राम विलास पासवान का गढ़ कही जानी वाली हाजीपुर लोकसभा सीट से इस बार उनके बेटे चिराग पासवान चुनाव में उतरे हैं. बॉलीवुड से राजनीतिक तक का सफर तय करने वाले चिराग पासवान अपनी जीत की दावेदारी ठोकते हुए हाजीपुर से प्रत्याशी बने हैं. इस सीट पर साल 1977 से 2014 के बीच राम विलास पासवान कई बार चुनाव जीते. साल 2019 में इसी हाजीपुर लोकसभा सीट से रामविलास पासवान के भाई पशुपति पारस ने अपनी जीत का परचम लहराया. इसे आप राम विलास पासवान की परंपरागत सीट कह सकते हैं और इसे वह अपना गढ़ भी मानते थे.
शायद यही वह वजह रही, जिसके कारण इस बार के लोकसभा चुनाव में चाचा-भतीजे (पशुपति पारस और चिराग पासवान) के बीच जमकर खींचतान हुई लेकिन आखिरी बाजी भतीजे के हाथ लगी. दरअसल, बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए ने चिराग पासवान की पार्टी को 5 सीटें दी हैं. साल 2019 में जमुई लोकसभा सीट पर जीत दर्ज करने वाले चिराग, इस बार हाजीपुर लोकसभा सीट से चुनावी मैदान में उतरे हैं. उनके खिलाफ INDIA गठबंधन के उम्मीदवार शिवचंद्र राम का दावा है कि हाजीपुर के इतिहास को बदल देंगे.
यहां बात हो रही है लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष, 9 बार लोकसभा सांसद और 2 बार राज्यसभा सांसद रहे राम विलास पासवान की. उन्होंने साल 1969 में DSP के पद की जगह राजनीति को चुना. 'सदाबहार' या 'मौसम वैज्ञानिक' कहे जाने वाले राम विलास का छह प्रधानमंत्रियों के साथ काम करने का अनूठा रिकॉर्ड भी रहा है. राम विलास पहली बार 1969 में विधायक बने और फिर वहां से इन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा. साल 1977 में हाजीपुर लोकसभा सीट से उन्होंने पहली बार मतों के विश्व रिकॉर्ड के अंतर से जीत हासिल की और लोकसभा पहुंचे. इसी चुनाव में जीत के बाद उनका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज हुआ.
हाजीपुर के होकर रह गए थे राम विलास
केंद्रीय मंत्री रहे राम विलास पासवान पहली बार साल 1977 में हाजीपुर आए और तब से हाजीपुर के होकर रह गए. दो-दो बार विश्व रिकॉर्ड मतों के अंतर से जीत हासिल की और कई बार उसी लोकसभा सीट से संसद तक पहुंचे. वह अपनी बैठक में और जनसभाओं में बार-बार कहते थे, 'हाजीपुर की मिट्टी के कण-कण से मां-बेटे का रिश्ता है जो कि अटूट है. हाजीपुर की मिट्टी की सेवा, मैं मां की सेवा की तरह करता हूं और आगे भी करता रहूंगा.'
इस मामले में राम विलास पासवान अपनी बात पर बने भी रहे. 1977 में पहली बार हाजीपुर के सासंद बने राम विलास अपने जीवन के अंत तक हाजीपुर से जुड़े रहे. 2019 के लोकसभा चुनाव में शारीरिक कष्ट के कारण, अपने छोटे भाई पशुपति पारस को अपने प्रतिनिधि के रूप में हाजीपुर लोकसभा सीट पर जीत दर्ज करवाई. अब उनके इस दुनिया में ना रहने के बाद भी उनके पुत्र चिराग पासवान भी इसी सीट पर चुनाव लड़ रहे हैं.
मौसम वैज्ञानिक का तमगा
केंद्रीय मंत्री रहे राम विलास पासवान में छात्र जीवन से ही बिहार और देश की राजनीति के साथ-साथ समाज के लोगों की जरूरत को पहचानने की अद्भुत शक्ति थी. शायद यही वह कारण था कि उन्होंने एक गरीब परिवार से निकलकर न केवल बिहार ही बल्कि संपूर्ण राष्ट्र में अपनी एक अलग राजनीतिक पहचान बनाई. अपने जीवन के लगभग 50 वर्षों से अधिक समय भारत की सक्रिय राजनीति में लगाए थे और जीवन पर्यंत लोगों के चहेते बने रहे. इतना ही नही सांसद बनने के साथ-साथ प्रधानमंत्री वीपी सिंह की सरकार में पहली बार मंत्री बने और तब से लगातार अलग-अलग सरकारों में मंत्री पद पर बने रहे.
बहरहाल, चिराग पासवान को जहां सवर्ण जातियों के साथ-साथ मोदी और नीतीश के नाम और बीजेपी के कैडर वोटों का सहारा है, वहीं शिवचंद्र राम को अपने वोट बैंक पर भरोसा है. अब इनके भरोसा पर मतदाता कितने खरे उतरते हैं, यह तो 4 जून को चुनाव परिणाम के बाद ही पता चलेगा. हाजीपुर में पांचवें चरण में 20 मई को मतदान होना है. अपने केलों के लिए मशहूर बिहार का ये हाजीपुर संसदीय क्षेत्र, उसी वैशाली जिले का हिस्सा है जिसने दुनिया को लोकतंत्र का पाठ पढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. गंगा और गड़क नदियों के संगम वाला, यह क्षेत्र शुरू से ही समाजवादियों के प्रभाव वाला क्षेत्र माना गया है. शायद यही वो कारण है कि यहां के चुनाव कई मुद्दों पर लड़े जाते हैं.
क्या है हाजीपुर का गणित?
हाजीपुर संसदीय क्षेत्र में लगभग 19.53 लाख से ज्यादा मतदाता हैं. इस लोकसभा में छह विधानसभा क्षेत्र आते हैं. जिसमें हाजीपुर, लालगंज, महुआ, राजापाकर, राघोपुर और मनहार विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं. अगर विधानसभा के परिणाम पर नजर डालें, तो BJP को छह में से सिर्फ दो सीटें मिली थीं. बाकी 4 चार सीटें महागठबंधन वाली पार्टी, यानी 3 RJD और 1 सीट INC को मिली है. बहरहाल, चिराग पासवान को जहां सवर्ण जातियों के साथ-साथ मोदी, नीतीश के नाम और बीजेपी के काडर वोटों का सहारा है.