Political Files: एक्सीडेंटल पीएम थे एचडी देवगौड़ा, कैसे अल्पमत के बाद भी बन गए थे प्रधानमंत्री?
HD Deve Gowda: लोकसभा चुनाव के पॉलिटिकल किस्से में आज कहानी एचडी देवगौड़ा के पीएम बनने की. आइए जानते हैं कि कैसे अल्पमत में होने के बावजूद भी वो पीएम बन गए थे.
HD Deve Gowda: हमारी लोकसभा चुनाव की सीरीज पॉलिटिकल किस्से में आज बात होगी ऐसे नेता कि जिसकी पार्टी को मात्र 46 सीटें मिली थी और वो अल्पमत में होने के बावजूद देश का प्रधानमंत्री बन गया था. आइए कहानी को सिलसिलेवार से शुरू करते हैं.
वो साल था 1997 का. केंद्र की सत्ता पर संयुक्त मोर्चा की सरकार थी.13 दलों ने मिलकर सरकार बनाई थी. जनता दल के नेता एचडी देवगौड़ा प्रधानमंत्री बने थे. प्रधानमंत्री बनने से पहले उन्हें कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था. वो पहले ऐसे नेता थे जिन्होंने सीएम पद से इस्तीफा देकर पीएम पद की शपथ ली थी. उस दौरान भारत की राजनीति में भूचाल आया था.
कोई भी पार्टी सरकार नहीं बना पा रही थी. गठबंधन से सरकार बनाई जाती और टूट जाती. कुछ ऐसा ही एचडी देवगौड़ा के साथ भी हुआ था. वो एक्सीडेंटली पीएम बने थे. उन्हें उम्मीद भी नहीं थी कि वो देश की बागडोर संभालने वाले हैं.
गिर गई वाजपेयी की सरकार
साल 1996 में देश में लोकसभा चुनाव होता है. किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिलता. भारतीय जनता पार्टी को सबसे ज्यादा 161 सीटें मिली थीं. किसी पार्टी के पास बहुमत न होने की वजह से बीजेपी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया गया. 16 मई 1996 को अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते हैं. शपथ के 13 दिनों में ही उनकी सरकार गिर जाती है.
13 दलों ने मिलकर बनाई सरकार
वाजपेयी के इस्तीफे के तीन दिन बाद ही एचडी देवगौड़ा प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते हैं. लोकसभा चुनाव में बीजेपी के बाद कांग्रेस 141 तो जनता दल 46 सीटें जीतने में कामयाब रही थी. वाजपेयी ने इस्तीफा दिया. कांग्रेस को सरकार बनाने को कहा गया लेकिन उसने मना कर दिया. दिल्ली की राजनीति में हलचल तेज होने लगी थी. बीजेपी और कांग्रेस के इतर एक तीसरा फ्रंट जिसे संयुक्त मोर्चा कहा जा रहा था तैयार हो गया था. इस तीसरे मोर्चे में जनता दल, समाजवादी पार्टी, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) और तेलुगू देशम पार्टी (TDP) जैसी कुल 13 दल शामिल थे.
पीएम बनने के लिए कोई नहीं हुआ तैयार
कांग्रेस ने सरकार बनाने से मना किया तो संयुक्त मोर्चा को सरकार बनाने का मौका मिला. लेकिन सवाल ये उठा कि प्रधानमंत्री किसे बनाया जाए. विश्वनाथ प्रताप सिंह ने प्रधानमंत्री बनने से मना कर दिया था. उन पर पीएम पद का ऑफर स्वीकार करने के लिए दबाव बनाया जा रहा था. लेकिन उन्होंने साफ मना कर दिया था. तीसरे फ्रंट यानी संयुक्त मोर्चा को कांग्रेस बाहर से समर्थन दे रही थी.
ऐसे पीएम बने एचडी देवगौड़ा
वीपी सिंह मना कर चुके थे. ज्योति बसु की पार्टी उन्हें पीएम बनाने पर राजी नहीं हुई. चंद्रबाबू नायडू के नाम पर चर्चा हुई लेकिन उन्होंने कहा कि उनके पास सीएम है ऐसे में वो पीएम पद की शपथ नहीं ले सकते है. ऐसा कहकर उन्होंने पीएम पद का ऑफर ठुकरा दिया. कई नामों की चर्चा हुआ लेकिन कोई पीएम नहीं बना. इसी बीच तमिलनाडु भवन में बैठक हुई यहां किसी ने एच देवगौड़ा का नाम लिया. लेकिन उनके नाम पर उनके करीबी राम कृष्ण ने ही असहमति जताई. लेकिन उत्तर भारत के मुलायम सिंह और लालू यादव ने एचडी देवगौड़ा का समर्थन किया. इन दोनों नेताओं के बाद अन्य दलों ने भी एचडी देव गौड़ा को पीएम बनाने पर सहमति जताई. किसी को कोई आपत्ति नहीं हुई तो 46 सीटें पाने वाली यूनाइटेड फ्रंट में शामिल जनता दल के एचडी देवगौड़ा को पीएम बनाने पर सहमति बन गई. और इस तरह वह देश के 11वें प्रधानमंत्री बने.
कांग्रेस ने कर दिया खेला और देना पड़ा इस्तीफा
एचडी देवगौड़ा पीएम बन गए लेकिन 10 महीनों में ही उनकी सरकार गिर गई. बाहर से समर्थन दे रही कांग्रेस ने अपना समर्थन वापस ले लिया था. सरकार अल्पमत में आ गई थी. विश्वास मत में उनके पक्ष में 158 जबकि विपक्ष में 292 वोट ही पड़े थे. मई 1996 में पीएम बने एचडी देवगौड़ा को 21 अप्रैल 1997 को पीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा.