Shiv Katha: शिव पुराण के अनुसार एक बार भगवान भोलेनाथ ने ऐसी गलती कर दी थी, जिसके चलते माता पार्वती पूरी दुनिया को भस्म करने के लिए तैयार हो गई थीं. इसके बाद ब्रह्मा जी के कहने पर भगवान विष्णु ने भोलनाथ की उस गलती को सुधारा था, तब जाकर देवी पार्वती का क्रोध शांत हुआ था. पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार भगवान शिव के गण नंदी ने देवी पार्वती की आज्ञा का पालन करने में त्रुटि कर दी. इससे नाराज मां पार्वती ने अपने शरीर के उबटन से एक बालक का निर्माण किया और उसमें प्राण डाल दिए. माता ने उस बालक से कहा कि तुम मेरे पुत्र हो अब तुमको मेरी आज्ञा का पालन करना होगा. इसके अलावा तुम किसी की आज्ञा का पालन नहीं करोगे. तुम्हारा नाम गणेश है.
जब देवी पार्वती स्नान करने जा रही थीं तो उन्होंने कहा कि गणेश मैं स्नान करने जा रही हूं. ध्यान रखना कि कोई अंदर न आने पाए. ऐसा कहकर माता स्नान करने चली गईं और भगवान गणेश दरवाजे के बाहर पहरा देने लगे. इतने में भगवान भोलेनाथ वहां आए और माता पार्वती के भवन में जाने लगे. यह देखकर बालक गणेश ने उन्हें विनयपूर्वक रोकने का प्रयास किया और अंदर नहीं जाने दिया.
बालक का हठ देखकर भोलेनाथ को क्रोध आ गया. उन्होंने त्रिशूल से भगवान गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया. जब यह बात माता पार्वती को पता चली तो वे बहुत क्रोधित हुईं. इसके साथ ही वह पूरी पृथ्वी को भस्म करने चल दीं. उनको मनाने के लिए भगवान ब्रह्मा के कहने पर भगवान विष्णु हाथी का सिर काटकर लाए तो भगवान भोलेनाथ ने यह सिर बालक गणेश को लगा दिया. इसके बाद भोलेनाथ ने अपनी गलती को स्वीकारा और गणेश को कई सारे वरदान दिए तब जाकर देवी पार्वती का क्रोध शांत हुआ.
शिव पुराण के अनुसार माली और सुमाली दो राक्षस थे. जो भगवान शिव का पूजन करते थे. ये दोनों राक्षस स्वर्ग पर अधिकार करना चाहते थे. सूर्यदेव उनको रोकना चाहते थे. इस कारण उन्होंने राक्षसों से युद्ध करना शुरू कर दिया. इसके बाद सूर्य देव ने अपनी तेज शक्ति का प्रयोग किया, जिससे माली-समाली जलने लगे तो उन्होंने भगवान शिव को पुकारा . इसपर भगवान शिव ने सूर्यदेव पर त्रिशूल से बार कर दिया.
इस प्रहार से सूर्यदेव मरणासन्न अवस्था में पहुंच गए. अपने पुत्र सूर्यदेव को इस हालत में देखकर उनके पिता महार्षि कश्यप ने भगवान शिव को श्राप दिया कि तुमने मेरे पुत्र पर त्रिशूल से वार किया है. एक दिन तुम अपने पुत्र को भी त्रिशूल मारोगे. महर्षि कश्यण के श्राप के चलते ही ऐसा संयोग बना कि जिसके चलते भगवान शिव को भगवान गणेश पर त्रिशूल चलाना पड़ा.
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