Jagannath Temple: उड़ीसा के पुरी में भगवान जगन्नाथ मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण अपने बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ विराजमान हैं. हर साल आषाढ़ माह में यहां पर भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जाती है. इस यात्रा में भगवान जगन्नाथ और देवी सुभद्रा और भइया बलराम अपने-अपने रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण को निकलते हैं. भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए लोग विदेशों से भी आते हैं.
इस मंदिर में विराजमान मूर्तियां आज भी अधूरी हैं. इसके पीछे एक पौराणिक कथा इस प्रकार है कि किसी समय मालव देश में राजा इंद्रद्युम का शासन था. वे भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त थे. उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने राजा को स्वपन में दर्शन दिए और कहा कि वे उनकी और उनके बड़े भाई बलराम व बहन सुभद्रा की लकड़ी की मूर्तियां बनवाकर मंदिर में स्थापित करा दें.
जब राजा अगले दिन जागा तो उसने मूर्ति बनवाने के लिए कारीगर की खोज शुरू कर दी, लेकिन कोई भी कारीगर नहीं मिला. कुछ दिन बाद राजा के पास एक बुजुर्ग व्यक्ति आया, जिसने कहा कि वो मूर्तियों का निर्माण करेगा. इसके साथ ही उसने राजा के सामने शर्त रख दी की जब वे मूर्ति का निर्माण करें तो कमरे में कोई भी न आए. राजा ने बुजुर्ग व्यक्ति की मान ली और मूर्ति बनाने के कार्य की शुरुआत हो गई.
जब उस बुजुर्ग व्यक्ति ने मूर्ति बनाने का कार्य शुरू किया तो शुरुआत में तो आवाज आ रही थी, लेकिन कुछ दिन बाद आवाज आनी बंद हो गई. ऐसे में राजा को चिंता हुई कि कहीं बूढ़े व्यक्ति को कुछ हो न गया हो. इसको देखते हुए उन्होंने दरवाजा खोला तो देखा कि तीनों मूर्तियां अधूरी हैं और बुजुर्ग व्यक्ति वहां से गायब था. उस समय राजा का ज्ञात हुआ कि वह बुजुर्ग कोई और नहीं बल्कि स्वयं शिल्पकार विश्वकर्मा भगवान थे.
राजा के सपने में दोबारा श्रीकृष्ण आए और उन्होंने तीनों अधूरी मूर्तियों को मंदिर में विराजमान करने को कहा. इस पर राजा ने तीनों मूर्तियों मंदिर में स्थापित करा दीं. हर 12 साल में इन मूर्तियों को बदल दिया जाता है . मान्यता है कि इन मूर्तियों में एक ब्रह्मा पदार्थ है, जो दिल की तरह धड़कता रहता है.
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