Mahabharat Story: महाभारत एक ऐसा युद्ध था, जैसा फिर कभी नहीं देखा गया. बड़े-बड़े शूरवीरों के रक्त से यह पृथ्वी लाल हो गई थी. इस युद्ध में हस्तिनापुर नरेश महाराज धृतराष्ट्र और रानी गांधारी के 100 पुत्रों की मृत्यु हो गई थी. इसके साथ ही हस्तिनापुर के वीर पितामह, गुरु द्रोणाचार्य, अंगराज कर्ण से जैसे योद्धा भी वीरगति को प्राप्त हो गए थे. इस युद्ध का प्रमुख कारण लोग द्रौपदी का भरी सभा में अपमान मानते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है.
इस युद्ध की कहानी तो एक राजा ने अपने प्रतिशोध के चलते लिख दी थी. उसके प्रतिशोध के कारण उसकी बहन का वंश नाश हो गया. जिसने अपनी कुटिल बुद्धि से चौसर के खेल में पांडवों को पराजित किया. द्रौपदी के चीर हरण के लिए दु्र्योधन और दुशासन को उकसाया, फिर युद्ध के लिए भी उनके हृदयों में आग लगाई. इसके बाद खुद भी युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गया.
वह राजा कोई और नहीं बल्कि गांधार नरेश शकुनि था. शकुनि दुर्योधन सहित सभी कौरवों का मामा और गंधारी का सगा भाई था. शकुनि गांधार नरेश राजा सुबाल के पुत्र थे. वे गांधारी के छोटे भाई थे. जन्म से ही वे बुद्धि में काफी तेज थे. इस कारण वे राजा सुबाल को अत्यंत प्रिय थे.
पौराणिक कथाओं के अनुसार, कई छोटे-छोटे राज्यों को मिलाकर आर्याना क्षेत्र बनाया गया था. इसी क्षेत्र में एक छोटा सा गांधार राज्य था. आज के समय में अफगानिस्तान, उस समय का गांधार हुआ करता था. उस समय गांधार की राजकुमारी के रूप की चर्चा पूरे आर्यवर्त में थी. वे काफी खूबसूरत थीं. इस कारण भीष्म पितामह उनको धृतराष्ट की पत्नी बनाना चाहते थे. इसपर उन्होंने उनका अपरहरण करने की सोची, लेकिन अंबा और अम्बालिका ने उन्हें ऐसा करने से मना किया तो वे गांधार नरेश पास धृतराष्ट्र का रिश्ता लेकर पहुंचे. नेत्रहीन होने के चलते गांधार नरेश ने धृतराष्ट्र से अपनी पुत्री का विवाह करने से मना कर दिया . इसपर भीष्म ने उनके राज्य पर चढ़ाई करने की धमकी दे दी. इससे गांधार नरेश को झुकना पड़ा और गांधार की खूबसूरत राजकुमारी की शादी नेत्रहीन धृतराष्ट्र से हो गई.
गांधारी ने भी दुखपूर्वक अपनी आंखों पर आजीवन पट्टी बांधने की प्रतिज्ञा कर ली. गांधारी से धृतराष्ट्र को 100 पुत्रों की प्राप्ति हुई. यही पुत्र आगे कौरवों के नाम से प्रसिद्ध हुए पर वे कौरव नहीं थे.
गांधारी की कुंडली में दोष था, जिस कारण ज्योतिषीयों ने गांधारी का विवाह पहले बकरे से कराने की सलाह दी थी. इसके बाद बकरे की बलि दे दी गई थी. जब यह बात धृतराष्ट्र को पता चली तो उन्हें इसकी पूरी सच्चाई पता नहीं चल पाई. इस कारण धृतराष्ट्र ने सोचा कि गांधारी का पहले भी किसी से विवाह हुआ था और उसको मार दिया गया. इसके कारण धृतराष्ट्र को काफी दुख हुआ.
धृतराष्ट्र ने इसका जिम्मेदार गांधार नरेश का मानते हुए उन्हें पूरे परिवार समेत कारागार में डाल दिया. इसके साथ ही वे केवल एक व्यक्ति का ही भोजन कारागार में देते थे, जिससे सभी की मृत्यु हो जाए. इस पर गांधारी के पिता ने वह भोजन शकुनि को खिलाना शुरू कर दिया, जिससे उनका वंश बच सकते. धीरे-धीरे गांधार नरेश के सभी पुत्रों की मौत हो गई. इसपर गांधार नरेश ने धृतराष्ट्र से शकुनि को छोड़ने की विनती की. धृतराष्ट्र भी अंत में शकुनि को छोड़ने पर राजी हो गए.
गांधारी के ज्येष्ठ पुत्र दुर्योधन ने देखा कि शकुनि सिर्फ जीवित बचे हैं तो उन्होंने पिता से शकुनि का क्षमा दिलाकर और शकुनि को अपने देश वापस जाने या फिर हस्तिनापुर में रहकर अपना राज्य देखने के लिए कहा. इस पर शकुनि ने हस्तिनापुर में ही रुकने का निर्णय लिया. इसके बाद शकुनि ने सभी का दिल जीत लिया और सारे कौरवों का अभिवावक बन गया.
शकुनि ने अपनी बहन और परिवार पर हुए जुल्मों को देखते हुए धृतराष्ट्र के वंश को खत्म करने की कसम खा ली थी. इसके चलते शकुनि ने दुर्योधन का विश्वास जीता और उसे गलत शिक्षा देने लगा. शकुनि ने ही दुर्योधन को पांडवों के खिलाफा भड़काया था. अपने पिता की मृत्यु के पश्चात् शकुनि ने उनकी रीढ़ की हड्डी का पासा बनवाया था. माना जाता है कि उस पासे में शकुनि के पिता की आत्मा थी, जिस कारण शकुनि जो भी चाहता था, उस पासे में वही आता था.
जब युधिष्ठिर हस्तिनापुर युवराज बने तो शकुनि ने लाक्षागृह का षड़यंत्र रचा. शकुनि दुर्योधन को राजा बनाना चाहता था, जिससे वह भीष्म और कुरुकुल का नाश कर सके. इसी कारण उसने चौसर के खेल में पांडवों को हरवाया था व द्रौपदी के चीर हरण के लिए दुर्योधन और दशासन को भड़काया था. शकुनि ने ही महाभारत के युद्ध नींव रखी थी. इस युद्ध में धृतराष्ट के पूरे कुल का नाश हो गया था. इसी युद्ध में पांडु पुत्र सहदेव ने शकुनि का भी वध कर दिया था.
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