एक प्लेन की माइलेज, जिसे एयरलाइन इंडस्ट्री में फ्यूल इकोनॉमी या फ्यूल एफिशिएंसी कहा जाता है. एक महत्वपूर्ण मापदंड है जो यह बताता है कि विमान कितना ईंधन खर्च करता है और कितनी दूरी तय करता है.
यह एयरलाइन कंपनियों के संचालन की लागत, पर्यावरणीय प्रभाव, और विमान की तकनीकी क्षमता को समझने में मदद करता है.
विमान की माइलेज को आमतौर पर गैलन प्रति माइल या लीटर प्रति किलोमीटर के रूप में मापा जाता है, लेकिन विमान की इष्टतम दूरी और ईंधन खपत का निर्धारण इसके आकार, वजन, इंजन की दक्षता और उड़ान की स्थिति पर निर्भर करता है. उदाहरण के लिए, एक छोटा जेट विमान जैसे कि बोइंग 737 या एयरबस A320, जो आमतौर पर घरेलू उड़ानों के लिए इस्तेमाल होते हैं, प्रति मील लगभग 0.5 गैलन (लगभग 1.89 लीटर) ईंधन खर्च कर सकते हैं. वहीं, एक बड़े विमान जैसे बोइंग 747, जो लंबी दूरी की अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के लिए प्रयोग होता है, लगभग 1.5 गैलन (5.68 लीटर) प्रति मील ईंधन खर्च करता है.
विमान की फ्यूल इकोनॉमी कई कारकों पर निर्भर करती है;
1. विमान का आकार और वजन: बड़े और भारी विमानों को अधिक ईंधन की आवश्यकता होती है, जबकि हल्के विमानों में यह खपत कम होती है.
2. इंजन की दक्षता: नए और आधुनिक इंजन तकनीक से विमान को कम ईंधन की जरूरत होती है.
3. उड़ान की ऊंचाई और गति: ऊंचाई पर उड़ते समय विमान को कम वायु प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है, जिससे ईंधन की खपत कम होती है. तेज गति से उड़ने पर भी ईंधन अधिक खर्च होता है.
4. वायुमंडलीय परिस्थितियां: मौसम, हवाएं, और अन्य वायुमंडलीय तत्व भी विमान की माइलेज को प्रभावित करते हैं. उदाहरण के लिए, विपरीत हवाएं उड़ान को अधिक कठिन बना सकती हैं, जिससे ईंधन की खपत बढ़ जाती है.
विमान में इस्तेमाल होने वाला ईंधन मुख्य रूप से जेट फ्यूल (जेट ए-1) होता है, जो पेट्रोलियम आधारित होता है. 2023 में, जेट फ्यूल की कीमत लगभग 2 से 3 डॉलर प्रति गैलन थी, लेकिन यह कीमत मौसम, आपूर्ति और मांग के आधार पर बदलती रहती है. एक बड़े विमान के लिए, जैसे बोइंग 747, जो 10 घंटे की उड़ान भरता है, ईंधन की लागत लाखों रुपये तक पहुंच सकती है. उदाहरण के लिए, एक 747 के लिए लगभग 36,000 गैलन (136,000 लीटर) ईंधन की जरूरत होती है, जिससे तेल की लागत लगभग 72,000 से 108,000 डॉलर हो सकती है.
विमान की माइलेज और तेल की खपत विभिन्न तत्वों पर निर्भर करती है. हालांकि, नई तकनीकों और इको-फ्रेंडली इंजन डिजाइन से एयरलाइंस अपनी फ्यूल एफिशिएंसी में सुधार लाने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि लागत कम हो सके और पर्यावरण पर प्रभाव भी घट सके.