जहां दशकों तक किया राज, वहीं 17 सीटों पर सिमटी कांग्रेस; मजबूरी या भविष्य के लिए जरूरी?
Congress Rule in UP For Decades: उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 80 सीटें हैं. जब उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश एक था, तब 85 सीटें हुई करती थीं. एक वक्त ऐसा भी था, जब कांग्रेस ने यूपी (संयुक्त उत्तराखंड) में 85 में से 83 सीटों पर जीत दर्ज की थी. आज स्थिति ये है कि बंपर जीत की तो छोड़िए, कांग्रेस मात्र 17 सीटों पर ही चुनाव लड़ रही है. आइए, समझते हैं कि जहां कांग्रेस ने दशकों तक राज किया, वहां पार्टी 17 सीटों पर कैसे सिमट गई?
Congress Rule in UP For Decades: उत्तर प्रदेश में एक वक्त ऐसा भी था, जब कांग्रेस का सिक्का चलता था. एक वक्त में, जब उत्तराखंड अलग नहीं हुआ था, तब कांग्रेस ने यूपी की 85 में से 83 सीटों पर कब्जा जमाया था. लेकिन वो साल दूसरा था, ये साल दूसरा है. कांग्रेस के उस दौरान के करिश्माई सफलता को दोहराना तो छोड़िए, अब पार्टी यूपी के 80 में से मात्र 17 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. पिछले चुनाव यानी 2019 की बात की जाए, तो कांग्रेस इस बार जिन 17 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, उन सीटों पर 2019 के नतीजों को देखेंगे, तो सोच में पड़ जाएंगे कि इन 17 में से कितनी सीटों पर कांग्रेस एक बार फिर कब्जा जमा पाएगी.
2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने यूपी की 80 में से 67 सीटों पर चुनाव लड़ा था. इनमें से से 63 लोकसभा सीटों पर तो कांग्रेस प्रत्याशियों की जमानत भी जब्त हो गई थी. अब कांग्रेस 2024 में जिन 17 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, उनमें से 12 सीटें ऐसी थीं, जहां कांग्रेस के उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई थी. खुद राहुल गांधी कांग्रेस का गढ़ माने जाने वाली अमेठी से चुनाव हार गए थे. सवाल ये कि कांग्रेस आखिर यूपी की 80 में से 17 सीटों पर ही क्यों सिमट गई. क्या ये कांग्रेस के लिए मजबूरी है या फिर भविष्य के लिए जरूरी है? आइए समझते हैं.
कांग्रेस ने पिछले यानी 2019 के लोकसभा चुनाव में यूपी में जैसा प्रदर्शन किया था, उस हिसाब से अखिलेश यादव इंडिया गठबंधन के तहत इतनी भी सीटें नहीं देना चाहते थे. काफी मान-मन्नोवल और बैठकों के दौर के बाद अखिलेश यादव 17 सीटों पर राजी हुए. अब इसे कांग्रेस की मजबूरी भी कहा जा सकता है, क्योंकि लोकसभा चुनाव से पहले 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस का प्रदर्शन बहुत खास नहीं रहा था. शायद इसी को आधार बनाकर अखिलेश यादव ने इंडिया गठबंधन के तहत कांग्रेस को मात्र 17 सीटें दीं.
कांग्रेस के 17 सीटों पर चुनाव लड़ने के फैसले को पार्टी के भविष्य के रूप में भी देखा जा सकता है. क्योंकि पिछले विधानभा और लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रदर्शन के बारे में सभी को पता है. ऐसे में कांग्रेस ने अपने भविष्य के लिए ये फैसला किया होगा कि कम से कम गठबंधन के तहत चुनाव लड़ने से समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी से तो टक्कर नहीं होगी. पार्टी के उम्मीदवार को मुख्य रूप से भाजपा और बसपा के उम्मीदवार से ही टक्कर लेना होगा.
यूपी में कब रहा था कांग्रेस का वर्चस्व, कैसे घटा जनाधार?
उत्तर प्रदेश में एक वक्त ऐसा भी था, जब कांग्रेस का वर्चस्व रहा था. 33 साल तक उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार रही. शुरुआत से लेकर आज तक गांधी-नेहरू परिवार उत्तर प्रदेश से ही चुनाव लड़ता आया. पहली बार है कि सोनिया गांधी राजस्थान से राज्यसभा चलीं गईं और 2019 में पहली बार था कि राहुल गांधी अमेठी के साथ-साथ केरल के वायनाड सीट से चुनाव लड़े. इस बार भी राहुल गांधी रायबरेली के अलावा वायनाड से कांग्रेस के प्रत्याशी हैं.
