जानिए क्या था कुंती का श्रीकृष्ण से संबंध, कैसे शादी के बाद भी रह गईं कुंवारी?
Mahabharat Facts: महाभारत में पांडवों की माता कुंती एक अद्भुत स्त्री थीं. उन्होंने पति की मृत्यु के बाद भी अपनी पुत्रों को हस्तिनापुर का राज्य दिलवाने के लिए प्रेरित किया. कुंती का जीवन बेहद ही संघर्षपूर्ण रहा. उनका भगवान श्रीकृष्ण से भी बेहद खास संबंध था और यह बात सत्य है कि पांडु से विवाह के बाद भी कुंती जीवनभर कुंवारी ही रहीं.
Mahabharat Facts: महाभारत काल में पांडवों की माता कुंती एक असाधारण महिला थीं. उनका विवाह भले की पांडु के साथ हुआ था, लेकिन वे जीवनभर कुंवारी ही रहीं. पति की मौत के बाद भी कुंती ने अपने पुत्रों का हस्तिनापुर राज्य दिलवाने के लिए प्रेरित किया. महाभारत में हमेशा संघर्ष की कहानियों में द्रौपदी का नाम लिया जाता है, लेकिन सच तो ये हैं कि कुंती ने भी कुछ कम संघर्ष नहीं किया है.
यदुवंशी राजा शूरसेन का वासुदेव नामक एक पुत्र और पृथा नाम की एक कन्या थी. राजा शूरसेन से अपनी बुआ के लड़के कुंतीभोज को पुत्री पृथा को दान कर दिया था. कुंतीभोज संतानहीन थे. इस कारण पृथा उनकी पुत्री कहलायी. इसके बाद उन्होंने पृथा का नाम कुंती रख दिया. इसके बाद कुंती का विवाह हस्तिनापुर के राजा पांडु से हुआ था. पौराणिक कथा के अनुसार राजा शूरसेन की पुत्री अपने महल में आए हुए महात्माओं की सेवा करती थीं. एक बार उनके महल में दुर्वासा ऋषि आए तो कुंती ने उनकी खूब सेवा की. इस पर उन्होंने कुंती की सेवा से प्रसन्न होकर कहा कि पुत्री मैं तुम्हारी सेवा से प्रसन्न हूं और मैं तुमको एक मंत्र देता हूं. इस मंत्र के प्रयोग से तुम जिस देवता का स्मरण करोगी, वह तुम्हारे समक्ष आकर तुम्हारी मनोकामना पूरी करेगा.
विवाह से पहले बन गई थीं मां
एक बार कुंती ने मंत्र की सच्चाई जानने के लिए एकांत में बैठक इसका जाप किया. जाप करते समय कुंती ने सूर्यदेव का स्मरण किया. मंत्र की शक्ति से सूर्यदेव कुंती के सामने प्रकट हो गए. कुंती हैरान हो गईं और उन्होंने कुंती से कहा कि हे देवी, तु्म्हारी क्या अभिलाषा है. मैं तुम्हारी उस अभिलाषा को पूरी करूंगा. इस पर कुंती ने कहा कि हे देव मैंने बस इस मंत्र की सत्यता परखने के लिए इस मंत्र का जाप किया था. इस पर सूर्यदेव ने कहा कि हे कुंती, मेरा आना व्यर्थ नहीं जा सकता है. इस कारण मैं तुमको एक पराक्रमी और दानवीर पुत्र प्रदान करता हूं. इतना कहकर सूर्यदेव अंतर्ध्यान हो गए.
सूर्य देव की कृपा से कुंती गर्भवती हुईं और उनसे एक सोने के कवच कुंडल धारण किए हुए पुत्र की प्राप्ति हुई. बिना शादी के कुंती गर्भवती हुई थीं, इस कारण उन्होंने इस पुत्र को एक मंजूषा में रखकर नदी में बहा दिया. वह बालक नदी में बहता हुआ किनारे पर पहुंचा. वहां पर हस्तिनापुर राज्य के सारथी अधिरथ अपने रथ के अश्वों को पानी पिला रहे थे. उनकी दृष्टि मंजूषा में रखे इस शिशु पर पड़ी तो वे उस बालक को घर ले आए और उसका पालन पुत्र के समान किया. अधिरथ निसंतान थे. सूत दंपति के घर पलने के कारण यह पुत्र सूतपुत्र कहलाया और इसका नाम कर्ण रखा गया.
जीवनभर रहीं कुंवारी
कुंती पंचकन्याओं में से एक थी,जिनको अजीवन कुंवारा रहने का वरदान था. एक बार कौमार्य भंग होने के बाद भी वे दोबारा से कौमार्य को प्राप्त कर लेती थीं. कुंती का जब स्वयंवर हुआ तो उन्होंने हस्तिनापुर के राजा पांडु को अपने पति रूप में स्वीकार्य किया. विवाह के बाद ही पांडु ने हिरण समझकर मैथुनरत किंदम ऋषि को बाण मार दिया था. मरते समय ऋषि ने पांडु को श्राप दिया कि स्त्री से संबंध बनाते ही तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी. इस कारण कुंती को कभी भी पति सुख नहीं मिल पाया. तीन पांडवों के जन्म के लिए भी उन्होंने दुर्वासा ऋषि द्वारा दिए गए मंत्र का उपयोग किया. जिसमें इंद्र से अर्जुन, वायुदेव से भीम, धर्मराज से युधिष्ठिर का जन्म हुआ था. वहीं, पांडु की दूसरी पत्नी मांडवी से नकुल, सहदेव का जन्म हुआ था. शादी और पुत्रों का बाद भी वरदान के चलते वे जीवनभर कुंवारी रहीं.
भगवान श्रीकृष्ण से था ये संबंध
कुंती भगवान श्रीकृष्ण के पिता वासुदेव की सगी बहन थीं. इस कारण वे उनकी बुआ थीं. वासुदेव का विवाह कंस की बहन देवकी से हुआ था. वासुदेव और देवकी के पुत्र भगवान श्रीकृष्ण थे.
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