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Economic Survey 2025: बजट से कम महत्वपूर्ण नहीं है इकोनॉमिक सर्वे, जानें कब आएगा और कहां मिलेगी सारी डिटेल्स?

बजट से ठीक पहले सरकार इकोनॉमिक सर्वे जारी करती है. ये सर्वे एक तरीके से देश की अर्थव्यवस्था का आईना होता है. इसे भी वित्त मंत्रालय द्वारा तैयार किया जाता है. साल 2025 में इसे 31 जनवरी, शुक्रवार को पेश किया जाएगा.

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मोदी सरकार 3.0 का दूसरा बजट 1 फरवरी 2025 को आएगा. इस पर पूरे देश की नजरें हैं. मिडिल क्लास, किसान, गरीब के साथ-साथ उद्योग जगत को भी इसका इंतजार है. बजट से ठीक पहले सरकार इकोनॉमिक सर्वे जारी करती है. ये सर्वे एक तरीके से देश की अर्थव्यवस्था का आईना होता है. इसे भी वित्त मंत्रालय द्वारा तैयार किया जाता है. इकोनॉमिक सर्वे की बात करें तो इसे दो भागों में बांटा जाता है. पहले भाग  में अर्थव्यवस्था का सामान्य विवरण होता है, जबकि दूसरे भाग  में विभिन्न क्षेत्रों का विस्तृत विश्लेषण होता है.

इकोनॉमिक सर्वे असल में सरकार का परफॉर्मेंस सर्टिफिकेट होता है, जो ये बताता है कि सरकार के पिछले बजट का देश की इकोनॉमी पर क्या असर रहा है?  सरकार इकोनॉमिक सर्वे के माध्यम से देश की अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों, जैसे मैन्युफैक्चरिंग, एग्रीकल्चर, सर्विस और एक्सपोर्ट पर गहन शोध करती है और इन क्षेत्रों में सुधार की संभावनाओं को प्रस्तुत करती है. 

क्या होता है इकोनॉमिक सर्वे?

इकोनॉमिक सर्वे एक रिपोर्ट होती है जिसमें देश की आर्थिक स्थिति का विस्तृत विश्लेषण होता है. इसमें विभिन्न क्षेत्रों जैसे कृषि, उद्योग, सेवा क्षेत्र आदि के प्रदर्शन का मूल्यांकन किया जाता है. इसके अलावा, इसमें सरकार की आर्थिक नीतियों और उनके प्रभाव का भी वर्णन होता है. इकोनॉमिक सर्वे हर साल बजट से एक दिन पहले पेश किया जाता है. साल 2025 में इसे 31 जनवरी, शुक्रवार को पेश किया जाएगा. इसे लाइव संसद टीवी और पीआईबी इंडिया चैनल्स पर देखा जा सकता है.

इकोनॉमिक सर्वे क्यों महत्वपूर्ण है?

 इकोनॉमिक सर्वे से देश की आर्थिक स्थिति के बारे में विस्तृत जानकारी मिलती है. इससे पता चलता है कि अर्थव्यवस्था में क्या-क्या चुनौतियां और अवसर हैं. सरकार की नीतियों का मूल्यांकन होता है: इकोनॉमिक सर्वे में सरकार की आर्थिक नीतियों का मूल्यांकन किया जाता है. इससे पता चलता है कि सरकार की नीतियां कितनी प्रभावी रही हैं. भविष्य की दिशा का पता चलता है: इकोनॉमिक सर्वे में अर्थव्यवस्था के भविष्य की दिशा का भी अनुमान लगाया जाता है. इससे सरकार को अपनी नीतियों को बनाने में मदद मिलती है.


 

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