भारत में शिक्षा प्रणाली में बड़ा बदलाव आने वाला है. केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने सीबीएसई के साथ विचार-विमर्श करते हुए अगले शैक्षणिक सत्र से साल में दो बार बोर्ड परीक्षाएं आयोजित करने की योजना बनाई है. यह कदम छात्रों को परीक्षा के तनाव से राहत देने और उनके प्रदर्शन में सुधार के अधिक अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से उठाया जा रहा है.
केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने हाल ही में एक उच्च स्तरीय बैठक में कहा कि इस प्रस्ताव को जल्द ही सार्वजनिक परामर्श के लिए रखा जाएगा.
1. परीक्षा के तनाव में कमी
छात्रों को परीक्षा के तनाव से निपटने में मदद मिलेगी क्योंकि उनके पास दो अवसर होंगे. यदि कोई छात्र पहली परीक्षा में अपेक्षित प्रदर्शन नहीं कर पाता, तो वह दूसरी परीक्षा में सुधार कर सकता है.
2. लचीले परीक्षा विकल्प
यह नई प्रणाली छात्रों को अपनी सुविधा के अनुसार परीक्षा देने की स्वतंत्रता देगी. वे अपनी तैयारी और मानसिक स्थिति के अनुसार किसी एक या दोनों परीक्षाओं में शामिल हो सकते हैं.
3. सुधार का अवसर
छात्रों को अपने सर्वोत्तम प्रदर्शन के आधार पर अंक चुनने की सुविधा मिलेगी. यह ठीक उसी तरह होगा जैसे जेईई परीक्षा में कई प्रयास करने का अवसर मिलता है. केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने भी कहा है. 'छात्र अपने सर्वोत्तम स्कोर को चुन सकते हैं... लेकिन यह पूरी तरह वैकल्पिक होगा, कोई बाध्यता नहीं होगी.'
4. विषयों की कठिनाई स्तर में विविधता
गणित और विज्ञान जैसे विषयों को विभिन्न कठिनाई स्तरों पर उपलब्ध कराया जाएगा, जिससे छात्रों के लिए बेहतर प्रदर्शन करने के अवसर बढ़ेंगे.
फिलहाल, शिक्षा मंत्रालय द्वारा तीन संभावित तरीकों पर विचार किया जा रहा है;
पहला विकल्प: सेमेस्टर प्रणाली के तहत जनवरी-फरवरी में पहली परीक्षा और मार्च-अप्रैल में दूसरी परीक्षा आयोजित की जाए.
दूसरा विकल्प: पूरक या सुधार परीक्षा के रूप में जून में दूसरी परीक्षा आयोजित की जाए.
तीसरा विकल्प: परीक्षा प्रणाली में अन्य बदलाव करके छात्रों को अधिक अवसर दिए जाए.
अभी कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है, लेकिन शिक्षा मंत्रालय जल्द ही विस्तृत योजना जारी करेगा.
दो बोर्ड परीक्षाओं की यह प्रणाली छात्रों के लिए वरदान साबित हो सकती है, क्योंकि यह न केवल उनके तनाव को कम करेगी, बल्कि उन्हें अपने प्रदर्शन में सुधार के अधिक अवसर भी देगी. हालांकि, यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इससे पढ़ाई का अतिरिक्त बोझ न बढ़े और छात्र इसे अपनी सुविधा के अनुसार अपनाने के लिए स्वतंत्र हों.