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'UPSC नहीं सीधे बी-स्कूल से हो IAS, IPS की भर्ती', इन्फोसिस के नारायण मूर्ति के बयान पर छिड़ी बहस

मूर्ति ने वर्तमान UPSC चयन प्रक्रिया की आलोचना करते हुए कहा कि यह प्रक्रिया ऐसे अधिकारियों को तैयार करती है जो केवल व्यवस्था बनाए रखने में माहिर होते हैं, जबकि नवाचार और नीतियों के प्रभावी कार्यान्वयन में उनका ध्यान कम होता है.

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Edited By: Sagar Bhardwaj
infosys narayana murthy

इन्फोसिस के को-फाउंडर नारायण मूर्ति ने एक सुझाव देकर नई बहस छेड़ दी है. उन्होंने कहा कि भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) और पुलिस सेवा (IPS) के अधिकारियों की भर्ती UPSC के माध्यम से नहीं बल्कि सीधे बिजनेस स्कूलों से होनी चाहिए. 14 नवंबर को CNBC-TV18 के ग्लोबल लीडरशिप समिट में बोलते हुए मूर्ति ने कहा कि भारतीय ब्‍यूरोक्रेसी को अब प्रशासनिक मानसिकता से निकलकर मैनेजमेंट मानसिकता अपनाने की जरूरत है.

UPSC चयन प्रक्रिया की ओलचना की

मूर्ति ने वर्तमान UPSC चयन प्रक्रिया की आलोचना करते हुए कहा कि यह प्रक्रिया ऐसे अधिकारियों को तैयार करती है जो केवल व्यवस्था बनाए रखने में माहिर होते हैं, जबकि नवाचार और नीतियों के प्रभावी कार्यान्वयन में उनका ध्यान कम होता है. उनके अनुसार, वर्तमान ब्‍यूरोक्रेसी में प्रशासनिक दृष्टिकोण पर ज्यादा जोर दिया जाता है, जो कि केवल परंपराओं और मौजूदा प्रणालियों को बनाए रखने के लिए कार्य करता है. वहीं, उनका मानना है कि बिजनेस स्कूल से प्रशिक्षित अधिकारी बेहतर विचार, लागत नियंत्रण और तेज कार्यान्वयन लेकर आ सकते हैं, जो कि भारत जैसे तेजी से बदलते देश के लिए जरूरी है.

पूर्व IAS अधिकारी संजीव चोपड़ा की प्रतिक्रिया
मूर्ति के इस प्रस्ताव पर पूर्व IAS अधिकारी संजीव चोपड़ा ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की. लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी के निदेशक रह चुके चोपड़ा ने UPSC चयन प्रक्रिया को 'समावेशी' बताते हुए इसका  बचाव किया. उन्होंने कहा कि UPSC परीक्षा में 22 भाषाओं के विकल्प होने के कारण विभिन्न क्षेत्रों और भाषाई पृष्ठभूमि से आने वाले उम्मीदवारों को अवसर मिलता है, जबकि मूर्ति के प्रस्ताव से यह संभव नहीं हो पाएगा.

चोपड़ा ने यह भी कहा कि सरकार के विजन को चुने हुए नेता तय करते हैं और सिविल सर्वेंट्स का काम उन नीतियों को लागू करना होता है. वे सार्वजनिक सेवा को केवल लाभप्रदता या लागत नियंत्रण से नहीं आंक सकते, क्योंकि इसका उद्देश्य समाज कल्याण है, जो कि किसी कॉर्पोरेट रणनीति की तरह मापने योग्य नहीं है.

मूर्ति ने दिया लागत नियंत्रण पर जोर
मूर्ति ने प्रशासनिक कार्यों में लागत नियंत्रण पर जोर दिया था लेकिन चोपड़ा ने इसका विरोध करते हुए कहा कि कई सरकारी योजनाएं जैसे कि AIIMS और बाल विकास योजनाएं लाभ अर्जित करने के उद्देश्य से नहीं होती, बल्कि ये समाज के लिए जरूरी सेवाएं प्रदान करने का काम करती हैं.

इसके साथ ही उन्होंने मूर्ति के प्रस्ताव में सार्वजनिक सेवकों के लिए 72 घंटे काम करने की शर्त पर भी सवाल उठाए और इस बात पर जोर दिया कि कार्य-जीवन संतुलन भी समाज के कल्याण के लिए जरूरी है. चोपड़ा ने यह भी कहा कि सार्वजनिक सेवा के लिए अधिक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जो केवल वित्तीय दक्षता पर नहीं, बल्कि सामाजिक भलाई पर आधारित हो.