हिंदू-मुसलमानों के बीच का विवाद और तनाव एक गंभीर मुद्दा है, जो कई ऐतिहासिक, सामाजिक और राजनीतिक कारणों से उपजा है. इस लेख में हम देवकीनंदन के दृष्टिकोण से समझेंगे कि इस लड़ाई की जड़ें कहां हैं. हिंदू-मुसलमानों के बीच की लड़ाई की जड़ें प्राचीन काल में फैली हुई हैं. मध्यकाल में, जब भारत पर विभिन्न मुस्लिम साम्राज्यों का शासन था, तब कई बार धार्मिक मतभेदों के कारण संघर्ष हुए. मुठभेड़ों और सांस्कृतिक टकरावों ने दोनों समुदायों के बीच अविश्वास और नफरत को बढ़ावा दिया.
ब्रिटिश शासन के दौरान, विभाजन की राजनीति ने हिंदू-मुसलमानों के बीच दीवार खड़ी कर दी. ब्रिटिश राज ने फूट डालो और राज करो, की नीति अपनाई, जिससे दोनों समुदायों के बीच की दूरियां और भी बढ़ गईं. विभाजन के समय, लाखों लोगों की जान गई और यह दर्द आज भी महसूस किया जाता है.
हिंदू और मुसलमान दोनों अपनी सांस्कृतिक पहचान को लेकर बेहद संवेदनशील हैं. धार्मिक त्योहार, रीति-रिवाज और परंपराएं दोनों समुदायों में गहरी जड़ें रखती हैं. जब किसी एक समुदाय की पहचान को चुनौती दी जाती है, तो प्रतिक्रिया स्वरूप संघर्ष होना स्वाभाविक है.