Lok Sabha Elections 2024: कई बार नेताओं के ऐसे नारे आपको सुनने को मिलते होंगे, जिनका यूज वे अपने विपक्षी पार्टी के नेताओं पर तंज कसने के लिए करते हैं. इसी साल की शुरुआत में यानी जनवरी में जब नीतीश कुमार INDIA गठबंधन छोड़कर NDA में शामिल हुए थे, तब कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने उन पर तंज कसते हुए 'आया राम गया राम' कहा था. नीतीश कुमार, इस गठबंधन से उस गठबंधन में आने-जाने के लिए जाने जाते हैं. बिहार में 2015 में हुए विधानसभा के 2 साल बाद यानी 2017 में जब उन्होंने भाजपा के साथ हाथ मिलाकर सरकार बनाई थी, तब लालू यादव ने उनपर तंज कसते हुए कहा था कि नीतीश कुमार के पेट में दांत है. क्या आपको पता है कि इन नारों का सबसे पहले यूज कब किया गया, किसने किया? चलिए, हम आपको बताते हैं.
ऐसा नहीं है कि चुनावी मौसम में ही इन नारों का यूज किया जाता है. कई बार चुनावी मौसम से अलग भी राजनेता इन नारों का यूज करते हैं. मौका चाहे दल बदलने की हो या फिर किसी राजनेता की ओर से किसी पार्टी को धोखा देने की. इस तरह के मौकों पर भी नेता, एक-दूसरे पर तंज कसने के लिए इन नारों का यूज करते हैं.
आया राम, गया राम की कहानी हरियाणा से जुड़ी हुई है. सबसे पहले ये नारा 1967 में सुनने को मिला था. दरअसल, जिस राजनेता ने इस नारे का यूज सबसे पहले किया था, उनका नाम राव बीरेंद्र सिंह था.. दरअसल, उन दिनों पलवल जिले के हसनपुर के विधायक 'गया राम' थे. ये वो समय था, जब गया लाल ने 24 घंटे के अंदर तीन-तीन राजनीतिक पार्टियां बदल ली. उस वक्त वे कांग्रेस के नेता हुआ करते थे. किसी बात पर नाराज होकर उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी और जनता पार्टी में शामिल हो गए. कुछ घंटे बाद ही उनका मन बदला और वे फिर से कांग्रेस में शामिल हो गए. फिर कुछ घंटे बाद उन्होंने चौंकाते हुए जनता पार्टी से निकलकर कांग्रेस का दामन थाम लिया.
गया राम, जब जनता पार्टी छोड़कर कांग्रेस में आने के बाद कांग्रेस के सीनियर नेता राव बीरेंद्र सिंह ने उनके साथ एक चंडीगढ़ में प्रेस कॉन्फ्रेंस की और तब उन्होंने गया राम को लेकर कहा- आया राम, गया राम. उनके इस बयान का आज भी जिक्र आज भी किया जाता है. जब भी कोई नेता पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी में जाता है, तो इस नारे का यूज किया जाता है.
पेट में दांत है... वाला नारा सबसे पहले लालू यादव ने दिया था. दरअसल, लालू यादव ने इस वाक्य का यूज कई बार कर चुके हैं और हर बार उन्होंने नीतीश कुमार पर तंज कसने से लिए इसका यूज किया है. सबसे पहले लालू यादव ने इस वाक्य को तब कहा था, जब वे सांसद हुआ करते थे. बात साल 1999 की है. तब संसद में राजद सुप्रीमो लालू यादव भाषण दे रहे थे और वे उस दौरान नीतीश कुमार पर तंज कस रहे थे. उन्होंने अपने भाषण में नीतीश पर तंज कसते हुए कहा था कि उनके पेट में दांत है. ये पहला मौका था, जब लालू यादव ने इस मुहावरे का यूज किया था. इसके बाद कई अन्य मौके पर लालू यादव, नीतीश पर तंज कसने के लिए इस वाक्य का यूज करते हैं.
