मतदाताओं की अंगुली में नीली स्याही लगाने का कब से शुरू हुआ सिलसिला, अबकी बार 55 करोड़ रुपये होंगे खर्च
Lok Sabha Election 2024: चुनाव में वोट डालने वाले मतदाताओं के अंगुली पर नीली स्याही लगाई जाती है. 1951-52 में स्याही लगाने का कोई नियम नहीं था. लेकिन दूसरे की जगह वोट डालने और दो बार वोट डालने की शिकायतों के बाद आयोग ने कई विकल्पों पर विचार किया.
Lok Sabha Election 2024 : लोकसभा चुनाव में मतदान पत्रों के द्वारा वोट देने की शुरुआती परंपरा थी. इस काम में हजारों मिट्रिक टन कागज के साथ ही स्याही और श्रम एक साथ कई चीजें खराब होती थी. इसके खर्च को कम करने के लिए चुनाव आयोग ईवीएम लेकर आया. अब एक ऐसी चीज है जिसके इस्तेमाल में चुनाव आयोग की भारी भरकम रकम खर्च होती है और वो है चुनाव में इस्तेमाल होने वाली अमिट स्याही. अबकी बार के आम चुनाव में इसके लिए खर्च पिछली बार की तुलना में 66 फीसदी बढ़ गया है.
2019 के आम चुनाव के लिए आयोग ने स्याही की 26 लाख शीशियां खरीदी थीं, जिस पर 33 करोड़ रुपये का खर्च आया था. इस बार आयोग ने करीब 55 करोड़ रुपये से 26.55 लाख स्याही की शीशियां खरीदी हैं. स्याही पर खर्च के बढ़ने का प्रमुख कारण सिल्वर नाइट्रेट है, जो स्याही का प्रमुख घटक है. इसकी कीमत बढ़ने के कारण खर्च में वृद्धि हुई है. स्याही बनाने वाली देश की एकमात्र कंपनी मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लि. (एमपीवीएल) की मानें तो चुनाव आयोग के आदेश पर 25 मार्च तक सभी राज्यों को उनके हिस्से की स्याही पहुंचा दी गई है.
1962 में पहली बार हुआ स्याही का इस्तेमाल
साल 1962 के आम चुनाव में पहली बार इस नीली और अमिट स्याही का इस्तेमाल किया गया. तब 3. 89 लाख शीशियों का उपयोग हुआ था. इस पर 2.27 लाख रुपये खर्च हुए थे. इस साल यानी 2024 में अमिट स्याही के भारतीय चुनावों में इस्तेमाल के 62 साल हो जाएंगे.
चुनाव में धांधली रोकने के लिए अमिट स्याही का इस्तेमाल
मतदाताओं के अंगुली में स्याही लगाने का नियम पहले आम चुनाव 1951-52 में नहीं था. चुनाव में आयोग को कई लोगों ने शिकायत की. कहा कि बहुत सारे लोग दो बार से अधिक वोट डाल रहे हैं और बहुत सारे लोग दूसरों के वोट डाल रहे हैं. इसके बाद चुनाव आयोग ने चुनाव में धांधली को रोकने के लिए कई विकल्पों पर विचार किया, लेकिन समाधान अमिट स्याही के रूप में सामने आया.
चुनाव आयोग ने नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी ऑफ इंडिया (एनपीएल) से ऐसी स्याही बनाने की बात की, जो पानी या किसी रसायन से भी मिट न सके. एनपीएल ने मैसूर पेंट एंड वार्निश कंपनी को स्याही बनाने का ऑर्डर दिया. इसके बाद 1962 से अब तक एमपीवीएल ही अमिट स्याही की सप्लाई करती आ रही है. मैसूर पेंट्स 30 से अधिक देशों में इस स्याही का निर्यात भी करता है.
अमिट स्याही बनाने का दूसरा कोई नहीं जानता फॉर्मूला
इस स्याही के बारे में यह भी कहा जाता है कि इसको बनाने में कितने कैमिकलों के मिश्रण का इस्तेमाल किया जाता है. इसके बार में कोई नहीं जानता. क्योंकि मैसूर पेंट एंड वार्निश लि. ने इस स्याही को बनाने के तरीके को कभी किसी के साथ साझा नहीं किया. इसका कारण बताया गया कि अगर फॉर्मूले को सार्वजनिक किया गया, तो लोग इसके मिटाने का तरीका खोज लेंगे और इसका उद्देश्य ही खत्म हो जाएगा.
जानकारों का क्या है दावा?
इसके बावजूद कुछ जानकारों का कहना है कि स्याही बनाने में सिल्वर नाइट्रेट का इस्तेमाल किया जाता है. इंक को तैयार करने में पूरी सुरक्षा और गोपनीयता का ख्याल रखा जाता है. इंक का फॉर्मूला क्वालिटी मैनेजर के पास होता है. इसे किसी के साथ शेयर नहीं किया जाता. यही वजह है कि कंपनी ने पिछले पांच दशक से अपनी साख बना रखी है.
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