Epic Story: दुनिया में किन्नरों के कई समाज हैं. किसी खुशी के मौके पर किन्नरों का आगमन काफी शुभ माना जाता है. किन्नरों का आशीर्वाद बेहद खास माना जाता है. किसी बच्चे का जन्म हो या फिर शादी, किन्नर वहां आकर अपना आशीर्वाद दें तो यह काफी शुभ होता है. कुछ लोगों का मानना है कि भगवान श्रीराम ने भी किन्नरों को आशीर्वाद दिया था कि कलयुग में तुम्हारा राज होगा. भारत में अब किन्नरों का अखाड़ा भी है. इसकी महामंडलेश्वर आचार्य लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी हैं. किन्नर अपने देवता का पूजन करते हैं.
किन्नरों के देवता इरावन हैं. वे इनका पूजन करते हैं. माना जाता है कि किन्नर अपने इस देवता का पूजन करते हैं. किन्नर अपने देवता से शादी भी रचाते हैं और एक दिन बाद उनकी मौत का विलाप भी करते हैं. किन्नरों का वैवाहिक जीवन मात्र एक ही दिन में समाप्त हो जाता है. मान्यता है कि भारत के तमिलनाडु के कूवागम गांव में हजारों किन्नर एकत्रित होते हैं. जहां वे शादी रचाते हैं. इसके साथ ही विल्लूपुरम जिले के इस गांव में इरावन का पूजन कूथांदवार के रूप में होता है. हजारों की संख्या में किन्नर इरावन की दुल्हन बनते हैं. मंदिर के पुजारी उनकी गर्दन में कलावा बांधते हैं.
किन्नरों के देवता इरावन महाभारत के अर्जुन के पुत्र हैं. पौराणिक कथाओं के मुताबिक एक बार अर्जुन ने युद्धिष्ठिर और द्रौपदी को एकांत देखकर वैवाहिक नियम भंग कर दिया था. जिसके कारण उनको अपनी इच्छा से एक वर्ष के लिए तीर्थ भ्रमण स्वीकार करके इंद्रप्रस्थ छोड़ना पड़ा था. कथा के अनुसार एक बार अर्जुन हरिद्वार में स्नान कर रहे थे. उसी समय नागराज कौरव्य की पुत्री ने नागकन्या उलूपी ने उन्हें देखा तो वह उनपर मोहित हो गई. ऐसे में वह उनको खींचकर उन्हें अपने नागलोक ले गई. उसने अर्जुन से विवाह का अनुरोध किया तो अर्जुन को उससे विवाह करना पड़ गया.
अर्जुन ने नागलोक में एक रात व्यतीत की. इसके बाद वे सूर्योदय होने पर उलूपी के साथ नागलोक से ऊपर चले गए और हरिद्वार के गंगातट पर आ पहुंचे. उलूपी उनको छोड़कर अपने घर को लौट आईं. लौटते समय पर उलूपी ने अर्जुन को वर दिया कि वे जल में हमेशा विजयी होंगे. सभी जलचर आपके वश में ही रहेंगे.
अर्जुन और नागकन्या उलूपी के मिलन से एक पुत्र हुआ, जिसका नाम इरावन रखा गया. इसका वर्णन भीष्म पर्व में मिलता है. भीष्म पर्व के 90वें अध्याय में संजय धृतराष्ट्र को इरावन का परिचय देते हुए बताते हैं कि इरावान नागराज कौरव्य की पुत्री उलूपी और अर्जुन की संतान है.
वर्ष में एक दिन ऐसा भी आता है, जब किन्रर रंग-बिरंगी साड़ियां पहनकर अपने जूडे़ में चमेली के फूल सजाकार इरावन से शादी करते हैं. यह विवाह केवल एक ही दिन का होता है. अगले दिन इरावन देवता की मौत के साथ ही उनका वैवाहिक जीवन भी खत्म हो जाता है. मान्यता है कि इसी दिन इरावन की मौत हो गई थी.
एक पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत युद्ध में एक ऐसा समय आता है, जब पांडवों को जीत के लिए मां काली के चरणों मे स्वेच्छिकरूप से किसी पुरुष की बलि के लिए एक राजकुमार की आवश्कता पड़ती है. इसके लिए जब कोई भी राजकुमार आगे नहीं आता है तो अर्जुन पुत्र इरावन खुद को प्रस्तुत कर देते हैं.
इसके साथ ही वह यह शर्त भी रख देते हैं कि वे अविवाहिक नहीं मरेंगे.इस शर्त के चलते संकट उत्पन्न हो जाता है क्योंकि अगर किसी स्त्री से उनका विवाह होगा तो वह अगले ही दिन विधवा हो जाएगी. इस स्थिति को देखते हुए भगवान श्रीकृष्ण स्वयं मोहिनी का रूप धारण करते हैं और इरावन से विवाह करते हैं. इसके बाद इरावन अपना शीश मां काली के चरणों में अर्पित कर देता है. इरावन की मृत्यु के बाद भगवान श्रीकृष्ण मोहिनी रूप में कुछ देर तक विलाप करते हैं.
भगवान श्रीकृष्ण पुरुष होने के बाद भी स्त्री रूप रखकर इरावन से शादी करते हैं. इस कारण जो स्त्री रूप में पुरुष माने जाते हैं तो वह भी इस प्रथा को आगे बढ़ाते हैं और अपने आराध्य देव इरावन से शादी रचाते हैं. वहीं, महाभारत में वर्णित है कि इरावन की मौत युद्ध में हुई थी.
Disclaimer : यहां दी गई सभी जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. theindiadaily.com इन मान्यताओं और जानकारियों की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह ले लें.