भगवान श्रीराम से क्या था जैन धर्म के 24वें 'तीर्थंकर' महावीर स्वामी का संबंध?
Mahavir Jayanti 2024: जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी का जन्म चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को हुआ था. भगवान महावीर दया, करुणा और अहिंसा के प्रणेता थे. उन्होंने दुनिया के कल्याण और हित के लिए कई सारे उपदेश दिए हैं. उन्होंने अपना पूरा जीवन अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए बिताया है. क्या आप जानते हैं कि भगवान महावीर का प्रभु श्रीराम से भी गहरा संबंध था. आइए जानते हैं कि प्रभु श्रीराम से भगवान महावीर का क्या संबंध था.
Mahavir Jayanti 2024: भगवान महावीर के जन्मदिवस को महावीर जयंती के नाम से जाना जाता है. ये जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर थे. इनका जन्म चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को हुआ था. भगवान वर्धमान महावीर ने दुनिया को अहिंसा का पाठ पढ़ाया था. महावीर जयंती के साथ ही इस दिन को महावीर जन्मकल्याणक नाम से भी जाना जाता है.
चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को जैन दिगंबर और श्वेतांबर एक साथ उत्सव मनाते हैं. इसके साथ ही महावीर स्वामी को वर्धमान, वीर, अतिवीर, सन्मति भी कहा जाता है. साल 2024 में चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी 21 अप्रैल को पड़ रही है. इस दिन जैन धर्म के लोग भगवान महावीर का पूजन करते हैं. इसके साथ ही उनके द्वार दी गई शिक्षाओं और सिद्धांतों को याद करते हैं.
ये हैं महावीर स्वामी के पंचशील सिद्धांत
जैन धर्म के पांच सिद्धांत सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य है. इन्हीं सिद्धांतों पर जैन धर्म के अनुयायी चलते हैं. इसके साथ ही महावीर स्वामी का भगवान श्रीराम से भी गहरा नाता है.आइए जानते हैं कि भगवान श्रीराम से महावीर स्वामी का क्या रिश्ता है.
महावीर स्वामी का भगवान श्रीराम से क्या है संबंध?
जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर महावीर स्वामी का जन्म 599 ईसा पूर्व बिहार में हुआ था. महावीर स्वामी का जन्म चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को हुआ था. महावीर स्वामी का जन्म इक्ष्वाकु राजवंश के राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के परिवार में हुआ था. भगवान श्रीराम भी इसी वंश से हैं. इस कारण इनको भगवान श्रीराम के वंश का कहा जाता है. भगवान श्रीराम और महावीर स्वामी दोनों ही सूर्यवंशी हैं.
30 वर्ष की उम्र में त्याग दिया था घर
जैन धर्म के लोगों के लिए इस जयंती को काफी खास माना जाता है. महावीर स्वामी ने 30 वर्ष की उम्र में अपना घर-परिवार त्याग दिया था. उन्होंने जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ से दीक्षा ली थी. 12 साल की कठोर तपस्या के बाद उन्हें 573 ईसा पूर्व में तीर्थंकर का दर्जा मिला था. महावीर स्वामी ने अहिंसा को सबसे उच्च धर्म बताया है.
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