Lord Jagannath Rath Yatra: अषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को जगन्नाथ रथ यात्रा निकाली जाती है. यह यात्रा क्यों निकाली जाती है, इसको लेकर कई सारी किदवंतियां हैं. एक किदवंती है कि गुंडीचा में भगवान श्रीकृष्ण की मौसी हैं. यहां पर भगवान श्रीकृष्ण अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलराम के साथ जाते हैं. अपनी मौसी के घर पर वे 10 दिनों तक ठहरते हैं. वहीं, दूसरी किदवंती है कि भगवान श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा जब अपने मायके लौटती हैं तो वे नगर भ्रमण की इच्छा जताती है. इस पर उनके भाई बलराम और श्रीकृष्ण रथ से नगर घूमने जाते हैं. उसी दिन से इस यात्रा का प्रारंभ माना गया है.
पद्मपुराण के अनुसार भी यही कथा सामने आती है कि भगवान जगन्नाथ अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलराम के साथ रथ पर सवार होकर अपनी मौसी के यहां गुंडिचा मंदिर में कुछ दिन ठहरे थे. यहां पर भगवान खूब पकवान खाते हैं और फिर बीमार पड़ जाते हैं. इसके बाद उनका इलाज किया जाता है और स्वस्थ होने के बाद फिर से वे लोगों को दर्शन देते हैं. यहां पर तीन अलग-अलग रथों पर यात्रा की शुरुआत होती है. इसमें सबसे आगे बलरामजी का रथ, उसके बाद देवी सुभद्रा का और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ जी का रथ होता है. भगवान जगन्नाथ को जगत का नाथ कहा गया है. इस यात्रा के दौरान वे अपनी प्रजा का हालचाल भी लेते हैं.
हिंदू धर्म के अनुसार भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा में शामिल होने मात्र से व्यक्ति के पाप नष्ट हो जाते हैं. रथ यात्रा के मार्ग पर झाड़ू लगाने से दरिद्रता नष्ट हो जाती है. रथ को खींचने से हर मनोकामना पूरी हो जाती हैं. इस यात्रा से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है.
एक मान्यता यह भी है कि पुरी में भगवान विष्णु ने पुरुषोत्तम नीलमाधव के रूप में अवतार लिया था और यहां पर वे सबर जनजाति के पूज्य देवता बन गए थे. सबर जाति के देवता होने के कारण यहां भगवान जगन्नाथ का रूप कबीलाई देवताओं के अनुसार ही है . ओडीशा के जगन्नाथ मंदिर की महिमा विश्व प्रसिद्ध है.
Disclaimer : यहां दी गई सभी जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. theindiadaily.com इन मान्यताओं और जानकारियों की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह ले लें.