महाभारत, देवी भागवत् से लेकर रामायण और शिवपुराण तक, अगर किसी सबसे क्रोधी तपस्वी का जिक्र आता है तो उसमें सबसे पहला नाम होता है भगवान परशुराम का. वे भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं लेकिन उनके क्रोध से लोग कांपते थे. एक बार उन्होंने अपनी मां रेणुका का ही गला काट दिया था. आखिर क्या है परशुराम के जीवन से जुड़ी ये कहानी, आइए जानते हैं.
परशुराम ऋषि जमदग्नि और रेणुका के पुत्र थे. एक दिन परशुराम की मां रेणुका पूजा के लिए गंगा जल लेने तट पर गईं, तभी उनका ध्यान राजा चित्ररथ और अप्सराओं पर पड़ गया. वे जल विहार कर रहे थे. वे इस दृष्य को देखकर अपनी नजरें नहीं हटा पाईं.
वे वहीं ठहर गईं. महर्षि जमदग्नि हवन पर बैठे थे और गंगाजल का इंतजार कर रहे थे. देरी हुई तो वे क्रोधित हो गए. उन्होंने जब अपनी दिव्य दृष्टि से देखा तो पता चला कि रेणुका, 'प्रेमालाप' देखने में व्यस्त थीं. ऋषि क्रोधित हो गए. क्रोध में आकर उन्होंने अपनी पत्नी को दंड दे दिया. उन्होंने अपने पुत्रों रुक्वमवान, सुषेणु, वसु, विश्वावसु और परशुराम से कहा कि अपनी मां का वध कर दो.
परशुराम को लगा कि उनके पिता तपस्वी हैं. वे ईश्वर के अवतार थे इसलिए उन्हें भविष्य का भान भी था. उन्हें पता था कि पिता अगर गला काटने का आदेश दे रहे हैं तो उनके पास इतना तपोबल होगा कि वे उनकी मां को जिंदा कर दें. परशुराम ने पिता का आदेश मानकर मां का वध कर दिया.
सारे पुत्र पीछे हट गए. महर्षि ने अपने पुत्रों को बुद्धिहीन होने का शाप दे दिया. परशुराम ने तभी अपना फरसा उठाया और मां का वध कर दिया. ऋषि जमदग्नि उन पर दक्ष हो गए और उन्होंने परशुराम से कहा कि 3 वरदान ले लो. परशुराम ने कहा कि उनकी मां जीवित हो जाएं. किसी को इस घटना की स्मृति न रहे और वे दीर्घायु रहें. ऋषि जमदग्नि को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने वरदान पूरा कर दिया.
परशुराम भगवान विष्णु के 6वें अवतार हैं. का जाता है कि उन्होंने हैहयवंशी क्षत्रियों का 36 बार विनाश किया था. परशुराम स्वभाव से बहुत क्रोधी थी. एक बार युद्ध में उन्होंने भगवान गणेश का एक दांत तोड़ दिया था. उन्होंने अपने शिष्य भीष्म पितामह से युद्ध किया था और क्रोधित होकर कर्ण को शाप दे दिया था. त्रेता युग में वे सीता स्वंवर में शिव धनुष तोड़ने पर लक्ष्मण से भिड़ गए थे. कहा जाता है कि परशुराम अमर हैं और वे हिमालय की कंदराओं में तपस्या करते हैं. उनका भी क्रोध ऋषि दुर्वासा की तरह ही है.