Indian Rupee hits all-time low of 85 against dollar: भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 85 के आंकड़े को पार कर गया, जो कि एक ऐतिहासिक गिरावट है. यह पहली बार हुआ है जब रुपया डॉलर के मुकाबले 85 के स्तर तक पहुंचा है, और इसके साथ ही भारतीय मुद्रा पर दबाव बढ़ता जा रहा है. तो, आखिरकार इस गिरावट का कारण क्या है, और भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसका क्या असर पड़ेगा? आइए समझते हैं.
रुपया डॉलर के मुकाबले कमजोर होने के कई कारण हैं. सबसे प्रमुख कारण है अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में कटौती की उम्मीदों का कमजोर होना. अमेरिकी सेंट्रल बैंक फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में कटौती करने का फैसला किया है. बुधवार को ब्याजदरों में 0.25 फीसदी की कटौती करके इसके 4.50 से घटाकर 4.25 कर दिया गया. इससे अमेरिकी डॉलर को मजबूती मिल रही है, जबकि भारतीय रुपया और अन्य एशियाई मुद्राओं पर दबाव बढ़ रहा है.
सुस्ती पड़ी अर्थव्यस्था की रफ्तार: जुलाई-सितंबर के बीच भारत की आर्थिक वृद्धि सात तिमाहियों के बाद सबसे कम रही है. इसके अलावा, भारत का व्यापार घाटा बढ़ रहा है और पूंजी प्रवाह भी कमजोर पड़ा है. इन सभी कारणों से भारतीय रुपये पर दबाव है.
भारत के आयातक और व्यापार घाटा:भारत को अपनी जरूरत की अधिकांश वस्तुएं आयात करनी होती हैं, जिनमें से 87% कच्चा तेल आयात किया जाता है. जब डॉलर मजबूत होता है, तो भारत का तेल बिल भी बढ़ जाता है, जिससे महंगाई का दबाव बढ़ता है. यह 'आयातित महंगाई' के रूप में सामने आता है, जो हर किसी को प्रभावित करता है.
डॉलर में उधारी लेने वाली कंपनियां: भारत की कई कंपनियों ने डॉलर में कर्ज लिया हुआ है. जब डॉलर मजबूत होता है, तो उन्हें ज्यादा रुपये देने पड़ते हैं. उदाहरण के लिए, अगर एक कंपनी ने कर्ज लिया था जब डॉलर का मूल्य 83 रुपये था, तो अब उसे उतना ही कर्ज चुकाने के लिए 84.4 रुपये देने होंगे. इससे कंपनियों के लिए वित्तीय दबाव बढ़ सकता है.
महंगाई का बढ़ता दबाव: रुपया कमजोर होने के कारण आयातित वस्तुओं की कीमतें बढ़ रही हैं, जो सीधे उपभोक्ताओं पर असर डालती हैं. पेट्रोल, रसोई का सामान, और अन्य आवश्यक वस्तुएं महंगी हो रही हैं, जिससे आम आदमी की जेब पर असर पड़ रहा है.
निर्यातक उद्योग: जब रुपये की कीमत घटती है, तो भारतीय कंपनियों को अपने उत्पादों का निर्यात करना सस्ता पड़ता है. खासकर सूचना प्रौद्योगिकी (IT), फार्मास्युटिकल्स, और वस्त्र उद्योगों के लिए यह लाभकारी हो सकता है. इन कंपनियों को डॉलर में भुगतान मिलता है, और जब डॉलर मजबूत होता है, तो उन्हें अधिक रुपये मिलते हैं.
रुपये की गिरावट भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए चिंता का कारण बन सकती है. जैसे कि व्यापार घाटा बढ़ना, महंगाई का दबाव, और डॉलर में उधारी बढ़ने के कारण कंपनियों के लिए वित्तीय परेशानी हो सकती है. हालांकि, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने इस समस्या से निपटने के लिए कदम उठाए हैं, जैसे कि कैश रिजर्व रेशियो (CRR) में कमी की घोषणा, ताकि बैंकों के पास अधिक नकदी रहे.
इसके अलावा, एक मजबूत डॉलर वैश्विक व्यापार को भी प्रभावित कर सकता है. अगर वैश्विक अर्थव्यवस्था में किसी तरह की अशांति आती है, तो भारत को भी इसका असर महसूस हो सकता है, जैसा कि 2018 में अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध के दौरान हुआ था.