Epic Story: महाभारत के वनपर्व में एक ऐसी कहानी का जिक्र है, जिसमें खुद यमराज को प्राण लेने के बाद जीव को वापस जिंदा करना पड़ गया था. कथा के अनुसार एक बार पांडु के ज्येष्ठ पुत्र युधिष्ठिर ने मार्कण्डेय ऋषि से पूछा कि क्या दुनिया में और भी ऐसी स्त्री रही है, जिसने द्रौपदी जैसी भक्ति की हो. जो राजकुल में पैदा हुई हो और पतिव्रत धर्म निभाने के लिए जंगल-जंगल भटकना पड़ा हो. इस पर ऋषि मार्कण्डेय ने उनको विस्तार से एक ऐसी ही पतिव्रता स्त्री की कहानी सुनाई.
कथा के अनुसार मद्रदेश में अश्वपति नाम के एक धार्मिक राजा थे. उनकी पुत्री का नाम सावित्री था. सावित्री जब विवाह योग्य हुईं तो उनके पिता काफी चिंतित हो गए. उन्होंने अपनी पुत्री से कहा कि बेटी अब तुम विवाह योग्य हो गई हो, इस कारण तुम स्वयं अपने लिए योग्य वर चुनकर उससे विवाह कर लो. उन्होंने सावित्री को बताया कि शास्त्रों के अनुसार जो भी पिता पुत्री के विवाह योग्य हो जाने पर भी कन्यादाान नहीं करता है, वह निंदा का पात्र है. वहीं, ऋतुकाल में जो पत्नी के साथ समागम नहीं करता है, वह पति निंदा का पात्र है और पति की मृत्यु के बाद जो पुत्र अपनी विधवा माता का पालन नहीं करता वह पुत्र निंदनीय है.
अपने पिता की बातें सुनकर सावित्री पति की खोज में निकल पड़ी. वे राजर्षियों के रमणीय तपोवन में भी गईं और कुछ दिन तक वे सुयोग्य वर की तलाश करती रहीं. एक दिन मद्रराज अश्वपति अपनी सभा में देवर्षि से बात कर रहे थे. उस समय मंत्रियों सहित सावित्री वापस आईं तो वहां मौजूद नारद जी ने राजकुमारी के बारे में राजा से पूछ लिया. इस पर उन्होंने बताया कि उनकी पुत्री अपने वर की तलाश में गई थीं. इस पर नारद जी ने राजकुमारी से उनके वर के चुनाव के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि वे शाल्वदेश के राजा के पुत्र को अपने पति रूप में स्वीकार करके आई हैं. वे जंगल में ही पले बढ़े हैं और उनका नाम सत्यवान है. उनका राजपाट छिन चुका है. अब वे लकड़ी काटकर अपना जीवन यापन करते हैं.
इस पर नारद मुनि ने कहा कि बड़े खेद की बात है कि वर में एक दोष है. उन्होंने बताया कि जो वर सावित्री ने चुना है, वह अल्पआयु है. वह सिर्फ एक वर्ष बाद मरने वाला है. इस पर सावित्री ने अपने पिता से कहा कि कन्यादान एक ही बार किया जाता है, जिसे मैंने वरण किया है. मैं उसी से विवाह करूंगी. आप उन्हीं से मेरा विवाह करा दें. इसके बाद सावित्री के पिता ने सत्यवान से उनका विवाह करा दिया.
सावित्री और सत्यवान के विवाह को कुछ समय व्यतीत हो गया तो सत्यवान की मृत्यु का समय निकट आ गया. सावित्री एक-एक दिन गिन रही थीं. उन्होंने देखा कि उनके पति चार दिन में मरने वाले हैं तो उन्होंने तीन दिन का व्रत धारण किया. जब उनके पति सत्यवान जंगल में लकड़ी काटने गए तो सावित्री ने उनसे कहा कि मैं भी आपके साथ चलूंगी. इस पर सत्यवान ने कहा कि तुम कमजोर लग रही हो. जंगल का रास्ता कठिन और दिक्कतों से भरा है. सावित्री नहीं मानीं और अपने पति के साथ जंगल में चल दीं.
सत्यवान लकड़ी काटने लगे. इतने में उन्होंने सावित्री से बोला कि मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं लग रहा है. सावित्री मुझमें बैठने की हिम्मत नहीं रही है. ऐसा कहकर उन्होंने सावित्री की गोद में सिर रख दिया. इतने में सावित्री को एक भयानक पुरुष दिखाई दिया. उस पुरुष के हाथ में पाश था. वे स्वयं यमराज थे. यमराज ने सत्यवान के प्राणों को पाश में बांधा और दक्षिण दिशा की ओर चल पड़े. इस पर सावित्री बोलीं कि मेरे पति जहां भी जाएंगे, मैं वहां आऊंगी, तो यमराज ने कहा कि मैं तुम्हारे पति के प्राण नहीं लौटा सकता हूं. इनकी आयु इतनी ही थी.तुम्हारे पतिव्रत को देखकर मैं प्रसन्न हूं, तुम मुझसे मनचाहे तीन वर मांग लो. इस पर सावित्री ने उनसे तीन वर मांग लिए.
सावित्री ने कहा कि आप मेरे अंधे सास-ससुर की आंख वापस कर दीजिए. इसके साथ ही उन्होंने अपने ससुर का राज्य वापस मांगा. तीसरे वरदान में सावित्री ने 100 पुत्रों का वरदान मांग लिया. यमराज ने बिना सोच-समझे तथास्तु बोला और आगे बढ़ गए. इसके बाद भी सावित्री उनके पीछे चल दीं तो यमराज ने उनसे इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि मैंने तीसरा वरदाना मांगा की मुझे 100 पुत्र हों पर बिना पति के ऐसा संभव नहीं है.
यह सुनकर यमराज सावित्री की चतुराई देख प्रसन्न हुए और उनके पति सत्यवान को फिर से जीवित कर दिया. जब वे वापस आई तो उन्होंने देखा कि उनके सास-ससुर की आंखें वापस आ चुकी थीं और उनका खोया राजपाट भी वापस मिल चुका था. ऐसे सावित्री ने नियति के लिखे को भी बदल दिया. सावित्री ने पति को ज्येष्ठ माह की अमावस्या के दिन यमराज से वापस मांगा था. इस कारण इस दिन वट सावित्री व्रत रखा जाता है. इसमें सुहागिन स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं.
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