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सिविल सेवा परीक्षा में SC और ST उम्मीदवारों को असीमित अवसर देने के खिलाफ याचिका खारिज

उच्च न्यायालय ने याचिका पर अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग संविधान द्वारा निर्धारित एक अलग श्रेणी है और इसे विशेष संरक्षण प्राप्त है. अदालत ने यह भी कहा कि एससी/एसटी के उम्मीदवारों को असीमित प्रयासों की अनुमति देने का प्रावधान न केवल संविधानिक रूप से वैध है, बल्कि यह समाज के पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए भी आवश्यक है.

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Edited By: Reepu Kumari
Petition rejected against giving unlimited chances to SC/ST candidates in Civil Services Examination
Courtesy: Pinterest

बंबई उच्च न्यायालय ने एक दिव्यांग अभ्यर्थी द्वारा दायर की गई याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें सिविल सेवा परीक्षा के नियमों को चुनौती दी गई थी. 

इस याचिका में यह दावा किया गया था कि अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के उम्मीदवारों को असीमित संख्या में परीक्षा में बैठने का अवसर देना संविधान के सिद्धांतों के खिलाफ है.

याचिका का उद्देश्य क्या था?

धर्मेंद्र कुमार, जो मुंबई के निवासी हैं और 38 वर्ष के हैं, ने याचिका दायर कर कहा था कि एससी/एसटी उम्मीदवारों के लिए असीमित अवसरों का नियम अत्यधिक लचीला है और इसे खत्म किया जाना चाहिए. उनका मानना था कि यह प्रावधान समानता के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है और समाज में असमानता को बढ़ावा देता है. उनका कहना था कि इस प्रावधान को बदलने की आवश्यकता है ताकि सभी अभ्यर्थियों को समान अवसर मिले.

उच्च न्यायालय का निर्णय

उच्च न्यायालय ने याचिका पर अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग संविधान द्वारा निर्धारित एक अलग श्रेणी है और इसे विशेष संरक्षण प्राप्त है. अदालत ने यह भी कहा कि एससी/एसटी के उम्मीदवारों को असीमित प्रयासों की अनुमति देने का प्रावधान न केवल संविधानिक रूप से वैध है, बल्कि यह समाज के पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए भी आवश्यक है.

न्यायालय ने क्यों खारिज की याचिका?

न्यायालय ने कहा कि यह प्रावधान अनुचित नहीं है, बल्कि इसे लागू करने का उद्देश्य समाज के कमजोर वर्गों को अवसर देना है, ताकि वे समान अवसरों का लाभ उठा सकें. अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि एससी/एसटी वर्ग को संविधान से प्राप्त विशेष अधिकारों को किसी भी रूप में चुनौती नहीं दी जा सकती है.

समाप्ति 

यह निर्णय यह दर्शाता है कि उच्च न्यायालय ने संविधान के अंतर्गत एससी/एसटी वर्ग को प्राप्त अधिकारों की रक्षा की है और यह सुनिश्चित किया है कि उनके लिए निर्धारित विशेष प्रावधानों पर किसी प्रकार का प्रश्नचिन्ह नहीं लगाया जा सकता.