क्या आप "पेट के दाँत" ठीक करने वाले किसी डेंटिस्ट को जानते है? बिहार में जनादेश का एक मर्डरर है जिसके पेट में दाँत है। उसने सभी नेताओं और पार्टियों को ही नहीं बल्कि करोड़ों ग़रीब-गुरबों को भी अपने विषदंत से काटा है।
— Lalu Prasad Yadav (@laluprasadrjd) November 29, 2017
लालू यादव ने जब इस मुहावरे का यूज नीतीश पर तंज कसने के लिए किया था, उस दौरान केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी. लालू ने संसद में जब इस मुहावरे का यूज किया, तो अटल जी भी हंसने लगे थे. लालू यादव ने नवंबर 2017 में भी नीतीश कुमार पर तंज कसते हुए इस मुहावरे का यूज किया था. तब नीतीश कुमार ने पलटी मारते हुए भाजपा से हाथ मिला लिया और बिहार में सरकार बनाई थी. इससे पहले वे राजद, कांग्रेस और वाम दलों वाले महागठबंधन का हिस्सा थे. तब लालू यादव ने कहा था- क्या आप 'पेट के दांत' ठीक करने वाले किसी डेंटिस्ट को जानते है? बिहार में जनादेश का एक मर्डरर है जिसके पेट में दांत है. उसने सभी नेताओं और पार्टियों को ही नहीं बल्कि करोड़ों ग़रीब-गुरबों को भी अपने विषदंत से काटा है.
देश के आजाद होने के बाद से अब तक जितने भी विधानसभा चुनाव या लोकसभा चुनाव हुए हैं, उनमें नए-नए नारे/मुहावरे यूज किए जाते रहे हैं. खासकर हिंदी बेल्ट वाले राज्यों में. इनकी फेरहिस्त थोड़ी लंबी है, लेकिन इसे शॉर्टकट में समझते और जानते हैं.
आजादी के बाद कांग्रेस का चुनाव चिन्ह हाथ छाप नहीं बल्कि 'दो बैलों की जोड़ी' का था. उस वक्त जनसंघ का चुनाव चिन्ह दीपक और बाती थी. तब एक नारा चला था और जनसंघ के नेताओं ने कांग्रेस पर तंज कसते हुए कहा था कि ‘देखो दीपक का खेल, जली झोपड़ी, भागे बैल’. इन नारे के जवाब में कांग्रेस के नेताओं ने कहा- ‘दीपक में तेल नहीं, सरकार बनाना खेल नहीं’.
जब इंदिरा गांधी की सरकार आई तो जनसंघ ने एक बार फिर नारा दिया और कहा- ‘जनसंघ को वोट दो, बीड़ी पीना छोड़ दो, बीड़ी में तम्बाकू है, कांग्रेस पार्टी डाकू है’. ये वही दौर था, जब कांग्रेस के नेताओं ने कहा था- ‘इंडिया इज इंदिरा एंड इंदिरा इज इंडिया’. फिर एक वक्त आया, जब कांग्रेस ने नारा दिया- ‘कांग्रेस लाओ, गरीबी हटाओ’, जिसके जवाब में विपक्ष ने कहा- ‘इंदिरा हटाओ, देश बचाओ’.
जब इमरजेंसी लगा, तब विपक्ष ने नारा दिया- ‘जमीन गई चकबंदी में, मर्द गए नसबंदी में’. इसके अलावा ये भी नारा चर्चित हुआ कि ‘नसबंदी के तीन दलाल, इंदिरा, संजय और बंसीलाल’. इमरजेंसी के बाद इंदिरा की सरकार गिर गई. दोबारा जब चुनाव हुए तो इंदिरा ने कर्नाटक के चिकमंगलूर से चुनाव लड़ा. तब नारा दिया गया कि ‘एक शेरनी सौ लंगूर, चिकमंगलूर भई चिकमंगलूर’.
1980 के दशक में एक नारा खूब चर्चित हुआ था. तब वाम दलों ने कहा था- चलेगा मजदूर, उड़ेगी धूल... न बचेगा हाथ, न रहेगा फूल. जब वीपी सिंह यानी विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार आई, तब नारा लगा कि ‘राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है’. इसके बाद मंडल कमीशन का दौर आया, तब नारा चला कि ‘गोली मारो मंडल को, इस राजा को कमंडल दो’.
देश की राजनीति की बात हो और उसमें राम मंदिर आंदोलन का जिक्र न हो, ऐसा हो नहीं सकता. राम मंदिर आंदोलन को लेकर भी दिए गए नारे खूब चर्चा में रहे थे. जब ये आंदोलन शुरू हुआ था तब एक नारा लगा था, जो काफी चर्चित हुआ था. भाजपा ने नारा दिया- ‘सौगंध राम की खाते हैं, मंदिर वहीं बनाएंगे’. इसके अलावा, भाजपा की ओर से एक और नारा दिया गया, जिसमें कहा गया कि ‘एक ही नारा, एक ही नाम, जयश्री राम, जयश्री राम’.
मोदी के दौर में भाजपा के कई नारे काफी चर्चित हुए हैं. इनमें ‘अच्छे दिन आने वाले हैं’, ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’, ‘अबकी बार, मोदी सरकार’, बार-बार मोदी सरकार, हर-हर मोदी, घर-घर मोदी शामिल है.