गंगा में ही क्यों बहाई जाती हैं किसी भी व्यक्ति की अस्थियां? धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक कारण भी जानें
Asthi Visarjan in Ganga: भारतीय संस्कृति में मृत्यु के बाद व्यक्ति के अवशेषों का विसर्जन, विशेषकर गंगा नदी में, एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है. इस प्रक्रिया के पीछे धार्मिक मान्यताएं तो हैं ही, साथ ही इसके वैज्ञानिक पहलुओं पर भी विचार किया जाता रहा है. आइए इन दोनों पक्षों को समझने का प्रयास करते हैं.
Asthi Visarjan in Ganga: हिंदू धर्म में गंगा नदी को मां का दर्जा दिया गया है. यह न केवल एक नदी है, बल्कि एक पवित्र नदी है जिसका हिंदू धर्म में अत्यंत महत्व है. मृत्यु के बाद अस्थियों को गंगा में विसर्जित करने की परंपरा भी इसी महत्व से जुड़ी हुई है.
माना जाता है कि गंगा नदी में स्नान करने से पाप धुल जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है. इसीलिए मृत्यु के बाद अस्थियों को गंगा में विसर्जित करने की परंपरा का भी धार्मिक महत्व है.
गंगा में अस्थि विसर्जन के पीछे के धार्मिक कारण
श्री कृष्ण का आशीर्वाद: पौराणिक कथाओं के अनुसार, गंगा नदी को भगवान श्री कृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त है. ऐसा माना जाता है कि गंगा में अस्थियां बहाने से मृत आत्मा को भगवान श्री कृष्ण की कृपा प्राप्त होती है और वह गोलोक धाम में जा सकती है.
स्वर्ग की प्राप्ति: भागीरथ माता गंगा को स्वर्ग से ही पृथ्वी पर लाये थे. इसलिए जिस भी व्यक्ति की अस्थियां गंगा में बहाई जाती हैं, उसकी आत्मा को स्वर्ग लोक में रहने और वहां के आनंद उठाने का मौका मिलता है. हालांकि, स्वर्ग की प्राप्ति व्यक्ति के कर्मों पर भी निर्भर करती है. अगर किसी ने बुरे कर्म किए हैं, तो उसे स्वर्ग में रहने का समय उसके कर्मों के आधार पर निर्धारित होगा.
ब्रह्मलोक की प्राप्ति: माना जाता है कि गंगा में अस्थियां बहाने पर मृत व्यक्ति को ब्रह्मलोक भी मिलता है.
राजा सगर की कथा: धर्म शास्त्रों में राजा सगर की कथा भी प्रचलित है. जिसके अनुसार, राजा सगर के 60 हजार पुत्रों की कपिल मुनि के श्राप से मृत्यु हो गई थी. इन्हीं की मुक्ति के लिए राजा सगर के वंशज भागीरथ ने तपस्या कर मां गंगा को पृथ्वी पर बुलाया था. जिसके बाद सगर के सभी पुत्रों को मुक्ति मिल गई थी.
महाभारत की कथा: महाभारत में गंगा, राजा प्रतिपद और शांतनु की कथा है जहां श्राप मुक्ति का भी जिक्र है. गंगा ने अपने 7 बेटों को मार दिया था ताकि उनका पृथ्वी पर जन्म लेने का श्राप पूरा हो सके और वो स्वर्गलोक में वापस जा सकें.
गंगा और वासु की कहानी
वासु असल में इंद्र और विष्णु के अनुयायी माने जाते हैं जो स्वर्ग में रहते थे. इनमें से 8 वासुओं ने ऋषि वशिष्ठ की गाय चुरा ली थी जिसके कारण उन्हें मृत्यु लोक में जन्म लेने का श्राप मिला. इनमें से 7 वासुओं ने एक साल के अंदर ही मृत्यु लोक छोड़ दिया और प्रभास दूसरी बार जन्म लेकर भीष्म पितामह बने. गंगा और महाभिष की कहानी भी इसी से जुड़ी है.
गंगा और मोक्ष
गंगा को मोक्षदायिनी भी कहा जाता है. अगर किसी का निधन काशी में होता है और अस्थि विसर्जन गंगा में किया जाता है तो मृतक को मोक्ष की प्राप्ति होती है.
गंगा में अस्थि विसर्जन के साइंटिफिक कारण
- जैविक विघटन: हड्डियों में कैल्शियम और फास्फोरस जैसे खनिज होते हैं. गंगा का पानी थोड़ा अम्लीय होता है, जिसके कारण हड्डियां अन्य जल स्रोतों की तुलना में तेजी से विघटित होती हैं.
- पर्यावरणीय लाभ: हड्डियों के विघटन से निकलने वाले खनिज पदार्थ नदी के किनारे की भूमि को उपजाऊ बनाते हैं.
- पानी की गुणवत्ता: कुछ अध्ययनों से संकेत मिलता है कि हड्डियों का विसर्जन पानी की गुणवत्ता को नकारात्मक रूप से प्रभावित नहीं करता है.
- जल चक्र: गंगा नदी जल चक्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. जल चक्र एक निरंतर प्रक्रिया है जिसमें पानी वाष्पित होता है, बादल बनाता है, बारिश के रूप में गिरता है और फिर नदियों में मिल जाता है. अस्थियों को गंगा में विसर्जित करने से वे जल चक्र का हिस्सा बन जाती हैं.
- पोषक तत्व: अस्थियों में कई प्रकार के खनिज और पोषक तत्व होते हैं. जब अस्थियों को पानी में विसर्जित किया जाता है तो ये पोषक तत्व पानी में मिल जाते हैं और यह पानी फिर से जीवों के लिए उपयोगी हो जाता है.
- मनोवैज्ञानिक प्रभाव: अस्थियों को गंगा में विसर्जित करने से परिवार वालों को मनोवैज्ञानिक शांति मिलती है. उन्हें लगता है कि उन्होंने अपने प्रियजन को अंतिम सम्मान दिया है.