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'90 घंटे काम करना मुश्किल, क्वालिटी मायने रखती है', काम के घंटों पर हो रही जुबानी जंग में कूदे BharatPe के CEO

आरपीजी एंटरप्राइजेज के चेयरमैन हर्ष गोयनका ने कहा, "मैं कड़ी मेहनत और समझदारी से काम करने में विश्वास करता हूं, लेकिन जीवन को हमेशा काम में बदल देना सफलता नहीं बल्कि थकान का कारण बनता है. कार्य-जीवन संतुलन एक आवश्यकता है."

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Edited By: Gyanendra Tiwari
BharatPe CEO Nalin Negi said it is difficult to work 90 hours a week

भारत में कर्मचारियों के काम के घंटों को लेकर चल रही बहस ने हाल ही में जोर पकड़ा है, जिसमें वित्तीय प्रौद्योगिकी कंपनी भारतपे के सीईओ नलिन नेगी ने अपनी स्पष्ट राय साझा की है. उन्होंने कहा कि कार्यस्थल पर कर्मचारियों के परिणाम और उत्पादकता की माप गुणवत्ता के आधार पर होनी चाहिए, न कि केवल घंटों की संख्या पर. उनके अनुसार, लंबे समय तक काम करने से बेहतर है कि काम में गुणवत्ता को प्राथमिकता दी जाए.

'90 घंटे काम करना कठिन है, गुणवत्ता मायने रखती है'

नलिन नेगी ने पीटीआई-भाषा से बातचीत करते हुए स्पष्ट किया कि 90 घंटे का कार्य सप्ताह किसी भी कर्मचारी के लिए बेहद कठिन हो सकता है. उन्होंने कहा, "जब बात काम की होती है, तो यह गुणवत्ता के बारे में है, न कि घंटों की संख्या के बारे में. एक कर्मचारी को जितने घंटे काम करने के लिए मजबूर किया जाएगा, उससे कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि वह उस समय में कितनी गुणवत्ता के साथ काम करता है."

भारतपे में काम का संतुलन और आरामदायक वातावरण

भारतपे के सीईओ ने इस बात पर जोर दिया कि उनकी कंपनी में काम के घंटों को लेकर कोई कठोर नियम नहीं हैं. वह मानते हैं कि कर्मचारियों को उनके व्यक्तिगत जीवन और कार्य जीवन के बीच संतुलन बनाने की स्वतंत्रता होनी चाहिए. एक युवा संगठन के रूप में भारतपे का लक्ष्य अपने कर्मचारियों के लिए एक ऐसा वातावरण तैयार करना है, जिसमें वे आराम से काम कर सकें और अपनी पूरी क्षमता से प्रदर्शन कर सकें.

उन्होंने कहा, "भारतपे की संस्कृति यह सुनिश्चित करती है कि कर्मचारी तनावपूर्ण न हो और उनका आत्मविश्वास बना रहे. एक खुशहाल कर्मचारी अधिक उत्पादक होता है, क्योंकि वह अपने काम को आनंद के साथ करता है." नलिन नेगी ने यह भी कहा कि ऐसे कर्मचारी जो अपने काम में पूरी तरह से लगे होते हैं, उन्हें उनकी निगरानी करने की आवश्यकता नहीं होती.

कार्य-जीवन संतुलन और उद्योग की प्रतिक्रिया

हाल ही में, लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) के चेयरमैन एस एन सुब्रमण्यन ने भी काम के घंटों पर चिंता जताई थी, लेकिन उनके बयान के बाद सोशल मीडिया पर इसका विरोध शुरू हो गया था. कई उद्योग के दिग्गजों ने भी काम के घंटों के संबंध में अपनी राय व्यक्त की.

इसी तरह, मैरिको लिमिटेड के चेयरमैन हर्ष मारीवाला ने भी यह बात कही कि सफलता का मूल काम के घंटों की संख्या में नहीं, बल्कि उन घंटों में लाई जाने वाली गुणवत्ता और जुनून में है.

उत्पादकता बढ़ाने के लिए संतुलन की आवश्यकता

आईटीसी लिमिटेड के चेयरमैन संजीव पुरी ने भी इस मुद्दे पर अपनी राय साझा की और कहा कि कर्मचारियों को उनके कार्य के घंटे नहीं, बल्कि उनकी क्षमता और काम करने की गुणवत्ता के आधार पर मूल्यांकन किया जाना चाहिए. उनका मानना था कि कर्मचारियों को सशक्त बनाना और उन्हें उनके काम में आत्मनिर्भर बनाना अधिक महत्वपूर्ण है.

यहां तक कि इन्फोसिस के सह-संस्थापक एनआर नारायणमूर्ति ने भी सुझाव दिया था कि युवाओं को सप्ताह में 70 घंटे काम करने के लिए तैयार रहना चाहिए, जबकि टेस्ला और स्पेसएक्स के सीईओ एलन मस्क का मानना है कि सख्त कामकाजी घंटों से ही बड़ी उपलब्धियां हासिल की जा सकती हैं.

(इस खबर को इंडिया डेली लाइव की टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की हुई है)