स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने बनाई थीं इस मंदिर की मूर्तियां, आज भी प्रतिमा में धड़कता है दिल
Famous Temple: भारत में दुनिया का एक ऐसा प्रसिद्ध मंदिर स्थित है, जहां की मूर्तियों को स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने बनाया था. इसके साथ ही यहां पर भगवान की प्रतिमा का दिल हमेशा धड़कता रहता है. आइए जानते हैं कि इस मंदिर का क्या इतिहास है.
Famous Temple: भारत के उड़ीसा में स्थित भगवान जगन्नाथ का मंदिर पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है. मान्यता है कि यहां स्वयं भगवान श्रीकृष्ण, बहुन सुभद्रा और बड़े भाई बलराम के साथ विराजमान हैं. मान्यता है कि यहां पर भगवान की मूर्तियां लकड़ी की हैं,लेकिन इनमें एक ऐसा ब्रह्मा पदार्थ है जो दिल की तरह धड़कता रहता है. यहां की मूर्तियों को स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने बनाया था.
मान्यता है कि यहां की मूर्तियों को हर 12 साल में बदल दिया जाता है. इस दौरान पूरे पुरी में अंधेरा कर दिया जाता है. इसके लिए पूरे शहर की बिजली काट दी जाती है. मंदिर में भी अंधेरा कर दिया जाता है. मंदिर की सुरक्षा को हर ओर से मजबूत करके यहां पर एक गुप्त अनुष्ठान नवकलेवर किया जाता है. इस दौरान यहां पर चयनित पुजारियों की आंखों पर रेशम की पट्टी बांध दी जाती है. इसके बाद पुरानी मूर्तियों से ब्रह्मा पदार्थ निकाला जाता है और इसे नई मूर्तियों में स्थापित कर दिया जाता है.
किसी ने नहीं देखा यह ब्रह्मा पदार्थ
मान्यता है कि इस पदार्थ में इतनी अधिक ऊर्जा होती है कि इसके देखने वाला अंधा हो जाता है, यहां तक कि उसकी मृत्यु तक हो सकती है. इस कारण आजतक किसी ने भी इसे नहीं देखा है. इस प्रक्रिया को सदियों से किया जा रहा है. पुजारियों के अनुसार यह पदार्थ खरगोश की तरह फुदकता है. कुछ लोगों के अनुसार यह अष्टधातु से बना एक दिव्य पदार्थ है. वहीं, हिंदू धर्म में इसे भगवान श्रीकृष्ण का हृदय मानते हैं.
नहीं जला था भगवान का हृदय
द्वापर युग में भगवान विष्णु ने ही श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया था. मानव रूप में जन्म लेने वाले व्यक्ति की मृत्यु निश्चित है. इस कारण भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध के 36 दिन बाद ही अपना शरीर त्याग दिया था. इसके बाद पांडवों ने उनका अंतिम संस्कार किया तो पूरी शरीर जलने के बाद भी उनका दिल नहीं जला और धड़कता रहा. इसके बाद आकशवाणी से पता चला कि यह दिल ब्रह्मा का है. इस कारण उस दिल को समुद्र में बहा दिया गया. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जगन्नाथ भगवान की मूर्ति में रहने वाला वह ब्रहा पदार्थ भगवान श्रीकृष्ण का दिल ही है.
भगवान विश्वकर्मा ने बनाई थीं मूर्तियां
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार राजा इंद्रद्युम्न के सपने में भगवान श्रीकृष्ण आए और उन्होंने राजा से कहा कि पुरी के दरिया के किनारे एक पेड़ के तने में उनका विग्रह बनवा दें और बाद में उसे मंदिर में स्थापित कर दें. भगवान श्रीकृष्ण के आदेश के अनुसार राजा ने इस काम के लिए काबिल बढ़ई खोजना शुरू कर दिया. कुछ दिनों बाद उनके पास एक बूढ़ा ब्राह्मण आया और उसने इस विग्रह को बनाने की इच्छा जाहिर की. इस पर राजा ने उन्हें मूर्ति बनाने की आज्ञा प्रदान कर दी.
ब्राह्मण ने रख दी शर्त
मूर्ति बनाने से पहले ब्राह्मण ने शर्त रखी कि वह इस विग्रह को एक बंद कमरे में बनाएंगे और काम करते समय उनको कोई टोकेगा नहीं और दरवाजा भी नहीं खोलेगा. अगर किसी ने भी ऐसा किया तो वे अधूरा काम छोड़कर चले जाएंगे.
शुरू कर दिया काम
राजा की आज्ञा पाकर ब्राह्मण ने काम शुरू किया. शुरुआत में तो काम की आवाज आई पर कुछ दिन बाद कमरे से आवाज आनी बंद हो गईं. इस पर राजा ने सोचा कि कहीं बूढ़े ब्राह्मण को कुछ हो तो नहीं गया. इस कारण चिंता में उसने कमरे का दरवाजा खोल दिया. राजा ने देखा कि ब्राह्मण वहां से गायब था और मूर्तियां आधी बनी थीं. इसके बाद राजा के यहां पर नारद मुनि आए और उन्होंने राजा को बताया कि मूर्ति बनाने कोई और नहीं बल्कि स्वयं भगवान विश्वकर्मा आए थे. उस दिन से आज तक भगवान जगन्नाथ के मंदिर में लकड़ी की ही प्रतिमा रखी जाती है. यहां भगवान श्रीकृष्ण अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलराम के साथ विराजमान रहते हैं.
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