Budget 2025: बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं से जनता को राहत या महंगा इलाज? बजट 2025 है सरकार की असली परीक्षा
भारत की अर्थव्यवस्था में जहां स्वास्थ्य सेवाओं की आवश्यकता के लिए एक बड़ी जनसंख्या सरकारी सहायता पर निर्भर है, हर वित्त मंत्री को बजट में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. विशेषज्ञों का मानना है कि स्वास्थ्य सेवा को सुलभ बनाने और अनुसंधान को प्रोत्साहित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।
Budget 2025: भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच और किफायती दरों को सुनिश्चित करना हर वित्त मंत्री के सामने एक अहम चुनौती होती है. विशेषज्ञों का मानना है कि इस बार के केंद्रीय बजट 2025 में स्वास्थ्य सेवा पर निवेश बढ़ाने, अनुसंधान एवं विकास (R&D) को प्रोत्साहित करने और डिजिटल हेल्थकेयर को मजबूत करने की दिशा में महत्वपूर्ण घोषणाएं हो सकती हैं.
बढ़ते बजट आवंटन के बावजूद चुनौतियां बरकरार
भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए बजट आवंटन में लगातार वृद्धि हो रही है, लेकिन बढ़ती जनसंख्या के साथ इसे और अधिक बढ़ाने की आवश्यकता महसूस की जा रही है. आंकड़ों के मुताबिक, 2017-18 में स्वास्थ्य मंत्रालय का बजट 47,353 करोड़ रुपये था, जो 2024-25 में बढ़कर 87,657 करोड़ रुपये हो गया है. बावजूद इसके, स्वास्थ्य सेवाओं की लागत, चिकित्सीय सुविधाओं की कमी और अनुसंधान पर कम निवेश जैसी चुनौतियां बनी हुई हैं.
वहीं हृदय रोग और जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों में बढ़ोतरी के कारण निवारक स्वास्थ्य सेवाओं पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है. एमवे इंडिया के एमडी रजनीश चोपड़ा ने इस संदर्भ में कहा, ''हालांकि स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता बढ़ रही है, लेकिन इसे सुलभ और किफायती बनाने में कई बाधाएं हैं, विशेष रूप से पोषण और आहार पूरक के मामले में. हमें स्वस्थ और सशक्त आबादी के लक्ष्य को पाने के लिए स्वास्थ्य उत्पादों पर जीएसटी दर को घटाना चाहिए, जो फिलहाल 18% है.''
स्वास्थ्य अवसंरचना और अनुसंधान पर निवेश बढ़ाने की मांग
बता दें कि भारत की तेजी से वृद्ध होती आबादी के मद्देनजर स्वास्थ्य सेवाओं के बुनियादी ढांचे में निवेश बढ़ाने की आवश्यकता है. सूर्या आई हॉस्पिटल के निदेशक डॉ. जय गोयल के अनुसार, ''अगले 10 वर्षों में भारत में 50 वर्ष से अधिक आयु की आबादी तेजी से बढ़ेगी. हम पहले से ही दुनिया की मधुमेह राजधानी हैं और उम्र बढ़ने के साथ मोतियाबिंद व ग्लूकोमा जैसी बीमारियां और प्रचलित होंगी. इससे निपटने के लिए सार्वजनिक और निजी क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाओं पर बड़ा निवेश करना होगा.''
वहीं इसको लेकर डॉ. गोयल ने स्वास्थ्य अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर भी जोर दिया. उन्होंने कहा, ''हम अपने कुल स्वास्थ्य बजट का केवल 0.01% ही अनुसंधान और विकास (R&D) पर खर्च करते हैं. अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देश नवाचार और अनुसंधान के कारण स्वास्थ्य क्षेत्र में अग्रणी हैं. वर्तमान में हम 70-80% चिकित्सा उपकरणों का आयात करते हैं. यदि सरकार अनुसंधान एवं विकास पर खर्च बढ़ाती है, तो हम आत्मनिर्भर बन सकते हैं और इससे कर का बोझ भी कम होगा.''
क्या भारत डिजिटल हेल्थ में अगला UPI ला सकता है?
भारत की डिजिटल क्रांति ने दुनिया में अपनी छाप छोड़ी है, खासतौर पर यूपीआई (UPI) जैसे डिजिटल पेमेंट सिस्टम के माध्यम से. अब सवाल यह है कि क्या भारत डिजिटल हेल्थकेयर के क्षेत्र में भी वैश्विक लीडर बन सकता है? तो बता दें कि नानावटी अस्पताल के वरिष्ठ प्लास्टिक सर्जन डॉ. अंशुमान मनस्वी ने कहा, ''स्वास्थ्य बजट हर साल 12-15% बढ़ता है, लेकिन यह जनसंख्या वृद्धि और स्वास्थ्य सेवाओं की मांग को पूरा करने के लिए अपर्याप्त है. सरकार को डिजिटल हेल्थकेयर प्लेटफॉर्म पर अधिक ध्यान केंद्रित करना चाहिए और वैश्विक स्तर पर डिजिटल स्वास्थ्य समाधान विकसित करने का लक्ष्य रखना चाहिए, जैसा कि हमने UPI के साथ किया था. हमें इनोवेटिव टैलेंट को कम नौकरशाही बाधाओं के साथ आगे बढ़ने का अवसर देना होगा.''
इसके अलावा बजट 2025 में स्वास्थ्य क्षेत्र को अधिक प्राथमिकता मिलने की संभावना है. स्वास्थ्य सेवाओं को किफायती और सुलभ बनाना, डिजिटल हेल्थ प्लेटफॉर्म को बढ़ावा देना, अनुसंधान एवं विकास में निवेश बढ़ाना और जीएसटी दरों में कटौती जैसी मांगें इस बार के बजट की प्रमुख अपेक्षाओं में शामिल हैं. देखना होगा कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण इन चुनौतियों से कैसे निपटती हैं.