क्या राहुल गांधी के मैदान छोड़ने से एकतरफा हो गई है अमेठी की लड़ाई, या प्रियंका ने पलट दी है बाजी?
अमेठी से कांग्रेस उम्मीदवार किशोरी लाल शर्मा के लिए प्रियंका गांधी बेहद जमीनी स्तर पर प्रचार कर रही हैं. वह लगभग हर एक मतदाता तक पहुंचने की कोशिश कर रही हैं.
अगर आप यह सोच रहे हैं कि राहुल गांधी के अमेठी में न लड़ने से अमेठी की लड़ाई एकतरफा हो गई है तो आप गलत हैं. अमेठी का चुनाव इस बार बेहद दिलचस्प रहने वाला है. 2019 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी को अमेठी से हराकर सबसे अधिक चर्चा बंटोरने वाली बीजेपी उम्मीदवार स्मृति ईरानी के लिए इस बार अमेठी की लड़ाई बेहद कठिन होने जा रही है.
राहुल गांधी के रायबरेली जाने से नाराज थे अमेठी के लोग
राहुल गांधी के रायबरेली से चुनाव लड़ने के ऐलान के बाद अमेठी के कांग्रेस समर्थक कुछ नाराज हो गए थे. वे 2019 की भूल को इस बार सुधारना चाहते थे, लेकिन प्रियंका गांधी के अमेठी में माइक्रो लेवल पर रात-दिन किए जा रहे चुनाव प्रचार ने उनकी नाराजगी को दूर कर दिया.
क्या प्रियंका गांधी ने बदल दी हवा
अमेठी से कांग्रेस उम्मीदवार किशोरी लाल शर्मा के लिए प्रियंका गांधी बेहद सूक्ष्म स्तर पर प्रचार कर रही हैं. वह लगभग हर एक मतदाता तक पहुंचने की कोशिश कर रही हैं. जमीनी स्तर पर उनके इस चुनाव प्रचार ने अमेठी के माहौल को शर्मा के पक्ष में करने का काम किया है.
किशोरी लाल शर्मा पिछले 40 सालों से गांधी परिवार के वफादार रहे हैं. शर्मा की छवि स्मृति ईरानी से एकदम अलग है. दोनों उम्मीदवारों का प्रचार करने का तरीका भी एक दूसरे से एकदम अलग है.
शर्मा बेहद शांत और संयमित हैं. वह छोटी-छोटी सभा कर अमेठी की हवा को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रहे हैं. लोगों को अमेठी से अपने जुड़ाव को बताने की कोशिश कर रहे हैं. अपनी रैली में वह कह रहे हैं, 'मैं अमेठी का नेता हूं, बेटा हूं.'
वहीं दूसरी तरफ स्मृति ईरानी की छवि अमेठी के लोगों के बीच एक फायरब्रांड नेता की है. पीएम मोदी की तरह वह अपने भाषणों में कांग्रेस पर हमलावर रहती हैं और उनकी खामिया गिनाकर अमेठी के लोगों से जुड़ने की कोशिश कर रही हैं. स्मृति कह रही हैं कि गांधी परिवार का अमेठी से न लड़ना बताता है कि उन्होंने चुनाव से पहले ही हार मान ली है.
अमेठी का गांधी परिवार से जुड़ाव
1967 में अस्तित्व में आई अमेठी ने अब तक 16 लोकसभा चुनाव देखे हैं. गैर कांग्रेसी उम्मीदवार यहां केवल 3 बार जीता हैं. इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी ने 1980 में पहली बार यहीं से चुनाव लड़ा था. संजय गांधी की मौत के बाद उनके बड़े बेटे राजीव ने यहां से उपचुनाव लड़ा और जीत दर्ज की. 1991 में अपनी मौत तक राजीव गांधी ने अमेठी सीट का प्रतिनिधित्व किया.
1998 में यहां से गांधी परिवार के करीबी सतीश शर्मा ने चुनाव लड़ा लेकिन वो बीजेपी के संजय सिंह से हार गए. 1999 में राजीव गांधी की विधवा सोनिया गांधी ने भी अमेठी से चुनाव लड़कर राजनीति में एंट्री की. हालांकि 2004 में उन्होंने अपने बेटे के लिए इस सीट को छोड़ दिया. राहुल गांधी ने लगातार 2014 तक यहां से चुनाव जीता लेकिन 2019 में वह स्मृति ईरानी से चुनाव हार गए.
लेकिन क्या राहुल गांधी की हार से यह साबित हो गया है कि गांधी परिवार का वजूद अब अमेठी में खत्म हो गया है?
इस सवाल पर कांग्रेस के प्रचारक और पूर्व एमएलसी दीपक सिंह कहते हैं कि सच्चाई ये है कि अमेठी अभी भी कांग्रेस का गढ़ है. वे कहते हैं कि 2019 में भले ही यहां के मतदाता बहक गए हों लेकिन वे अब समझ चुके हैं कि कोई बाहरी परिवार की जगह नहीं ले सकता.
क्या कह रहे हैं अमेठी के मतदाता
गौरीगंज के एक दुकानदार कहते हैं कि अमेठी में जो भी हुआ है वह कांग्रेस की ही देन है. गांधी परिवार के साथ अमेठी के रिश्ते और 2024 में कांग्रेस की संभावनाओं पर बात करते हुए एक फूड स्टॉल के मालिक राम कुमार राय कहते हैं कि कांग्रेस अमेठी के मतदाताओं के लिए एक परिवार की तरह है. कोई अपने परिवार के किसी सदस्य से कब तक नाराज रह सकता है. लोगों की बातों से साफ जाहिर है कि वह इस बार राहुल के दूत किशोरी लाल शर्मा का गर्मजोशी से स्वागत की तैयारी कर चुके हैं.