Epic Story: मृत्यु एक सार्वभौमिक सत्य है, जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु निश्चित है. आज हम आपको एक ऐसी कथा के बारे में बताने जिसको सुनकर लोग अमर हो जाते हैं. इस कथा को दो पक्षियों ने सुना तो वो अमर हो गए. इस कारण इसको अमरकथा कहा गया. यह कथा भगवान शिव ने माता पार्वती को सुनाई थी, जिस स्थान पर उन्होंने देवी पार्वती को यह कथा सुनाई थी, वह स्थान अमरनाथ नाम से प्रसिद्ध हुआ.मान्यता है कि अमरनाथ के दर्शन मात्र से मोक्ष की प्राप्ति होती है.
अमरनाथ यात्रा का लोग धरती का स्वर्ग मानते हैं. यह हिंदूओं का काफी फेमस तीर्थस्थल है. यह समुद्रतल से 3,888 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है.अमरनाथ की यात्रा को काफी कठिन माना जाता है पर इसके बाद भी यहां दर्शन करने लाखों की संख्या में भक्त आते हैं. इसको लेकर एक पौराणिक कथा भी है, जो भगवान शिव और माता पार्वती से संबंधित है.
पुराणों के अनुसार, एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से कहा कि 'हे नाथ, आप अजर-अमर हैं और मुझे आपको प्राप्त करने के लिए हर जन्म में नया स्वरूप लेना पड़ता है और कठोर तप करना पड़ता है. कृपया मुझे आप अपने अमर होने और आपके कंठ में पड़ी इस मुण्डमाला का रहस्य बताएं.'
इस पर भगवान शिव माता पार्वती को अमरकथा सुनाने के लिए मान गए. उन्होंने कहा कि हे पार्वती इस अमर कथा को जो भी जीव सुन लेता है, वह अमर हो जाता है. इस कारण भगवान शिव माता पार्वती को अमरकथा सुनाने के लिए एकांत स्थान पर चलने के लिए बोले.
भगवान भोलेनाथ ने अपनी सवारी नंदी को पहलगाम में छोड़ दिया. इसके बाद जटाओं से चंद्रमा को चंदनवाड़ी और गंगा को पंचतरणी में अलग कर दिया. कंठ में विराजमान सर्पों को शेषनाग पर छोड़ दिया. इस कारण इस पड़ाव का नाम शेषनाग पड़ गया. इसके अगले पड़ाव पर प्रभु ने भगवान गणेश को छोड़ दिया, जो स्थान महागुणा पर्वत कहलाया. वहीं, पिस्सू घाटी में भगवान शिव ने पिस्सू नामक कीड़े का भी त्याग कर दिया. इस प्रकार शिव ने जीवनदेने वाले पांचों तत्वों को अपने सेअलग कर दिया. इसके बाद वे माता पार्वती के साथ एक गुफा में प्रवेश कर गए.
इसके बाद भगवान शिव ने ध्यान मुद्रा लगाई और नेत्र बंद करके माता पार्वती को अमरकथा सुनाने लगे. कथा के बीच में माता पार्वती को नींद आ गई और वो सो गईं,भगवान शिव को इस बात का पता नहीं चल सका. वे कथा को वैसे ही सुनाते रहे.इस दौरान गुफा में एक सफेद कबूतर का जोड़ा मौजूद था, जो कथा को सुन रहा था और बीच-बीच में गूं-गूं की आवाज निकाल रहा था. भगवान शिव को इस आवाज से लगा की माता पार्वती कथा को सुन रही हैं और बीच-बीच में हुंकार भर रही हैं. जब कथा खत्म हुई तो भगवान शिव ने देखा कि माता पार्वती सो रही हैं और दो कबूतर उनकी कथा को सुन रहे थे.
कबूतरों को कथा सुनते देख भगवान शिव उनपर क्रोधित हो गए. वे उनक कबूतरों को मारने के लिए आगे बढ़े. इस पर कबूतरों ने भगवान शिव से प्रार्थना कर दी कि हे प्रभु हमने इस अमरकथा को सुना है और अगर आपने हमें मार दिया तो यह कथा झूठी हो जाएगी. इस पर भगवान शिव ने कबूतरों को जिंदा छोड़ दिया और उन्हें आशीर्वाद दिया कि तुम सदैव इस जगह पर शिव पार्वती के प्रतीक के रूप में निवास करोगे. इस प्रकार यह कबूतर को जोड़ा अजर-अमर हो गया.आज भी भक्तों को इन कबूतरों का दर्शन होता है. इन कबूतरों का दर्शन करने वाला मनुष्य मोक्ष को प्राप्त करता है.
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