भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण घोषणा करते हुए कहा कि बैंकों के लिए डिजिटल रूप से जुड़े जमाओं के लिए अतिरिक्त फंड रखने के प्रस्ताव को कम से कम एक साल के लिए टाल दिया गया है. अब यह अनिवार्यता मार्च 2026 तक लागू नहीं होगी.
समीक्षा के बाद लिया गया फैसला
आरबीआई का पिछला प्रस्ताव क्या था?
आरबीआई ने जुलाई में एक प्रस्ताव दिया था जिसके तहत सभी बैंकों को डिजिटल रूप से सुलभ खुदरा जमाओं पर अतिरिक्त 5% 'रन-ऑफ-फैक्टर' अलग रखना अनिवार्य किया गया था. 'रन-ऑफ-फैक्टर' जमाओं के उस प्रतिशत को संदर्भित करता है जिसे बैंक उम्मीद करते हैं कि अल्पकालिक तनाव की अवधि में वापस ले लिया जाएगा. यह कदम इंटरनेट या मोबाइल बैंकिंग के माध्यम से भारी निकासी के मामलों में जोखिमों को बेहतर ढंग से प्रबंधित करने के लिए उठाया गया था.
बैंकों पर पड़ता इसका असर
हालांकि, यह आवश्यकता वित्तीय वर्ष 2026-27 से लागू होनी थी, लेकिन बैंकों का अनुमान है कि इससे क्रेडिट लागत पर वृद्धिशील प्रभाव 0.5-1.75% तक बढ़ सकता है. इस अनिवार्यता के लागू होने से बैंकों पर अतिरिक्त बोझ पड़ता, जिसे फिलहाल टाल दिया गया है.
क्रेडिट लॉस और प्रोजेक्ट फाइनेंसिंग पर भी समीक्षा जारी
गवर्नर मल्होत्रा ने यह भी कहा कि आरबीआई को अपेक्षित क्रेडिट लॉस और प्रोजेक्ट फाइनेंसिंग पर ड्राफ्ट दिशानिर्देशों की समीक्षा के लिए और अधिक समय चाहिए. इसका मतलब है कि इन क्षेत्रों से संबंधित नए नियमों के आने में भी अभी कुछ समय लग सकता है. आरबीआई का यह कदम बैंकों को नए नियमों के लिए बेहतर तरीके से तैयार होने का समय देगा और वित्तीय स्थिरता बनाए रखने में मदद करेगा.