आईटी इंडस्ट्री में सीईओ और कर्मचारियों के बीच सैलरी का अंतर हमेशा से चर्चा का विषय रहा है. ये अंतर धीरे-धीरे ऐसा बढ़ रहा है जैसे किसी देश में अमीर और गरीब के बीच खाई बढ़ती जा रही है. पिछले 5 साल के डाटा आपकी नींद उड़ा देंगे. आईबीएम इस गैप को कम करने की कोशिश कर रही है. एसेंचर, इन्फोसिस, विप्रो और एचसीएल जैसी कंपनियों के सीईओ की सैलरी में पिछले 5 साल में हुई बढ़ोतरी सच में चिंताजनक है.
पिछले पांच साल के डाटा में आईटी कंपनियों के सीईओ की बढ़ती सैलरी सच में शेयरधारकों का ध्यान खींच रही है. सैलरी के बीच की खाई बढ़ती ही जा रही है.
इन्फोसिस के फाउंडर एनआर नारायण मूर्ती ने कहा था कि किसी भी कंपनी के सीईओ की सैलरी उस कंपनी के सबसे कम सैलरी वाले कर्मचारी से अधिकतम 40 गुना तक होनी चाहिए लेकिन उनकी कंपनी इन्फोसिस के आंकड़े इसके उलट हैं. इन्फोसिस के सलिल पारेख की सैलरी मीडियन सैलरी से लगभग 700 गुना अधिक है. 2019 के बाद से यह नंबर लगातर बढ़ता ही जा रहा है.
विप्रो ने अपने कर्मचारियों की तुलना में CEO की सैलरी में अधिक हाइक देखी है. विप्रो के पूर्व सीईओ थिएरी डेलापोर्ट का वेतन 20 मिलियन डॉलर था, जिसका मतलब है कि उनका वेतन 2023-24 वित्तीय वर्ष में 9.8 लाख रुपये के औसत वेतन से 1,702 गुना अधिक था. इसी तरह अन्य आईटी कंपनियों के सीईओ की सैलरी में इजाफा हुआ है.
एक वर्ष के भीतर, HCL के सीईओ सी विजयकुमार के मुआवजे और औसत कर्मचारी की सैलरी के बीच का अनुपात 253:1 से बढ़कर 2023-24 में 707 हो गया. एक्सेंचर की CEO जूली स्वीट की 2023 वित्तीय वर्ष की सैलरी $31.5 मिलियन थी जो एक्सेंचर कर्मचारी के औसत वेतन $49,842 से 633 गुना ज़्यादा था.
आईटी सेक्टर में सीईओ और आम कर्मचारी के बीच सैलरी का अंतर तेजी से बढ़ रहा है. यह कहीं न कहीं एक विकासशील समाज के लिए चिंता का विषय है. इस अंतर को बढ़ने की बजाए घटना चाहिए.