Corporate Policy: लार्सन एंड टुब्रो (L&T) के चेयरमैन एसएन सुब्रह्मण्यन ने महिला कर्मचारियों के लिए 'एक दिन के मासिक धर्म अवकाश' की घोषणा की है. यह कदम एलएंडटी को मासिक धर्म अवकाश प्रदान करने वाली भारत की पहली प्रमुख कंपनियों में से एक बना देता है.
आपको बता दें कि लाइवमिंट की रिपोर्ट के अनुसार, एलएंडटी मूल समूह की सभी महिला कर्मचारी अब मासिक धर्म के दौरान एक दिन का अवकाश ले सकेंगी. इससे कार्यस्थल पर महिलाओं की उत्पादकता और स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा.
भारत में मासिक धर्म अवकाश की बढ़ती मांग
वहीं भारत में कई राज्य सरकारें और निजी कंपनियां मासिक धर्म अवकाश को लेकर नीतियां बनाने पर विचार कर रही हैं.
2024 में ओडिशा भारत का पहला राज्य बना जिसने राज्य सरकार और निजी कार्यालयों दोनों में महिलाओं के लिए एक दिवसीय मासिक धर्म अवकाश नीति लागू की.
सितंबर 2024 में, कर्नाटक सरकार ने भी सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों में महिलाओं को प्रति वर्ष छह दिन का भुगतानयुक्त मासिक धर्म अवकाश देने पर विचार किया.
सरकार द्वारा नियुक्त एक समिति 'महिलाओं को मासिक धर्म अवकाश और मासिक धर्म स्वास्थ्य उत्पादों तक मुफ्त पहुंच का अधिकार' नामक विधेयक पर काम कर रही है, जिसका उद्देश्य महिलाओं के कार्य-जीवन संतुलन में सुधार करना है.
सुब्रह्मण्यन का 90 घंटे कार्य सप्ताह का सुझाव
बता दें कि एलएंडटी के मासिक धर्म अवकाश की नीति उस समय आई जब चेयरमैन एसएन सुब्रह्मण्यन ने 90 घंटे के कार्य सप्ताह का सुझाव दिया था. उन्होंने कहा था, ''मुझे अफसोस है कि मैं आपसे रविवार को काम नहीं करवा पा रहा हूं. अगर मैं आपसे रविवार को भी काम करवा पाऊं तो मुझे ज्यादा खुशी होगी, क्योंकि मैं भी रविवार को काम करता हूं.''
वहीं उन्होंने आगे कहा, ''आप घर पर बैठकर क्या करते हैं? आप अपनी पत्नी को कितनी देर तक घूर सकते हैं? पत्नियां अपने पतियों को कितनी देर तक घूर सकती हैं? चलो, दफ़्तर जाओ और काम करना शुरू करो.''
एलएंडटी का बचाव
बताते चले कि उनके इस बयान पर विवाद बढ़ने के बाद, एलएंडटी की मानव संसाधन प्रमुख सोनिका मुरलीधरन ने स्पष्ट किया कि चेयरमैन के शब्दों को संदर्भ से बाहर लिया गया था और वे अनौपचारिक बातचीत का हिस्सा थे, न कि कोई आधिकारिक आदेश.
नई पहल से बदलेगा कार्यस्थल का माहौल
हालांकि, एलएंडटी की यह पहल महिला कर्मचारियों को कार्यस्थल पर बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं और सहयोग देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है. भारत में इस तरह की नीतियों को अपनाने वाली कंपनियों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ रही है, जिससे महिलाओं के अधिकार और कार्यस्थल पर उनकी भागीदारी को और अधिक सशक्त किया जा सकेगा.