ रुपये रहा. सरकारी आय का एक बड़ा हिस्सा इस पर खर्च होता है. यह जनता के टैक्स का ही पैसा होता है, जिसके जरिए सरकार, लोक कल्याणकारी योजनाओं पर पैसे खर्च करती है. मायावती ने इन्हीं योजनाओं पर सवाल उठाया है.