चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं मायावती अब किसी भी सदन की सदस्य नहीं हैं. साल 2017 में राज्यसभा में बोलने का मौका न दिए जाने का आरोप लगाते हुए मायावती ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और तब से कोई चुनाव नहीं लड़ीं. लगातार कमजोर हो रही बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) की सबसे बड़ी नेता इस बार अपने उम्मीदवारों के लिए ही प्रचार कर रही हैं. लगभग 4 दशक से राजनीति में सक्रिय मायावती पर अब आरोप लगते हैं कि वह सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की मदद कर रही हैं. इन 4 दशकों में बीजेपी, सपा और कांग्रेस का साथ दे चुकीं मायावती अब अकेले मैदान में हैं.
यह सब शुरू होता है साल 1985 के एक उपचुनाव से. बिजनौर लोकसभा सीट पर उपचुनाव हो रहे थे. कांग्रेस ने इस सीट से मीरा कुमार को चुनाव में उतारा था. उनके खिलाफ रामविलास पासवान चुनाव लड़ रहे थे. दो दिग्गजों की इस लड़ाई में सबसे ज्यादा चर्चा बटोरी सिर्फ 29 साल की तेजतर्रार वक्ता मायावती ने. UPSC की तैयारी करने वाली एक लड़की के 'बहनजी' बनने का सफर यहीं से शुरू होता है.
तब BSP मान्यता प्राप्त दल भी नहीं था. ऐसे में मायालती निर्दलीय चुनाव लड़ीं. 61 हजार वोट पाकर तीसरे नंबर रहीं मायावती उन दिनों साइकिल चलाकर गांव-गांव जातीं और वोट मांगती थीं. बीएड और एलएबी की पढ़ाई कर चुकी मायावती अपने भाषणों से लोगों के बीच न सिर्फ जगह बना रही थीं बल्कि कांशीराम जैसे नेताओं की नजर में खुद को इस कदर काबिल साबित कर रही थीं कि एक दिन वह प्रदेश की सीएम बन जाएं.
इससे पहले वह कैराना से लोकसभा चुनाव लड़ी थीं और हार मिली थी. 1985 में बिजनौर औऱ फिर 1987 में हरिद्वार से भी मायावती ने चुनाव लड़ा लेकिन हार मिली. 1989 में इसी बिजनौर सीट ने उन्हें सांसद बनाया और 8879 वोटों से अंतर से चुनाव जीत गईं. 1994 में वह राज्यसभा की सदस्य चुनी गईं और 1995 में उत्तर प्रदेश की पहली दलित मुख्यमंत्री बन गईं.
साल 1956 में दिल्ली के एक अस्पताल में जन्मीं मायावती के पिता प्रभु दास नोएडा के एक पोस्ट ऑफिस में काम करते थे. गरीबी के बावजूद उनके पिता ने अपने बच्चों को पढ़ाया. मायावती ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से BA और एलएलबी की पढ़ाई की. इसके बाद मेरठ यूनिवर्सिटी से बीएड भी किया. स्कूल में पढ़ाते हुए UPSC की तैयारी कर रहीं मायावती 1977 में कांशीराम से मिलीं और राजनीति में उतरने का फैसला कर लिया.
1984 में बसपा के गठन के समय वह कांशीराम की कोर टीम का हिस्सा भी रहीं और उसी साल चुनाव भी लड़ा. 2001 में एक रैली के दौरान कांशीराम ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित किया. 2002 में वह बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष बनीं और तब से इस पद पर काबिज हैं. इस दौरान वह चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री भी रह चुकी हैं.