8th Pay Commission: केंद्र सरकार के कर्मचारियों के वेतन में समय-समय पर बदलाव होता रहा है, और अब 8वें वेतन आयोग के गठन के साथ एक नया मोड़ आने वाला है. इस बार 8वें केंद्रीय वेतन आयोग (CPC) में न केवल कर्मचारियों के मौजूदा वेतन का पुनरावलोकन होगा, बल्कि उनके पूरे वेतन पैकेज पर भी ध्यान दिया जाएगा, जिसमें पहले के वेतन आयोगों द्वारा सिफारिश की गई प्रदर्शन-आधारित वेतन (PRP) को भी शामिल किया जाएगा.
आइए जानते हैं कि कैसे प्रदर्शन आधारित वेतन की अवधारणा पहले के वेतन आयोगों में विकसित हुई और अब इसके तहत कर्मचारियों का वेतन बढ़ने की संभावना है.
प्रदर्शन आधारित वेतन का इतिहास
प्रदर्शन आधारित वेतन (PRP) की अवधारणा भारतीय सरकारी कर्मचारियों के लिए एक महत्वपूर्ण पहलू बन गई है. इस पर पिछले चार वेतन आयोगों में चर्चा की गई और इसका विकास हुआ.
4वां वेतन आयोग (CPC): 4वें वेतन आयोग ने बेहतर प्रदर्शन करने वाले कर्मचारियों को प्रोत्साहित करने के लिए वेरिएबल इंक्रीमेंट्स (Variable Increments) की सिफारिश की थी.
5वां वेतन आयोग (CPC): 5वें वेतन आयोग ने प्रदर्शन आधारित वेतन को केंद्रीय सेवा के वेतन ढांचे में एक घटक के रूप में स्थापित करने की योजना बनाई थी.
6वां वेतन आयोग (CPC): 6वें वेतन आयोग ने एक फ्रेमवर्क की सिफारिश की थी, जिसे प्रदर्शन आधारित प्रोत्साहन योजना (PRIS) कहा गया.
7वां वेतन आयोग (CPC): 7वें वेतन आयोग ने केंद्रीय सरकार के कर्मचारियों के लिए गुणवत्ता और परिणामों के आधार पर प्रदर्शन आधारित वेतन (PRP) की सिफारिश की. इसमें कर्मचारियों की वार्षिक प्रदर्शन मूल्यांकन रिपोर्ट (APAR) और अन्य मापदंडों के आधार पर वेतन बढ़ाने का प्रस्ताव दिया गया.
8वें वेतन आयोग में क्या बदलाव हो सकते हैं?
अब 8वें वेतन आयोग में प्रदर्शन आधारित वेतन को लेकर कुछ अहम बदलाव हो सकते हैं. आयोग के प्रस्तावों में यह देखा जाएगा कि कर्मचारी किस हद तक अपने कार्यक्षेत्र में प्रदर्शन कर रहे हैं और उस आधार पर उनका वेतन बढ़ाया जा सकता है. यह बदलाव कर्मचारियों को उनकी मेहनत और कार्य के प्रति समर्पण को मान्यता देने का एक तरीका हो सकता है.
PRP के कार्यान्वयन में समस्याएं
7वें वेतन आयोग के दौरान यह देखा गया कि प्रदर्शन आधारित प्रोत्साहन योजना (PRIS) को पूरी तरह से लागू नहीं किया जा सका. इसके पीछे कई कारण थे:
वित्तीय कठिनाई: PRIS के लिए फंडिंग संभव नहीं थी. विभागों को यह योजना लागू करने के लिए कोई स्थिर वित्तीय ढांचा नहीं मिला.
परफॉर्मेंस मापने का तरीका: कर्मचारियों के प्रदर्शन को मापने के लिए कोई ठोस और विश्वसनीय तरीका नहीं था, जिससे योजना लागू करने में कठिनाई आई.
विभागों में असमानता: कुछ विभागों में इस योजना का अनुपालन किया गया, जबकि अन्य विभागों ने इसे पूरी तरह से नजरअंदाज किया.