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जानें क्यों मनाई जाती है विश्वकर्मा जयंती और कब है इस दिन पूजन का शुभ मुहूर्त?

सृष्टि के पहले शिल्पकार भगवान विश्वकर्मा के जन्मदिन को विश्वकर्मा जयंती के रूप में मनाया जाता है.

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Edited By: Mohit Tiwari
जानें क्यों मनाई जाती है विश्वकर्मा जयंती और कब है इस दिन पूजन का शुभ मुहूर्त?

Vishwakarma Puja 2023: भगवान विश्वकर्मा के अवतरण दिवस को विश्वकर्मा जयंती के रूप में मनाया जाता है. भगवान विश्वकर्मा को सृष्टि का पहला शिल्पकार माना जाता है. शिल्प के देवता भगवान विश्वकर्मा की जयंती हर साल कन्या संक्रांति के दिन मनाई जाती है. इस दिन भगवान विश्वकर्मा पूजा 17 सितंबर 2023 कों है. इस दिन को विश्वकर्मा जयंती के रूप में भी जाना जाता है. मान्यता है कि सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा के सातवें पुत्र के रूप में भगवान विश्वकर्मा का जन्म हुआ था.

कब है विश्वकर्मा पूजा 2023?

साल 2023 में विश्वकर्मा पूजा 17 सितंबर  को पड़ रही है. इस दिन पूरे दिन विश्वकर्मा भगवान का पूजन किया जाएगा. इस दिन पूजन का शुभ मुहूर्त सुबह 10 बजकर 15 मिनट से दोपहर 12 बजकर 26 मिनट तक रहेगा. ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, इस अवधि में पूजन करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है.

इस दिन होती है औजारों की पूजा

विश्वकर्मा जयंती के दिन औजार, निर्माण कार्य से जुड़ीं मशीनों, दुकानों, कारखानों, मोटर गैराज, वर्कशॉप, लेथ यूनिट, कुटीर एवं लघु इकाइयों आदि में भगवान विश्वकर्मा का पूजन किया जाता है.

विश्वकर्मा जयंती पर ऐसे करें मशीनों का पूजन

इस दिन मशीनों को साफ करें. इसके बाद स्नान करके भगवान विष्णु के साथ विश्वकर्मा जी की प्रतिमा या मूर्ति की विधिवत पूजा करें. इसके बाद भगवान विश्वकर्मा को ऋतुफल, मिष्ठान, पंचमेवा, पंचामृत का भोग लगाएं. दीप-धूप आदि जलाकर दोनों देवाताओं की आरती उतारें.

भगवान विश्वकर्मा के जन्म को लेकर कई प्रथाएं हैं प्रचलित

भगवान विश्वकर्मा के जन्म को लेकर कई सारी कथाएं प्रचलित हैं. वराह पुराण की मानें तो ब्रह्माजी ने विश्वकर्मा को धरती पर उत्पन्न किया था. विश्वकर्मा पुराण के अनुसार, आदि नारायण ने सर्वप्रथम ब्रह्माजी और फिर भगवान विश्वकर्मा की रचना की थी. भगवान विश्वकर्मा के जन्म को देवताओं के राक्षसों के बीच हुए समुद्र मंथन से भी जोड़ा जाता है.

भगवान विश्वकर्मा के जन्म को लेकर शास्त्रों में कई कथाएं मिलती हैं. इससे पता चलता है कि विश्वकर्मा एक नहीं बल्कि कई सारे हुए है. समय-समय पर अपने कार्यों और ज्ञान से वो सृष्टि के विकास में सहायक हुए थे. शास्त्रों में भगवान विश्वकर्मा के इस वर्णन से यह संकेत मिलता है कि विश्वकर्मा एक प्रकार का पद और उपाधि है, जो शिल्पशास्त्र का श्रेष्ठ ज्ञान रखने वाले को दी जाती थी. सबसे पहले विराट विश्वकर्मा, इसके बाद धर्मवंशी विश्वकर्मा, अंगिरावंशी और इसके बाद सुधान्वा विश्वकर्मा हुए. इसके बाद शुक्राचार्य के पौत्र भृगुवंशी विश्वकर्मा हुए. मान्यता है कि देवताओं की विनती पर विश्वकर्मा ने महर्षि दधिचि की हड्डियों से स्वर्गाधिपति इंद्र के लिए एक शक्तिशाली वज्र बनाया था.

विश्वकर्मा ने किए हैं कई सारे निर्माण कार्य

प्राचीन काल में जितने भी सुप्रसिद्ध नगर आदि थे, उनका सृजन भगवान विश्वकर्मा ने ही किया था. सतयुग में स्वर्ग लोक, त्रेतायुग में लंका, द्वापर युग में द्वारिका और कलियुग के हस्तिनापुर का निर्माण भगवान विश्वकर्मा द्वारा किया गया था. महादेव का त्रिशूल, श्रीहरि विष्णु का सुदर्शन चक्र, हनुमान जी की गदा, यमराज का कालदंड, कर्ण के कुंडल और कुबेर के पुष्पक विमान का निर्माण भी विश्वकर्मा ने ही किया था. भगवान विश्वकर्मा जल में चलने वाले खड़ाऊ का निर्माण करने का सामर्थ्य रखते हैं.

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Disclaimer : यहां दी गई सभी जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है.  theindiadaily.com    इन मान्यताओं और जानकारियों की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह ले लें.