Mathura Lok Sabha Seat : उत्तर प्रदेश की मथुरा लोकसभा सीट का राजनीतिक समीकरण बदल गया है, क्योंकि कांग्रेस के संभावित उम्मीदवार ओलंपियन मुक्केबाज व कांग्रेस नेता विजेंदर सिंह बीजेपी में शामिल हो गए हैं. इसके बाद कांग्रेस के पास मथुरा से कोई मजबूत उम्मीदवार नहीं बचा है. दूसरे चरण के चुनाव में नामांकन के लिए 4 अप्रैल को आखिरी दिन है. ऐसे में कांग्रेस के सामने प्रत्याशी तय करना कठिन काम है. वहीं बीजेपी की उम्मीदवार हेमा मालिनी आज नामांकन दाखिल करेंगी.
पार्टी सूत्रों का कहना है कि 24 घंटे के पहले कांग्रेस को मथुरा से अपने उम्मीदवार के नाम का ऐलान करना होगा. बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने मथुरा से सुरेश सिंह को मैदान में उतारा है. फिल्म अभिनेत्री हेमा मालिनी अभी मथुरा से बेजीपी की सांसद हैं. हेमा मालिनी की नजर लगातार जीत की हैट्रिक लगाने पर है.
उत्तर प्रदेश की पश्चिमी सीमा यमुना किनारे बसे मथुरा संसदीय क्षेत्र की पहचान भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली के रूप में है. मथुरा जिले में 5 विधानसभा सीटें आती हैं. इनमनें छाता, मांट, गोवर्धन, मथुरा और बलदेव सीटें शामिल हैं. 2022 में प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में इन सभी सीटों पर भारतीय जनता पार्टी का कब्जा हो गया.
मथुरा से 2014 के चुनाव में मोदी लहर में सवार होकर हेमा मालिनी सांसद बनीं. यहां पर उन्होंने आरएलडी के प्रत्याशी जयंत चौधरी को चुनाव हराया था. तब हेमा 1,69,613 मतों के अंतर से चुनाव जीती थीं. यहां पर तीसरे नंबर पर बहुजन समाज पार्टी थी. वहीं 2019 में हेमा ने सपा-बसपा के उम्मीदवार कुंवर नरेंद्र सिंह को 2,93,471 मतों के अंतर से हराया. दोनों चुनाव में हेमा मालिनी को करीब 3 लाख मतों के अंतर से जीत मिली. लेकिन 2014 की तुलना में 2019 में हार-जीत के अंतर में मामूली गिरावट आई थी.
मथुरा लोकसभा सीट में जाट वोटों की अधिकता है. इनके बाद ब्राम्हण वोट बैंक सबसे ज्यादा है. इनकी संख्या 3 लाख से ज्यादा है. ठाकुरों की संख्या 3 लाख के करीब है. वहीं मुस्लिम और जाटव मतदाता करीब डेढ़ लाख के आसपास हैं. वैश्य मतदाता करीब एक लाख और यादव मतदाता 70 हजार के करीब हैं. अन्य जातियों के करीब एक लाख वोटर हैं. यहां से हेमा मालिनी लगातार 2 बार सांसद बन चुकी हैं. सीट के समीकरण भी उनके पक्ष में हैं. इस सीट पर वोटों का ध्रवीकरण भी काफी होता है. लेकिन जाट, ब्राम्हाण और ठाकुर के साथ ही वैश्य वोटरों ने जिसका साथ दिया वहीं यहां से जीतकर संसद में पहुंच जाता है.
मथुरा संसदीय सीट में 2014 से बीजेपीक कब्जा है और हेमा मालिनी यहां से सांसद हैं. 1990 के बाद की राजनीति में राम मंदिर आंदोलन की वजह से बीजेपी के लिए यह सीट गढ़ के रूप में बदलती चली गई. इस सीट पर 1952 से चुनाव हो रहे हैं. पहले चुनाव में राजा गिरराज सरण सिंह निर्दलीय चुनाव जीते थे. 1957 के दूसरे संसदीय चुनाव में भी निर्दलीय उम्मीदवार राजा महेंद्र प्रताप सिंह को जीत मिली थी. 10 साल के लंबे इंतजार के बाद 1962 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का मथुरा सीट से खाता खुला. तब चौधरी दिगंबर सिंह चुनाव जीते. 1967 में भी वही विजयी रहे.
साल 1971 के आम चुनाव में यहां कांग्रेस को जीत मिली और चकलेश्वर सिंह सांसद बने. इमरजेंसी की वजह से कांग्रेस को 1977 के चुनाव में मथुरा में हार का सामना करना पड़ा. 1977 में जनता दल के मनीराम बागरी को जीत मिली. 1980 में चौधरी दिगंबर सिंह फिर से चुनाव जीते. लेकिन इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 के चुनाव में कांग्रेस को सहानुभूति लहर का फायदा मिला और यह सीट भी उसके खाते में आ गई. लेकिन 1989 में जनता दल को जीत मिली.
90 के दशक में राम मंदिर के आंदोलन के चलते मथुरा में बीजेपी की जमीन तैयार हुई. 1991 के चुनाव में साक्षी महाराज को जीत मिली. इसके बाद 1996, 1998 और 1999 में बीजेपी के टिकट पर राजवीर सिंह ने जीत की हैट्रिक लगाई. लेकिन 2004 के चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर मानेंद्र सिंह को जीत मिली. फिर 2009 के चुनाव में बीजेपी और राष्ट्रीय लोकदल के बीच चुनावी गठबंधन था और यहां से आरएलडी के नेता जयंत चौधरी मैदान में उतरे और वह 1,69,613 मतों के अंतर से चुनाव जीतने में कामयाब रहे. इसके बाद 2014 और 2019 में बीजेपी की हेमा मालिनी सांसद बनीं.