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JEE Advanced 2025: जेईई एडवांस देना है दोबारा? कितनी बार कर पाएंगे अटेम्पट? जानें सुप्रीम कोर्ट ने संख्या बढ़ाने वाली याचिका पर क्या कहा

अगर आप भी संयुक्त प्रवेश परीक्षा (एडवांस्ड) की परीक्षा देने वाले हैं तो यह आपके लिए बहुत जरुरी खबर है. अटेम्पट संख्या को लेकर कुछ महीनों से कई तरह की चीजे चल रही है. यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट में है. जिस पर सर्वोच्च अदालत ने अपना फैसला सुना दिया है.

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Edited By: Reepu Kumari
JEE Advanced 2025
Courtesy: Pinteres

JEE Advanced 2025: सुप्रीम कोर्ट ने संयुक्त प्रवेश परीक्षा (एडवांस्ड) के प्रयासों की संख्या तीन से घटाकर दो करने के परीक्षा प्राधिकरण संयुक्त प्रवेश बोर्ड (जेएबी) के निर्णय में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है. न्यायालय ने यह आदेश जेएबी के नवंबर के निर्णय को चुनौती देने वाले उम्मीदवारों द्वारा दायर रिट याचिका के जवाब में पारित किया, जिसमें प्रतियोगी परीक्षा के लिए प्रयासों की सीमा को कम करने का निर्णय लिया गया था. न्यायालय ने शुक्रवार को परीक्षा के प्रयासों की संख्या तीन से घटाकर दो करने के खिलाफ दायर याचिका की जांच करने पर सहमति जताई.

संयुक्त प्रवेश बोर्ड ने 5 नवंबर, 2024 को घोषणा की थी कि जेईई (एडवांस्ड) के लिए तीन प्रयास दिए जाएंगे. हालांकि, दो सप्ताह के भीतर ही बोर्ड ने निर्णय को पलट दिया और कहा कि केवल दो प्रयास दिए जाएंगे. याचिकाकर्ताओं में से कुछ ने कहा कि 5 नवंबर के निर्णय के बाद उन्होंने अपने इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम छोड़ दिए हैं, जिसमें प्रयासों की संख्या तीन हो गई है.

परीक्षा में भाग लेने की अनुमति

अदालत ने 5-18 नवंबर, 2024 के बीच अपने पाठ्यक्रम छोड़ने वाले याचिकाकर्ताओं को भी परीक्षा में भाग लेने की अनुमति देकर राहत प्रदान की

समाचार एजेंसी पीटीआई ने याचिका के हवाले से कहा, 'जेएबी ने 5 नवंबर, 2024 की अपनी प्रेस विज्ञप्ति के जरिए सबसे पहले जेईई-एडवांस्ड के लिए प्रयासों की स्वीकार्य संख्या तीन तय की, लेकिन 18 नवंबर, 2024 की एक अन्य प्रेस विज्ञप्ति के जरिए इसे अचानक बदल दिया और प्रयासों की संख्या घटाकर दो कर दी.'

याचिका  की मांग

याचिका में कहा गया है, 'पात्रता मानदंडों में अचानक किए गए बदलावों से याचिकाकर्ता के साथ-साथ हजारों ऐसे ही लोगों पर असर पड़ा है, जिससे उन्हें आईआईटी में प्रवेश का बहुमूल्य अवसर नहीं मिल पाया है. याचिका में कहा गया है कि पात्रता मानदंडों में बदलाव प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है और विवादित अधिसूचना वैध अपेक्षा और वचनबद्धता के सिद्धांतों का भी उल्लंघन है.'