Epic Story: महाभारत काल में महामुनि वेदव्यास ने भीमसेन को एक ऐसे व्रत के बारे में बताया था, जिसको सालभर में एक बार करने मात्र से स्वर्ग की प्राप्ति की जा सकती है. यह व्रत मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के नजरिए से भी काफी अधिक महत्वपूर्ण होता है. यह व्रत भगवान श्रीहरि विष्णु को समर्पित होता है. इस व्रत को सभी देवता, दानव, नाग, यक्ष, गन्धर्व, किन्नर, नवग्रह आदि अपनी रक्षा और भगवान श्रीहरिविष्णु की कृपा पाने के लिए इस व्रत को करते हैं.
द्वापरयुग में महर्षि वेदव्यास ने पांडवों को एक व्रत करने की सलाह दी, जिसको करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. उन्होंने धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को प्रदान करने वाले एक व्रत का संकल्प पांडवों को कराया तो भीमसेन ने कहा कि हे महामुनि मेरे पेट में वृक नामक अग्नि प्रज्ज्वलित रहती है. इसे शांत करने के लिए मुझे दिन में कई बार काफी अधिक भोजन करना पड़ता है. मैं अपनी भूख के कारण इस पवित्र व्रत को नहीं कर पाऊंगा और इसके फल से वंचित रह जाऊंगा. इस कारण कृपया करके मुझे इसका कुछ उपाय बताएं.
भीमसेन की बातों को सुनकर महर्षि वेदव्यास ने कहा कि हे कुन्तीनंदन, धर्म की यही विशेषता है कि वह सभी को धारण ही नहीं करता है बल्कि सबके योग्य साधन, व्रत और नियमों की सहज व्यवस्था भी करता है. उन्होंने कहा कि 1 माह में 24 एकादशी पड़ती है. अधिकमास में ये 26 हो जाती है. अगर आप सालभर एकादशी का व्रत नहीं कर सकते हैं तो सिर्फ ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष एकादशी पर निर्जला व्रत करों. इस व्रत को तुम्हें मात्र एक दिन ही करना है. इससे तुमको पूरी 24 एकादशियों का फल मिल जाता है. इस दिन व्यक्ति को बिना जल के व्रत रखना होता है. केवल कुल्ला करने और आचमन करने के लिए जल का प्रयोग किया जाता है. इसके बाद जल मुख में जाने मात्र से भी व्रत टूट जाता है. इस दिन व्यक्ति को बिना जल पिएं भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए और ॐ नमो भगवते वासुदेवाय का जाप करना चाहिए. इसको करने से व्यक्ति जन्मजन्मांतरों के पाप से मुक्त हो जाता है और हरिधाम को जाता है.
शास्त्रों के अनुसार, श्री श्वेतवाराह कल्प की शुरुआत में देवर्षि नारद द्वारा की जाने वाली भगवान विष्णु की भक्ति को देखकर भगवान ब्रह्मा प्रसन्न हुए. इस पर नारद मुनि ने अपने पिता भगवान ब्रह्मा ने कहा कि हे परमपिता, मुझे कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे मैं भगवान विष्णु की भक्ति को प्राप्त कर सकूं. नारद मुनि के प्रेम को देखकर भगवान ब्रह्मा ने नारद मुनि से श्रीहरि विष्णु को प्रिय निर्जला एकादशी व्रत रखने के लिए बोला.उन्होंने पूरी निष्ठा से 1000 वर्ष तक निर्जल रहकर कठोर व्रत किया. इस व्रत के बाद उनतको चारों ओर नारायण दिखाई देने लगे. इससे वे भ्रमित हो गए और उन्हें लगा कि कहीं ये विष्णु लोक तो नहीं है. उसी समय पर उनको भगवान विष्णु के दर्शन हुए. नारद मुनि की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उनको अपनी निश्छल भक्ति के वरदान के साथ ही अपनी श्रेष्ठ भक्तों में स्थान दिया. यही से इस निर्जल व्रत की शुरुआत हुई.
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