Lohri 2024 : लोहड़ी सिख समुदाय का एक प्रमुख त्योहार है. इसे पंजाब, दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में रहने वाले पंजाबियों द्वारा मनाया जाता है. धीरे-धीरे ये अन्य धर्मों के लोगों के बीच भी पापुलर हो रहा है. लोहड़ी को मकर संक्रांति के एक दिन पहले मनाया जाता है. कुछ लोगों के अनुसार इस त्योहार का मूल नाम तिल-रेवड़ी था. जो बदलते-बदलते तिलोहाड़ी, तिलोहड़ी और फिर लोहड़ी बन गया. वहीं, कुछ लोग लोहड़ी का अर्थ ल(लकड़ी), ओह (गोहा यानि उपले) और ड़ी (रेवड़ी)। इस पर्व के 20 से 25 दिन पहले से ही बच्चे लोहड़ी के लोकगीत गाकर लकड़ी और उपले इकट्ठे करते हैं. इस सामग्री को चौराहे या किसी खुले स्थान पर जलाया जाता है.
पौष माह के अंतिम दिन रात्रि में लोहड़ी जलान का विधान है. इस दिन प्रकृति में कई बदलाव आ जाते हैं. यह रात सबसे लंबी होती है. धीरे-धीरे दिन बड़े होने लगते हैं. मौसम फसलों के अनुकूल होने के कारण इसे नई फसल का त्योहार या मौसमी त्योहार कहा जाता है. किसान इस त्योहार के साथ ही अपनी फसलों की कटाई शुरु करते हैं. यह त्योहार किसानों के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है.
साल 2024 में लोहड़ी का त्योहार 13 नहीं 14 जनवरी को पड़ रहा है. इस त्योहार को मकर संक्रांति के एक दिन पहले मनाया जाता है. वहीं, जिनके घर में नई बहू का आगमन होता है या फिर नवजात पुत्र या पौत्र का जन्म होता है. उनके घर में यह धूमधाम से मनाई जाती है.
घर के आंगन में या फिर किसी खुले हिस्से में पूजा स्थान को साफ करके कच्चे दूध और घी के छींटे मारे जाते हैं. इसके बाद इस जगह पर उपले और आम की लकड़ियों का एक ढेर सजा दिया जाता है. सायंकाल में सभी लोग उस जगह पर एकत्रित हो जाते हैं और उस ढेर पर आग लगा दी जाती है. सभी लोग हाथ में काले तिल लेकर आग चारों तरफ घूमकर तिलों को आग में फेंकते जाते हैं और बोलते हैं कि 'दुख, रोग, दलिद्दर जावै, लक्ष्मी आवै' तिल फेंकने के बाद आग व मक्की का लावा, रेवड़ी, गुड़ आदि प्रसाद भी आग में डाला जाता है. इसके साथ ही लोग भी इसको खाते हैं.
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