बात 1984 की है, जब कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में संयुक्त उत्तर प्रदेश की 85 सीटों में से 83 पर जीत हासिल की थी. उस साल कांग्रेस का वोट परसेंटेज 51 फीसदी थी. आज स्थिति ये है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का एक भी सांसद नहीं है, जबकि विधानसभा में भी मात्र 2 विधायक हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मात्र 6.4 और 2022 विधानसभा चुनाव में 2.3 फीसदी वोट मिले थे.
1984 के बाद जब नवंबर 1989 में देश में लोकसभा चुनाव हुए तो एक टर्म पहले 85 में से 83 सीट जीतने वाली कांग्रेस मात्र 15 सीटों पर सिमट गई. इसी साल हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस यूपी में 269 में से 94 सीटों पर सिमट गई. ये वही साल था, जब केंद्र और उत्तर प्रदेश यानी दोनों जगहों की सत्ता से कांग्रेस को बेदखल होना पड़ा.
पिछले 34 साल में यूपी लोकसभा में ऐसे घटा कांग्रेस का वोट शेयर
1989 से लेकर 2024 तक यानी 34 साल में उत्तर प्रदेश लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का वोट शेयर 44.6 फीसदी तक गिर गया है.
साल | वोट शेयर |
1985 | 51 |
1989 | 31.8 |
1991 | 18 |
1995 | 8.1 |
1998 | 6 |
1999 | 14.7 |
2004 | 12 |
2009 | 18.3 |
2014 | 7.5 |
2019 | 6.4 |
आखिर क्या वजह है, जो कांग्रेस की ऐसी स्थिति हुई?
संगठन के नाम पर फिसड्डी: राजनीतिक जानकारों की मानें तो किसी पार्टी की हार और जीत में संगठन की बड़ी भूमिका होती है. एक वक्त में कांग्रेस के पास भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ जैसा संगठन था. यही वजह थी कि उसने 85 में से 83 सीटों पर कब्जा जमाया. लेकिन धीरे-धीरे स्थितियां बिगड़ती गई और कांग्रेस ने संगठन पर ध्यान नहीं दिया. आज जो स्थिति है, वो किसी से छिपी नहीं है.
क्षेत्रीय दलों के प्रभाव ने खत्म किया कांग्रेस का वर्चस्व: कांग्रेस के शुरुआती दिग्गज लीडर सीधे तौर पर यूपी से दिल्ली की राजनीति नहीं करते थे, बल्कि वे दिल्ली में बैठकर उत्तर प्रदेश को मैनेज करते थे. शायद यही वजह थी कि उत्तर प्रदेश में बसपा और सपा जैसे क्षेत्रीय दलों का उदय हुआ. कुछ ही समय में इन क्षेत्रीय दलों का प्रभाव इतना ज्यादा हो गया कि सूबे से कांग्रेस की राजनीति ही खत्म हो गई. अब स्थिति ये है कि कांग्रेस कभी बुआ (मायावती) के साथ तो कभी बबुआ (अखिलेश यादव) के साथ गठबंधन कर उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ती है.
हालांकि, 2022 के विधानसभा चुनाव में प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश में फोकस किया था, लेकिन तब तक उत्तर प्रदेश से क्षेत्रीय दलों का वर्चस्व खत्म हो गया था और उनकी जगह भाजपा ने ले ली थी.
उत्तर प्रदेश की किन 17 सीटों पर चुनाव लड़ रही कांग्रेस?
लोकसभा सीट | प्रत्याशी |
कानपुर | आलोक मिश्रा |
अमेठी | केएल शर्मा |
रायबरेली | राहुल गांधी |
फतेहपुर सीकरी | राम नाथ सिकरवार |
बाराबंकी | तनुज पुनिया |
गाजियाबाद | डॉली शर्मा |
सीतापुर | राकेश राठौर |
मथुरा | मुकेश धनगर |
बुलंदशहर | शिवराम वाल्मीकि |
झांसी | प्रदीप जैन आदित्य |
अमरोहा | दानिश अली |
वाराणसी | अजय राय |
महाराजगंज | वीरेंद्र चौधरी |
इलाहाबाद | उज्जवल रेवती रमण सिंह |
देवरिया | अखिलेश प्रताप सिंह |
सहारनपुर | इमरान मसूद |
बांसगांव | सदल प्रसाद |