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Indore Lok Sabha Seat: लगातार 9 बार जीती BJP फिर विपक्षी को क्यों कर लिया शामिल? क्या है इंदौर का समीकरण

Indore Lok Sabha: मध्य प्रदेश की इंदौर लोकसभा सीट अचानक से चर्चा में आ गई है क्योंकि यहां से कांग्रेस के उम्मीदवार अक्षय बम ने अपना नाम वापस ले लिया है.

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Edited By: India Daily Live
Indore Lok Sabha Seat
Courtesy: India Daily Live

मध्य प्रदेश की इंदौर लोकसभा सीट भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के लिए उसका गढ़ मानी जाती है. इस सीट से बीजेपी ने लगातार 9 लोकसभा चुनाव जीते हैं, इसके बावजूद कांग्रेस के उम्मीदवार को उसने अपने साथ मिला लिया है. इंदौर लोकसभा सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार रहे अक्षय बम के अपना पर्चा वापस ले लेने और बीजेपी में शामिल होने से हंगामा मच गया है. अब बीजेपी के सामने बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के संजय सोलंकी और सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर ऑफ इंडिया (कम्युनिस्ट) के अजीत सिंह पवार बचे हैं.

पिछले कुछ चुनावों के नतीजों के देखें तो बीजेपी यहां पर अपने निकट प्रतिद्वंद्वी से दोगुने वोट पाकर जीतती रही है. लोकसभा स्पीकर रहीं सुमित्रा महाजन के नाम से मशहूर रही इस सीट पर बीजेपी ने साल 2019 में शंकर लालवानी को चुनाव में उतारा था. सुमित्रा महाजन ने थोड़ी नाराजगी जताई थी लेकिन बीजेपी ने उन्हें मना लिया था. 2024 में भी बीजेपी ने शंकर लालवानी पर ही भरोसा जताया है. हालांकि, अब कांग्रेस उम्मीदवार के हटने से मामला एकतरफा हो गया है.

क्या है इंदौर का गणित?

इंदौर लोकसभा सीट बीजेपी का इतना मजबूत गढ़ है कि 2023 के विधानसभा चुनाव में सभी 8 सीटों पर उसी के उम्मीदवारों को जीत हासिल हुई थी. कैलाश विजयवर्गीय, तुलसीराम सिलावट और मनोज पटेल जैसे नेता इसी लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली विधानसभा सीटों से विधायक हैं. लगातार हार रही कांग्रेस की रही-सही उम्मीद भी अक्षय बम के नाम वापस लेने से जाती रही है. अब थोड़ी बहुत चुनौती बसपा ही दे सकती है, वह भी तब जब कांग्रेस इस सीट पर खुलकर बसपा का समर्थन करे.

इंदौर लोकसभा सीट पर 12.67 पर्सेंट मुस्लिम, 17 पर्सेंट SC और 4.8 प्रतिशत ST मतदाता हैं. हालांकि, बीते कई चुनावों में यहां पर जातिगत समीकरण का कोई असर नहीं पड़ा है. 2019 के चुनाव में बीजेपी के शंकर लालवानी 10 लाख से ज्यादा वोट लाकर विजेता बने थे. वहीं, कांग्रेस के पंकज सांघवी 5.2 लाख वोटर पाकर दूसरे नंबर पर रह गए थे. उस चुनाव में बसपा के दीपचंद अहीरवाल को सिर्फ 8 हजार वोट मिले थे.

कौन-कौन बना सांसद?

साल 1952 में जब इस सीट पर पहली बार चुनाव हुए तो यहां से कांग्रेस के नंदलाल जोशी चुनाव जीते. अगले ही चुनाव में कांग्रेस ने कन्हैयालाल खाड़ीवाला सांसद बने. 1962 में निर्दलीय होमी एफ दाजी ने कांग्रेस को हरा दिया. फिर दो बार कांग्रेस के प्रकाश चंद्र सेठी और एक बार राम सिंह भाई सांसद बने. 1977 में कल्यान जैन जनता पार्टी से सांसद बने लेकिन 1980 और 1984 में फिर प्रकाश चंद्र सेठी ने बाजी मारी. 1989 में बीजेपी के लिए सुमित्रा महाजन ने यह सीट पहली बार जीती. उसके बाद से बीजेपी यहां अजेय रही है.