राजस्थान की बाड़मेर लोकसभा सीट इन दिनों सबसे ज्यादा चर्चा में हैं. इसी लोकसभा सीट में आने वाली शिव विधानसभा से निर्दलीय विधायक चुने गए रविंदर सिंह भाटी ने लोकसभा चुनाव में उतरकर न सिर्फ चुनाव को त्रिकोणीय बना दिया है बल्कि केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी की सांसें भी अटका दी हैं. हालात ऐसे बन गए हैं कि अब बीजेपी इसी सीट से सांसद रहे मानवेंद्र सिंह जसोल को कैसे भी करके पार्टी में लाना चाहती है. वहीं, कांग्रेस पार्टी ने इस बार बाड़मेर सीट से उमेदा राम बेनीवाल को चुनाव में उतारा है. बीजेपी को उम्मीद है कि मानवेंद्र सिंह के लौटने से कांग्रेस की तरफ जा सकने वाला वोट उसके साथ आएगा और वह रविंद्र सिंह भाटी की बगावत के असर को भी कम कर सकेगी.
साल 2004 में मानवेंद्र सिंह इसी सीट से बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीते थे और सांसद बने थे. 2009 में वह कांग्रेस के हरीश चौधरी से चुनाव हार गए. 2013 में वह शिव विधानसभा से बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ा और विधायक बने. हालांकि, 2018 में उन्होंने बीजेपी से इस्तीफा दे दिया. उसी साल विधानसभा चुनाव में वह कांग्रेस में शामिल हुए और झालरापाटन सीट पर वसुंधरा राजे के खिलाफ चुनाव लड़ गए. चुनाव हारे लेकिन कांग्रेस ने उन्हें 2019 में बाड़मेर से लोकसभा का चुनाव लड़ाया. अब वह कांग्रेस से खुश नहीं हैं और बीजेपी में लौटने को तैयार हैं.
क्या है बाड़मेर का समीकरण?
बाड़मेर लोकसभा सीट में कुल 8 विधानसभा सीटें हैं. इसमें से 2023 के चुनाव में बीजेपी ने पांच सीटें जीती थीं. एक पर कांग्रेस के हरीश चौधरी, एक पर शिवसेना की प्रियंका चौधरी तो एक पर निर्दलीय रविंदर सिंह भाटी को जीत मिली थी. यहां के 22 लाख मतदाताओं में 4.5 लाख जाट हैं. जाटों के अलावा 3 लाख राजपूत, 2.7 लाख मुस्लिम और 4 लाख SC-ST भी हैं. ओबीसी मतदाता 6.5 लाख हैं.
कांग्रेस और बीजेपी ने जहां जाट उम्मीदवारों को उतारा है. वहीं, राजपूत समुदाय से आने वाले रविंदर सिंह भाटी ने सबका गणित बिगाड़ दिया है. युवाओं के बीच जबरदस्त लोकप्रिय रविंदर सिंह भाटी उन राज्यों में भी प्रचार कर रहे हैं जहां बाड़मेर के प्रवासी नागरिक रहते हैं.
कैसा रहा है प्रत्याशियों का करियर?
कैलाश चौधरी 2019 में इस सीट से पहली बार चुनाव जीते थे. पीएम मोदी ने उन्हें अपनी कैबिनेट में भी जगह दी. रविंदर सिंह भाटी बीजेपी से ही टिकट चाह रहे थे लेकिन बीजेपी ने कैलाश चौधरी पर दोबारा भरोसा जताया है. वहीं, हाल ही में अपनी पत्नी को हादसे में खो देने वाले मानवेंद्र सिंह को टिकट न देकर कांग्रेस ने उमेदाराम बेनीवाल को चुनाव में उतारा है. इन दोनों को युवा रविंद्र सिंह भाटी जबरदस्त चुनौती दे रहे हैं.
कैसा रहा है बाड़मेर का इतिहास?
भारत-पाकिस्तान की सीमा पर बसी इस लोकसभा सीट को लंबे समय तक कांग्रेस का गढ़ माना जाता रहा है. अब तक हुए 17 चुनावों में 9 बार कांग्रेस तो 3 बार बीजेपी को जीत हासिल हुई है. वहीं, जनता दल, जनता पार्टी और राम राज्य परिषद को एक-एक बार जीत हासिल हुई है. इस सीट से दो बार निर्दलीय उम्मीदवार भी चुनाव जीत चुके हैं.
साल | विजेता | पार्टी |
1952 | भवानी सिंह | निर्दलीय |
1957 | रघुनाथ सिंह बहादुर | निर्दलीय |
1962 | तान सिंह | राम राज्य परिषद |
1967 | अमृत नहाटा | कांग्रेस |
1971 | अमृत नहाटा | कांग्रेस |
1977 | तान सिंह | जनता पार्टी |
1980 | विर्धी चंद जैन | कांग्रेस (I) |
1984 | विर्धी चंद जैन | कांग्रेस |
1989 | कल्याण सिंह कालवी | जनता दल |
1991 | राम निवास मिर्धा | कांग्रेस |
1996 | सोना राम | कांग्रेस |
1998 | सोना राम | कांग्रेस |
1999 | सोना राम | कांग्रेस |
2004 | मानवेंद्र सिंह | बीजेपी |
2009 | हरीश चौधरी | कांग्रेस |
2014 | सोना राम | बीजेपी |
2019 | कैलाश चौधरी | बीजेपी |