Lord Hanuman: त्रेतायुग में जब रावण के पुत्र मेघनाद से युद्ध करते समय लक्ष्मण जी को शक्ति लगी थी तो वे बेहोश हो गए थे. उनके प्राण बचाने के हनुमान जी संजीवनी बूटी लाने निकले थे. रास्ते में उन्हें एक ऐसा साधु मिला, जो राम नाम जप रहा था. उस साधु की सच्चाई जब हनुमान जी को पता लगी तो उन्होंने उसका वध कर दिया.
लक्ष्मण को जब मेघनाद ने बाण मारा था तो वे मूर्छित हो गए थे. उनको बचाने के लिए विभीषण ने लंका से सुषेन वैद्य को लाने को कहा था, जिसपर वीर हनुमान सुषेन वैद्य को उनके घर समेत उठा लाए थे. लक्ष्मण की हालत देखकर सुषेन वैद्य ने उनके इलाज के लिए सूर्योदय से पहले संजीवनी बूटी लाने को कहा था. इस कारण भगवान हनुमान प्रभु श्रीराम की आज्ञा लेकर संजीवनी लेने निकल पड़े थे.
जब भगवान हनुमान संजीवनी लेने जा रहे थे तो उन्हें रास्ते में राम नाम की गूंज सुनाई दी तो वे उस तरफ चले गए. उन्होंने देखा कि एक साधु राम नाम का जाप कर रहे हैं. उन्होंने संजीवनी बूटी के लिए द्रोण पर्वत जाने का रास्ता उस साधु से पूछा. इस पर साधु ने भगवान हनुमान से कुछ समय विश्राम करने को कहा. हनुमान जी ने उस साधु ने कहा कि प्रभु श्रीराम का काम किए बगैर मैं विश्राम नहीं कर सकता हूं. इस पर उस साधु ने कहा कि पास में ही सरोवर है तुम उसमें जाकर पानी पी लो. इससे तुम्हारी प्यास बुझ जाएगी.
हनुमान जी ने साधु की बात मान ली और सरोवर में पानी पीने चले गए. जब वे पानी पी रहे थे तो उन्हें एक मगरमच्छ खाने आ गया. हनुमान जी ने उस मगरमच्छ का वध किया तो वहां एक दिव्य अप्सरा प्रकट हुई. उस अप्सरा ने भगवान हनुमान से कहा कि मैं आपके दर्शन पाकर धन्य हो गईं. दुर्वासा ऋषि के श्राप के चलते मुझे मगरमच्छ का जन्म मिला था. अप्सरा ने हनुमान जी को बताया कि राम नाम जपने वाला साधु वेश में एक राक्षस कालनेमि है. जिसको रावण ने आपका रास्ता भटकाने के लिए भेजा है. हनुमान जी को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने उस कालनेमि को यमलोक पहुंचा दिया.मरते समय पर कालनेमि ने राम का नाम लिया तो उसका भी उद्धार हो गया .
कालनेमि की दादी ताड़का थी और इसका पिता मारीच था. मरीच ने ही हिरण का रुप रखकर प्रभु श्रीराम का छला था. हनुमान जी के द्वारा कालनेमि का उद्धार हो गया था.
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